भरत झुनझुनवाला

भरत झुनझुनवाला आर्थिक विश्लेषक वित्तीय घाटा उस रकम को बोलते हैं जो सरकार अपनी आय से अधिक खर्च करती है। जैसे सरकार की आय यदि 80 रुपए हो और सरकार खर्च 100 रुपए करे तो वित्तीय घाटा 20 रुपए होता है। वित्तीय घाटे का अर्थ हुआ कि सरकार अधिक किए गए खर्च की रकम को

भरत झुनझुनवाला आर्थिक विश्लेषक तकनीकी विकास से अर्थव्यवस्था में इस प्रकार के मौलिक परिवर्तन समय-समय पर होते रहते हैं। प्रसिद्ध अर्थशास्त्री जोसेफ  शुमपेटर ने इसे ‘सृजनात्मक विनाश’ की संज्ञा दी थी। जैसे पूर्व में घोड़ा गाड़ी चलती थी। एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने की रफ्तार लगभग 10 किलोमीटर प्रति घंटा होती थी। आज

भरत झुनझुनवाला आर्थिक विश्लेषक बीमार को भूख नहीं लग रही हो तो उसे घी देने से उसकी तबीयत और बिगड़ती है, सुधार नहीं होता है। अतः पहले परीक्षण करना चाहिए कि मंदी का कारण क्या है? और तब उसके अनुकूल दवा पर विचार करना चाहिए। निवेश और खपत का सुचक्र और कुचक्र दोनों ही स्थापित

भरत झुनझुनवाला आर्थिक विश्लेषक वर्तमान में किसानों द्वारा जल की अधिक खपत करने वाली फसलें भारी मात्रा में उपजाई जा रही हैं। कर्नाटक में अंगूर, महाराष्ट्र में केला, राजस्थान में लाल मिर्च, उत्तर प्रदेश में मेंथा और गन्ना इत्यादि फसलों को उगाया जा रहा है। इन फसलों को उपजा कर भूमिगत जल का अति दोहन

भरत झुनझुनवाला आर्थिक विश्लेषक आईएलएफएस जैसी ही दूसरी विशालकाय कंपनी द्वारा मंदाकिनी नदी पर एक जल विद्युत परियोजना बनाई जा रही है। इस परियोजना का अध्ययन करने से पता लगा कि कंपनी द्वारा इस परियोजना को एक सहायक कंपनी के नाम से बनाया जा रहा है। इस प्रकार की सहायक कंपनियों को सब्सिडियरी कहा जाता

भरत झुनझुनवाला आर्थिक विश्लेषक   हाल में प्रॉपर्टी क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए अटके हुए प्रोजेक्ट को आगे बढ़ाने के लिए सरकार ने 10,000 करोड़ रुपए के ऋण बिल्डरों को देने का ऐलान किया है। निर्यातकों के लिए भी इसी प्रकार की योजनाएं बनाई गई हैं। इन सब योजनाओं के बावजूद हमारी आर्थिक विकास

भरत झुनझुनवाला आर्थिक विश्लेषक यदि बाजार में मांग होती है तो उद्यमी येन केन प्रकारेण पूंजी एकत्रित कर फैक्टरी लगाकर माल बना कर उसे बेच ही लेता है। बाजार में मांग होती है तो उसे उत्पादित माल के दाम ऊंचे मिलते हैं और वह लाभ कमाता है। बाजार में मांग नहीं हो तो माल बना

भरत झुनझुनवाला आर्थिक विश्लेषक वित्तीय घाटे को नियंत्रण करने की नीति मूलतः भ्रष्ट सरकारों पर अंकुश लगाने के लिए बनाई गई थी। सत्तर के दशक में दक्षिण अमरीका के देशों के नेता अति भ्रष्ट थे। वे अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक से ऋण लेकर उस रकम को स्विस बैंक में अपने व्यक्तिगत खातों में

भरत झुनझुनवाला आर्थिक विश्लेषक विद्यार्थियों की रुचि पढ़ने की नहीं है क्योंकि उनकी दृष्टि केवल हाई स्कूल का सर्टिफिकेट हासिल करने की होती है जिससे वे सरकारी नौकरी का आवेदन भर सकें। अध्यापकों की भी पढ़ाने की रुचि नहीं होती है क्योंकि उनकी सेवाएं सुरक्षित रहती हैं और उनके संगठनों के राजनीतिक दबाव में कोई