भरत झुनझुनवाला

यदि लोकतंत्र को छोड़ कर एकाधिकार की सरकार लागू की जाए तो दो परिस्थितियां बनती हैं। यदि एकाधिकारी सरकार जनसेवा करती है तो यह हर प्रकार से सही बैठता है, जैसा कि चीन में देखा जाता है। लेकिन यदि एकाधिकारी सरकार जनविरोधी हो जाती है तब लोकतंत्र लाभप्रद और जरूरी दिखता है जैसा कि युगांडा

जिस प्रकार कांटे से कांटे को निकाला जाता है, उसी प्रकार संभव है कि इन दोनों के आपसी घर्षण का लाभ उठाकर इन दोनों पर ही नियंत्रण किया जा सके। सीधा उपाय यह है कि सरकार देश के आम आदमी यानी जनता को सक्षम बनाए क्योंकि इनके दुराचार की जानकारी जनता को तो होती ही

इसलिए सरकार को चाहिए कि ऐसी नीतियां लागू करे जिससे जनता स्वयं उत्पादक कार्यों में लिप्त हो सके और आय अर्जित कर सके और अनाज खरीद सके। जैसे हमारे गांव के युवा यदि संगीत का निर्माण कर उसका विक्रय कर सकें और उस रकम से यदि वही 30 किलो गेहूं खरीदते तो सरकार के ऊपर

सरकारी और निजी दोनों प्रकार के बैंकों की विशेष लोगों को गलत ऋण देने की प्रवृत्ति होती है जिस पर अंकुश रिजर्व बैंक को लगाना चाहिए। इन परिस्थितियों को देखते हुए वित्त मंत्री को बधाई है कि उन्होंने दो सरकारी बैंकों के निजीकरण का फैसला किया है। जानकार बताते हैं कि दो छोटे सरकारी बैंकों

इसी प्रकार जब बाइबिल में कहा गया कि गॉड ने पुरुष के शरीर से हड्डी निकालकर उससे ईव बनाया तो हम इसे इस प्रकार समझ सकते हैं कि मनुष्य के अंतर्मन में विद्यमान सर्वव्यापी चेतना ने उन मनुष्यों को प्रेरित किया कि वे स्त्री और पुरुष के भौतिक और मानसिक कार्यों में विभाजन करें। वर्तमान

इसके विपरीत जब खाद्यान्नों के दाम अधिक बढ़ जाएं तो फूड ट्रेडिंग कारपोरेशन अपने भंडारण किए हुए माल की बिक्री करे, आयात करे और और देश में खाद्यान्न उचित मूल्य पर उपभोक्ता को उपलब्ध कराए। फूड ट्रेडिंग कारपोरेशन को स्वयं खरीद और भंडारण का काम भी नहीं करना चाहिए। इस कारपोरेशन द्वारा व्यापारियों से भविष्य

यह न्यून वृद्धि किसानों की आय दुगना करने के लिए पूरी तरह अपर्याप्त है। यह भी देखने की बात है कि इस वृद्धि में किसान की लागत में कितनी वृद्धि हुई है। यह भी वित्त मंत्री ने नहीं बताया है। इसलिए किसान की आय में शुद्ध वृद्धि बहुत कम ही दिखती है। सरकार का उद्देश्य

इसमें परिवर्तन यह करना चाहिए कि व्यक्तिगत लोगों को लाभ पहुंचाने वाली योजनाएं जैसे सेंट्रल गवर्नमेंट हेल्थ स्कीम और इम्प्लोयी इंश्योरैंस कारपोरेशन आदि पर खर्च घटाकर कोविड जैसे संक्रामक रोगों की रिसर्च पर खर्च बढ़ा देना चाहिए। पांचवां, अन्य तमाम मंत्रालयों पर 2019-20 में 20.0 लाख करोड़ रुपए का खर्च हुआ था। इन सभी के

ऐसा करने से एक तरफ  किसान को पानी का मूल्य अदा करना पड़ेगा तो दूसरी तरफ  किसान को मूल्य अधिक मिलेगा और उसकी भरपाई हो जाएगी। लेकिन तब हम आप शहरी जनता को महंगा अनाज खरीदना पड़ेगा। इसलिए अंततः प्रश्न यह है हम सस्ते अनाज के पीछे भागेंगे अथवा प्रकृति को संरक्षित करते हुए थोड़ा