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यशोदा को पौराणिक ग्रंथों में नंद की पत्नी कहा गया है। भागवत पुराण में यह कहा गया है कि देवकी के पुत्र भगवान श्रीकृष्ण का जन्म देवकी के गर्भ से मथुरा के राजा कंस के कारागार में हुआ। कंस से रक्षा करने के लिए जब वासुदेव जन्म के बाद आधी रात में ही उन्हें यशोदा

माघ पूर्णिमा या माघी पूर्णिमा का हिंदू धर्म में बड़ा ही धार्मिक महत्त्व बताया गया है। वैसे तो हर पूर्णिमा का अपना अलग-अलग माहात्म्य होता है, लेकिन माघ पूर्णिमा की बात सबसे अलग है। इस दिन संगम (प्रयाग) की रेत पर स्नान-ध्यान करने से मनोकामनाएं पूर्ण तो होती ही हैं, साथ ही मोक्ष की प्राप्ति

भीमरूपी महारुद्रा, वज्रहनुमान मारुती। वनारी अंजनीसूता रामदूता प्रभंजना।। 1।। महाबली प्राणदाता, सकलां उठती बलें। सौख्यकारी दुःखहारी, धूर्त वैष्णवगायका।। 2।। दीनानाथा हरीरूपा, सुंदरा जगदंतरा। पातालदेवताहंता, भव्यसिंदूरलेपना।। 3।। लोकनाथा जगन्नाथा, प्राणनाथा पुरातना। पुण्यवंता पुण्यशीला, पावना पारितोषिका।। 4।। ध्वजांगे उचली बाहो, आवेंशें लोटला पुढें। कालाग्नी कालरुद्राग्नी, देखतां कांपती भयें।। 5।। ब्रह्मांडे माईली नेणो, आंवले दंतपंगती। नेत्राग्नी चालिल्या ज्वाला,

सांगुड़ा पीठ न केवल धार्मिक स्थल के रूप में, बल्कि समाज कल्याण का कंेद्र बनकर उभरा है। 18वीं सदी का यह आस्था स्थल पौड़ी गढ़वाल के सतपुली, बांगाट-व्यासघाट पर तिल्या के समीप नारद गंगा के तट पर ऊंची चट्टान पर विद्यमान है। यह बांगाट से दो किलोमीटर दूर स्थित है… देवभूमि उत्तराखंड में सांगुड़ा की

माना जाता है कि शबरी धाम वही जगह है जहां शबरी और भगवान राम की मुलाकात हुई थी। शबरी धाम अब एक धार्मिक पर्यटन स्थल में परिवर्तित हो गया है… भारत में मौजूद माता शबरी के मंदिरों में हर साल फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की सप्तमी को शबरी जयंती मनाई जाती है। इस बार

21वीं सदी के दौर में हिमाचल प्रदेश में कई शक्तिशाली व रहस्यमयी मंदिर अपने आप में अनेकों इतिहास छुपाए हुए हैं। ऐसा ही एक मंदिर करसोग के दूर दराज गांव कतांडा (नगेलड़ी) के पास विद्यमान है। इसकी मान्यता एक वृक्ष में लटके गाडि़यों के नंबर प्लेट में पूजने से है… देवभूमि हिमाचल अपने अलौकिक सौंदर्य व ऐतिहासिक

स्वामी विवेकानंद गतांक से आगे… इसमें शिष्यों के सम्मुख एक आदर्श योगी का उदाहरण प्रस्तुत हो गया। वे जो कुछ पढ़ते थे, उसे प्रत्यक्ष देखते भी थे। स्वामी जी का यह छोटा सा निवास स्थान आश्रम का संक्षिप्त रूप प्रस्तुत करने लगा। यह ऐसा लगता था कि जैसे किसी भारतीय महावृक्ष का पौधा अमरीका की

वह रुकी नहीं। चलती रही। इसी प्रकार चलते-चलते वह जंगल में एक खुली जगह जा पहुंची। वहां से आकाश साफ दीख रहा था और दीख रहे थे बादलों से लुका-छिपी खेलता चांद तथा टिम-टिम करते तारे। अब सर्दी बढ़ गई थी और ठंड असहनीय हो गई थी। नन्हीं लड़की का शरीर बुरी तरह कांपने लगा

सद्गुरु  जग्गी वासुदेव इच्छाओं और वासनाओं से लड़ना महिषासुर से लड़ने जैसा है अगर आप अपने जीवन का लक्ष्य तय कर लेते हैं, फिर आप कुछ खोएंगे नहीं। हरेक व्यक्ति के अंदर प्रवृत्तियां मौजूद हैं। आप के ऊपर पूर्व कर्मों का प्रभाव है, वे आपको इधर-उधर ढकेलते हैं। अपनी सारी इच्छाओं और वासनाओं से आप