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हर मां-बाप के लिए बच्चे का नहीं खाना टेंशन है। फास्ट फूड का बढ़ता प्रचलन हर किसी के लिए परेशानी बन सकता है। छोटे-छोटे बच्चे भी कुरकुरे, चिप्स और मैगी खाना चाहते हैं। फास्ट फूड के खाने से होने वाली परेशानियों से बच्चे ही नहीं मां-बाप भी अनभिज्ञ हैं। सच तो यह है कि फास्ट

बाबा हरदेव महापुरुष, संतजन मानवता का संदेश हमेशा से देते चले आए हैं कि हमें मानवता की डगर पर ही चलना है। हमें यार के साथ ही इस सफर को तय करना है। यह सफर तय हो रहा है, एक-एक पल हमारे हाथों से जा रहा है, एक-एक श्वास जो हम ले रहे हैं ,

अगर आपको गले और छाती में कुछ जमा हुआ सा महसूस हो या फिर सांस लेने में तकलीफ  हो रही हो तो समझ जाएं कि ये लक्षण कफ  जमा होने के हैं। साथ ही नाक बहना और बुखार आना भी इस समस्या के प्रमुख लक्षण हैं। बलगम या कफ  शुरू में तो खतरनाक नहीं है,

स्वामी विवेकानंद गतांक से आगे…  इस प्रकार की कहानियां, वे चाहे किसी भी धर्म की क्यों न हों, सर्वथा पौराणिक ही हैं। पर कभी-कभी उनमें भी ऐतिहासिक सत्य का लेश हो सकता है। इसके बाद आनुष्ठानिक भाग आता है। एक संप्रदाय की एक विशेष प्रकार की अनुष्ठान-पद्धति होती है और उस संपद्राय के अनुयायी उसी

पुल्टिस लगाना या प्रलेप लगाना एक पुरानी और असरदार घरेलू चिकित्सा प्रणाली है। इसमें हर्ब और अन्य कई प्रकार के नुस्खों को पीस या लेप बनाकर त्वचा पर लगाया जाता है, जोकि भांति प्रकार की समस्याओं के संक्रमण आदि से निजात दिलाते हैं। पुल्टिस हर्ब शरीर को बहुत फायदा पहुंचाता है। आइए जानते हैं पुल्टिस

सर्दियों के मौसम में हाथ-पैरों का ठंडा होना सामान्य है। यूं भी ठंड का सामना करने की क्षमता हर व्यक्ति की अलग होती है। पर कुछ लोग हल्की सी ठंड भी बर्दाश्त नहीं कर पाते। उनकी अंगुलियां हर समय ठंडी रहती हैं। ऐसा होना कुछ और बातों की ओर भी इशारा करता है, जिन्हें  समझना

हर दर्द का इलाज हमारे हाथों में ही छिपा है। जी हां, हाथ में ऐसे ही प्वाइंट होते हैं, जिनको दबाने से दर्द में आराम मिलता है। इसके लिए आपको सही प्वाइंट को दबाने की जरूरत है… अधिकतर लोगों को सिर दर्द, कमर दर्द, गर्दन का दर्द या तनाव और एंग्जाइटी जैसी कई स्वास्थ्य संबंधी

ऊं पाराशरं मुनिवर कृतपोवांह्निकक्रियम। मैत्रैयः परिपप्रच्छ प्रणिपत्याभिवाद्य च। त्वत्तो हि मेदाध्ययनमधीतमखिलं गुरो। धर्मशास्त्राणि सर्वाणि तथाङ्गानि यथाक्रमम्। त्वत्प्रसादान्मुनिश्रेष्ठ मामन्ये नाकृतश्रमम। वक्ष्यान्ति सर्वशास्त्रेषु प्रायशो येह्यपि विद्विषः। सोह्यहमिच्छामि धर्मज्ञ श्रोतुं त्वत्तोयथा जगत। बभुव भूयश्च यथा महाभाग भविष्यति। तन्मयं जगद्ब्रह्मन्यतश्चैतच्चराचरम्। लीनमासीद्यथा यत्र लयमेष्यति यत्र च। श्री सूतजी ने कहा, जब मुनि श्रेष्ठ पाराशरजी पूर्वाह्न क्रियाओं को करके अपने आसन

प्रकृति हमें बीमार नहीं पड़ने देना चाहती। साधारणतः जो लोग कुदरत के पास रहते हैं, साहचर्य बनाए रहते हैं और प्रकृति के मामूली नियमों का भी पालन करते हैं, वे बीमार नहीं पड़ते। बीमार पड़ने पर भी प्रकृति हमारी गलतियां सुधारने की चेष्टा करती है। रोग प्रकृति की वह क्रिया है, जिससे शरीर की सफाई