प्रतिबिम्ब

सूर्य सेन भारत की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करने वाले प्रसिद्ध क्रांतिकारियों और अमर शहीदों में गिने जाते हैं।  सूर्य सेन ‘नेशनल हाई स्कूल’ में उच्च स्नातक शिक्षक के रूप में कार्यरत थे, जिस कारण लोग उन्हें प्यार से ‘मास्टर दा’ कहते थे।‘चटगांव आर्मरी रेड’ के नायक मास्टर सूर्य सेन ने अंग्रेज सरकार को सीधे

किसी एक कहानी के साथ समय कई नई कहानियां जोड़ देता है। इसी कारण कालांतर में कहानी के उत्स को पहचानना और उसके पड़ावों को चिन्हित करना मुश्किल हो जाता है। यह प्रक्रिया हमें इस बात के लिए सजग करती है कि हम अपनी कहानी लेकर सजग रहें।  देश के अन्य हिस्सों की तरह हिमाचली

हाल ही में संसद में हिमाचल प्रदेश की शिमला संसदीय क्षेत्र से सांसद वीरेंद्र कश्यप के प्रदेश के जातीय तथा निचले भूभागों में बोली जाने वाली बोलियों के लुप्त हो जाने पर चिंता जताई। इन बोलियों में किन्नौरी जनजातीय क्षेत्रों, लाहुल-स्पीति आदि अनेक स्थानों की जनभाषाएं हैं, जो लुप्त होने के कगार पर हैं। हालांकि

चंबा जनपद की हिमाच्छादित पर्वत शृृंखलाएं व मनमोहक घाटियां जिस तरह जनमानस को अपनी ओर आकर्षित करती हैं, उसी तरह लोक साहित्य में ढली लोक संवेदनाएं भी इसकी खूबसूरती में चार चांद लगाती हैं। जीवन के विविध आयाम चंबियाली लोक साहित्य में यत्र- तत्र बिखरे पड़े हैं। इन अमूल्य मोतियों को चुनने का कार्य कई

हिमाचल कला, संस्कृति और भाषा अकादमी के तीन विषय हैं-कला संस्कृति और भाषा। नियमानुसार बजट को तीन भागों में बांट कर कला, संस्कृति और भाषा पर व्यय किया जाना चाहिए। खेद की बात है कि कला पर बहुत कम बजट व्यय किया जाता है। पुरस्कारों में भी कला के नाम पर किसी बाहरी कला शिक्षक

मर्म संवेदनशील होता है, मर्म तक पहुंचते भी संवेदनशील लोग ही हैं। इसी कारण यह अपेक्षा की जाती है कि शब्दों के जरिए जीवन और संसार के मर्म को उद्घाटित करने वाले शिल्पियों को भी कुछ ऐसी सुविधाएं प्रदान की जाएं, जो उनकी संवेदनशीलता को बचाए रखने में सहयोगी हों। अन्यथा लाभ-हानि की कठोर दुनिया

एक नवंबर 1966 को भाषा एवं संस्कृति के आधार पर हिमाचल का वर्तमान स्वरूप उभरा था। डा. यशवंत सिंह परमार मुख्यमंत्री और लाल चंद प्रार्थी, भाषा एवं संस्कृति विभाग के मंत्री बने। इसी दौरान भाषा एवं संस्कृति अकादमी का गठन हुआ। प्रार्थी जी ने इसके उत्थान के लिए योजनाएं बनाइर्ं और उनको लागू भी किया।

कवि, लेखक, पत्रकार माखन लाल चतुर्वेदी का जन्म 4 अप्रैल, 1889 ई. में बावई, मध्य प्रदेश में हुआ था। यह बचपन में काफी रुग्ण और बीमार रहा करते थे। इनका परिवार राधावल्लभ संप्रदाय का अनुयायी था, इसलिए स्वभावतर् उनके व्यक्तित्त्व पर इसका गहरा असर पड़ा।  प्राथमिक शिक्षा की समाप्ति के बाद यह घर पर ही

डा. नलिनी विभा नाजली साहित्य और कलाएं सूक्ष्म भावाभिव्यक्ति के सशक्त एवं खूबसूरत माध्यम हैं। हाल ही में साहित्य अकादमी नई दिल्ली का वर्ष 2016 का पुरस्कार नासिरा शर्मा को उनके उपन्यास ‘पारिजात’ पर मिलना इस बात की पुष्टि करता है कि साहित्य-क्षेत्र में महिलाओं ने अपनी उपस्थिति बख़ूबी दर्ज करवाई है। हिमाचल प्रदेश में