आस्था

स्वामी विवेकानंद गतांक से आगे… तुम चिंता मत करो, वो लौट आएगा। इस स्थान को छोड़कर   वह कहीं नहीं जाएगा। नरेंद्र ने बुद्ध गया में जाकर बोधिसत्व के मंदिर में दर्शन किए। बोधिवृक्ष के नीचे पवित्र प्रस्तारसन पर  नरेंद्र ध्यानस्थ हुए। उनको गुरु भाइयों ने ध्यान टूटने पर बड़े प्यार से देखा। नरेंद्र पत्थर की

वहां पर सर्वप्रथम दर्भ, मृगचर्म, वस्त्र, बिछाकर सुखासन तैयार करें, जिस पर बैठने में किसी प्रकार की असुविधा प्रतीत न हो। उस आसन पर बैठकर अपने शरीर के मध्य भाग, ग्रीवा, सिर को दण्ण के समान सीधा कर ले। हे शिष्य! इस प्रकार योग मार्ग में प्रवृत्त होने वाले के सम्मुख अनेक प्रकार के विघ्न

अनीश्वरवाद का पृष्ठ पोषण भौतिक विज्ञान ने यह कहकर किया कि ईश्वर और आत्मा के अस्तित्व का ऐसा कोई प्रमाण नहीं मिलता, जो प्रकृति के प्रचलित नियमों से आगे तक जाता हो। इस उभयपक्षीय पुष्टि ने मनुष्य की उच्छृंखल अनैतिकता पर और भी अधिक गहरा रंग चढ़ा दिया, तदनुसार वह मान्यता एक बार तो ऐसी

भारतीय इतिहास के पन्नों में यह लिखा है कि ताजमहल को शाहजहां ने मुमताज के लिए बनवाया था। वह मुमताज से प्यार करता था। दुनिया भर में ताजमहल को प्रेम का प्रतीक माना जाता है, लेकिन कुछ इतिहासकार इससे इत्तेफाक नहीं रखते हैं। उनका मानना है कि ताजमहल को शाहजहां ने नहीं बनवाया था, वह

ओशो अध्यात्म का अर्थ है आत्म विकास। जीवन का, महाजीवन का, परमजीवन का विकास। जीवन है जन्म और मृत्य के बीच की गति। महाजीवन है, जन्म और मृत्यु की अनंत शृंखलाओं की महागति। परमजीवन है, परमात्मा में परमगति अर्थात पूर्ण विश्राम। जीवन और महाजीवन प्रकृति का हिस्सा है। परमजीवन हमारा चुनाव है, हमारी स्वतंत्रता है,

जेन कहानियां जेन गुरु इक्यू छुटपन से ही प्रत्युत्पन्न मति थे। उनके गुरु के पास एक दुर्लभ और बेशकीमती चाय का प्याला था। वह प्याला इक्यू के हाथ से टूट गया। वे बड़े भयभीत हुए। गुरु को अपनी तरफ आते देखकर  इक्यू ने प्याले के टुकड़े अपनी पीठ के पीछे छिपा लिए। जैसे ही गुरु

बाबा हरदेव हम जो भी देखते हैं, सब रूपवान है। जो भी हम देखते हैं, साकार है और प्रत्येक वस्तु का आकार अलग-अलग है। प्रत्येक वस्तु का गुण भिन्न-भिन्न है। हम जहां-जहां भी जाते हैं, हमारी साकार से मुलाकात होती है, सीमा से ही मिलाप होता है, निराकार से हमारी मुलाकात नहीं हो पाती और

चौदहवें दिन का युद्ध अविलक्षण रूप से सूर्यास्त के बाद तक चलता रहा और भीमपुत्र घटोत्कच, जो अर्ध-असुर था, कौरव सेनाओं का बड़े पैमाने पर संहार करता रहा। आमतौर पर असुर रात्रि के समय बहुत अधिक शक्तिशाली हो जाते हैं। दुर्योधन और कर्ण ने वीरता से उसका सामना किया और उससे युद्ध किया। अंततः जब

इसीलिए आज भी वास्तुदेवता का पूजन होता है। देवताओं ने उसे वरदान दिया कि तुम्हारी सब मनुष्य पूजा करेंगे। इसकी पूजा का विधान प्रासाद तथा भवन बनाने एवं तडाग, कूप और वापी के खोदने, गृह-मंदिर आदि के जीर्णोद्धार में, पुर बसाने में, यज्ञ-मंडप के निर्माण तथा यज्ञ-यागादि के अवसरों पर किया जाता है। इसलिए इन