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हम ढुलमुल भारतीयों ने विपरीत दिशा पकड़ी, और केंद्रीकृत सरकार की ब्रिटिश किस्म को अपना लिया। हमने कई अमरीकी सिद्धांतों — संघवाद, राष्ट्रपति पद, न्यायिक समीक्षा, अधिकार-अधिनियम, आदि — को ब्रिटिश संसदीय प्रणाली में जोड़ने का प्रयास किया। परंतु क्योंकि ऐसा मिश्रण असंगत और मूल में ही विपरीत था, वे सभी सिद्धांत समय के साथ

डा. भरत झुनझुनवाला लेखक, आर्थिक विश्लेषक एवं टिप्पणीकार हैं इस समस्या का समाधान यह हो सकता है कि उच्च शिक्षा को सरकार द्वारा अवश्य अनुदान दिया जाए, लेकिन यह अनुदान केवल यूनिवर्सिटी पर सरकार के स्वामित्व के आधार पर न दिया जाए, बल्कि शिक्षण संस्था के कार्य की गुणवत्ता के आधार पर दिया जाए। जैसे

कुलदीप नैयर लेखक, वरिष्ठ पत्रकार हैं यह दुर्भाग्य की बात है कि हमारे देश में पंथनिरपेक्षता को गंभीरता के साथ नहीं लिया जा रहा है। देश में फिर से विभाजन की आवाजें भी सुनाई दे रही हैं। संसद को स्वयं पहल करते हुए चेतावनी देनी चाहिए कि किसी को भी अलगाववाद की छूट नहीं दी

डा. कुलदीप चंद अग्निहोत्री लेखक, वरिष्ठ स्तंभकार हैं कुरान शरीफ पढ़ने और समझने का दावा मौलाना का भी था और फराह ने भी कुरान-ए-पाक को समझ लिया होगा, तभी वे उसे उद्धृत कर रही थीं। मौलाना कुछ समय तो तर्क देते रहे, लेकिन जब फराह के तर्कों के सामने उनके तर्क लेटने लगे तो वे

प्रो. एनके सिंह लेखक, एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया के पूर्व चेयरमैन हैं हिंदुत्व के दुर्भावनापूर्ण प्रयोग का अधिक बुरा उदाहरण कांगे्रस नेता शशि थरूर ने पेश किया है जिन्होंने भारतीय जनता पार्टी की आलोचना करने के लिए अपने ट्वीट में कहा कि अगर अगले चुनाव में वह जीतती है तो भारत हिंदू पाकिस्तान बन जाएगा।

अनुज कुमार आचार्य लेखक, बैजनाथ से हैं भारत में सरकारी इदारों में भ्रष्टाचार का इतिहास वर्षों पुराना रहा है। अपने स्वार्थ एवं महत्त्वाकांक्षाओं की पूर्ति हेतु नैतिक मूल्यों एवं आदर्शों से समझौता कर सुख-सुविधाओं की पूर्ति और धन लाभ हेतु अनैतिक आचरण के नित नए किस्से अखबारों एवं इलेक्ट्रानिक मीडिया की सुर्खियां बने रहते हैं।

भूपिंदर सिंह लेखक, राष्ट्रीय एथलेटिक प्रशिक्षक हैं देश व प्रदेश में खेल प्रतियोगिताएं आयोजित करवाने वाले तीन संस्थान हैं। देश में खेल मंत्रालय से मान्यता प्राप्त खेल महासंघ ही उस खेल के प्रचार, प्रसार, नियम व प्रतियोगिता आयोजन के लिए अधिकृत व मान्य है। उसके अतिरिक्त अगर और कोई खेल प्रतियोगिता होगी तो उससे कोई

पीके खुराना लेखक, वरिष्ठ जनसंपर्क सलाहकार और विचारक हैं मीडिया एक जिम्मेदार संस्था है, उसके बावजूद पेड न्यूज, फेक न्यूज, पत्रकारों और उपसंपादकों का अधूरा ज्ञान, अधिकांश मीडिया घरानों में प्रशिक्षण का नितांत अभाव, स्ट्रिंगर प्रथा आदि ऐसी कई बीमारियां हैं, जिनके कारण मीडिया की विश्वसनीयता पर सवाल उठ रहे हैं। दारुल-कजा के मामले में

कुलभूषण उपमन्यु अध्यक्ष, हिमालयन नीति अभियान इसलिए बेहतर यह होगा कि लोगों को समय-समय पर रोजगार देने और जरूरी काम निपटाने वाली विशेष व्यवस्था बनाई जाए। भले ही इसके लिए अलग कानून बनाना पड़े और ऐसी स्वयंसेवी भर्तियों पर 240 दिन में वर्कचार्ज करने की कानूनी बाध्यता को समाप्त करना चाहिए। कहने का तात्पर्य यह