आस्था

स्वामी विवेकानंद गतांक से आगे… मैं कहता हूं आज रात को काली के मंदिर में जाकर मां को प्रणाम करके जो मांगोगे, मां तुझे वह सब देगी, यकीन हो या न हो। श्री रामकृष्ण की प्रस्तरमयी जगतमाता क्या चीज है, उसकी परीक्षा करके देखनी होगी, नरेंद्र ने सोचा। रात का एक पहर बीत चुका था।

महाभारत के पात्र कर्ण कभी भी शकुनी की पांडवों को छल-कपट से हराने की योजनाओं से सहमत नहीं था। वह सदा ही युद्ध के पक्ष में था और सदैव ही दुर्योधन से युद्ध का ही मार्ग चुनने का आग्रह करता। यद्यपि वह दुर्योधन को प्रसन्न करने के लिए द्यूत क्रीड़ा के खेल में सम्मिलित हुआ

निःसंदेह युग के महान दार्शनिकों में से रूसो और मार्क्स की भांति ही फ्रैडरिक नीत्से की भी गणना की जाए। इन तीनों ने ही समय की विकृतियों को और उनके कारण उत्पन्न होने वाली व्यथा-वेदनाओं को सहानुभूति के साथ समझने का प्रयत्न किया है। अपनी मनःस्थिति के अनुरूप उपाय भी सुझाए हैं। अपूर्ण मानव के

मछेंद्रनाथ बोले, मैं तो यती नाम से प्रसिद्ध होऊंगा ही, पर मेरे मन में एक शंका है। हनुमानजी मुस्करा कर बोले, क्या? तब योगीराज ने कहा , आपने त्रिकालदशी होकर मेरे से वाद-विवाद क्यों किया? आपसे मेरी पहली भेंट नागाश्वत्थ वृक्ष के तले हुई थी। उस समय सांवर विद्या की कविता लिखवाकर आपने ही मुझे

गतांक से आगे… आप्तोक्तिं खननं तथोपरिशिलाद्युत्कर्षणं स्वीकृर्ति निक्षेपः समपेक्षते न हि बहिः शब्दैस्तु निर्गच्छति तद्वद् ब्रह्मविदोपदेशमननध्यान स्वममलं तत्त्वं न दुर्युक्तिभिः।। पृथ्वी में गड़े हुए धन को प्राप्त करने के लिए जैसे पहले किसी विश्वसनीय पुरुष के कथन की और फिर पृथ्वी को खोदने, कंकड़-पत्थर को हटाने तथा प्राप्त हुए धन को स्वीकार करने (अपना बनाने)की

श्रीश्री रवि शंकर कोई भी उत्सव तभी वास्तविक हो सकता है जब दिल में वैराग्य का भाव हो। जब मन भीतर की ओर मुड़कर उस अनंत और कभी नहीं बदलने वाले स्वरूप की ओर चला है और जब आप अपने भीतर के गहन में उस अनंत को देखते हैं तो फिर जन्म और मृत्यु का

जेन कहानियां गासन को उनके गुरु तेकीसुई अपना उत्तराधिकारी चुन चुके थे। तेकीसुई की मृत्यु से तीन दिन पहले गासन उनके बिस्तर के पास बैठे थे। कुछ समय पहले एक जेन आश्रम आग की भेंट चढ़ चुका था। गासन उसके पुनर्निर्माण में लगे हुए थे। तेकीसुई ने इसी संदर्भ से पूछा, आश्रम का निर्माण पूरा

उभयोः काष्ठयोर्मध्ये भ्रमतो मंडलानि तु। दिवा नक्तच सूर्यस्य मन्दा शीघ्र च वैं गतिः।। मंदाहिन यस्मिन्नयने शीघ्रा नक्तं तदा गतिः। शीघ्रा निशि यदा चास्या तदा मन्दा दिवा गतिः।। एक प्रमाणमेवैय मार्ग याति दिवाकरः। अहोरात्रेण भुङक्ते समस्ता राशयो द्विज।। षडेव राशीन यो भुङक्ते रात्रावन्याश्च षड्दिवा। राशिप्रमाणजनिता दीर्घह्यत्वात्मता दिने।। तथा निषायां राशीनां प्रमाणैलघुदीर्घता। दिनादेर्दाेर्घहनस्वत्वं तद्भागेनैव जायते।। उत्तरे प्रक्रमेशीघ्रा

इन नौ चक्रों में से किसी भी एक चक्र का ध्यान करने पर सिद्धियां और मोक्ष साधक के अधिकार में हो जाते हैं। कठोपनिषद में यम के द्वारा नचिकेता को जिस अग्नि का उपदेश दिया गया था, कुछ विद्वान उसे कुंडलिनी शक्ति ही समझते हैं। पाश्चात्य देशों के विद्वान इसे सरपेंट फायर पुकारते हैं। रूस