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श्री टौणा देव का ऐतिहासिक भव्य मंदिर अष्टभुजाकार 55 फुट ऊंचा, 18 बीघा क्षेत्र में फैला हुआ है। यह मंदिर सरकाघाट मुख्यालय से 7 किमी. की दूरी पर रमणीक एवं देव घाटियों के मध्य स्थित है… विश्व में देवभूमि के नाम से विख्यात हिमाचल प्रदेश में वर्ष भर मेलों का आयोजन होता रहता है। यहां

इंदौर शहर में  पुलिस थाने के सामने पंढरीनाथ मंदिर है। यह मंदिर विट्ठल (विष्णु) भगवान का मंदिर है। बहुत कम लोगों को पता होगा कि यह नाम  कैसे पड़ा और कौन हैं यह पंढरीनाथ। भगवान विष्णु, जिन्हें भक्त पंढरीनाथ, पांडुरंग, विट्ठल, विठोबा, विठू और न जाने कितने नामों से पुकारते हैं। मंदिर में विराजित भगवान

माघ मास को महात्मा मास भी कहा जाता है। ऐसा इसलिए कहा जाता है क्योंकि आध्यात्मिक उन्नति की दृष्टि से यह महत्त्वपूर्ण है। इस मास में स्नान-दान की विशेष महिमा बताई गई है। भारतीय संवत्सर का ग्यारहवां चंद्रमास और दसवां सौरमास माघ कहलाता है। मघा नक्षत्र से युक्त होने के कारण इस महीने का नाम 

शनि देव नाम सुनते ही लोगों के मन में एक अजीब सा भय व्याप्त हो जाता है। प्राचीन काल से ही शनि देव से अन्य देवता भयभीत ही रहे हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि राम भक्त हुनमान की भक्ति करने वालों का शनि देव कोई नुकसान नहीं कर सकते हैं। इस बात का

संत रविदास ने वाह्य आडंबरों के बजाय अंतस की श्रेष्ठता पर बल दिया। सदाचार और संयम को श्रेष्ठता का पैमाना बनाया, उसी के आधार पर जीवन जिया और लोगों को भी यही रास्ता अपनाने के लिए प्रेरित किया। जन्मजात श्रेष्ठता का उन्होंने आध्यात्मिक धरातल पर विरोध किया… अपनी उच्च आध्यात्मिक अनुभूति और श्रेष्ठ सामाजिक दर्शन

पहले मंडल में पराशर शाक्त्य ऋषि अग्नि को अनेक विशेषणों से विभूषित करते हुए उन्हें पतिव्रता स्त्री की तरह विशुद्ध बताते हैं। द्युतिमान सूर्य की तरह अग्नि समस्त संसार को धारण करती है। अनुकूल मित्र से संपन्न राजा की तरह अग्नि पृथ्वी पर निवास करती है। संसार अग्नि के सामने इस प्रकार बैठता है, जिस

एको द्रष्टाऽसि सर्वस्य मुक्तप्रायोऽसि सर्वदा। अयमेव हि ते बन्धो दृष्टारं पश्यसीतरम्। यहां पर अष्टावक्र साक्षीभाव की महिमा की तरफ संकेत करते हैं। यह साक्षीभाव ही सृष्टि का परम रहस्य है। एक तू ही सबका द्रष्टा और सदा-सर्वदा सत्य व मुक्त है या सत्यशः ही मुक्त है, लेकिन तू स्वयं को द्रष्टा के रूप में न

इस तरह पराजित होकर कुबेर मुकुट विहीन इंद्र के पास आया। जैसे ही कुबेर युद्ध से अलग हुआ, तो यहां चंद्रमा के पुत्र बुध ने अपनी अमोघ          माया का प्रसार किया। उससे चारों तरफ अंधकार छा गया। दानवों के बहुत प्रयत्न करने पर भी कुछ दिखाई नहीं पड़ा और इस अवस्था में बुध ने दानवी

इस धरा पर ऐसा कौन होगा, जो एक नीम के पेड़ को फलने देगा। वो नीम जिसके पत्ते और फल कड़वे होते हैं। नीम के पेड़ को अगर दूध से भी सींचा जाए, तब भी वह मीठा नहीं हो जाएगा।  निस्संदेह में तुम्हारा यह कृत्य वैसा ही है, जैसा कि तुम्हारी मां का था। यह