संपादकीय

जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 को समाप्त करने के साढ़े चार साल बाद प्रधानमंत्री मोदी पहली बार कश्मीर घाटी में गए, तो फिजाएं बदली हुई थीं। प्रधानमंत्री जम्मू और लद्दाख क्षेत्रों में जाते रहे हैं...

या तो यहां नक्शा बड़ा था, या हमने उसे पढ़ा नहीं। हिमाचल में जो डाक्टर बन गए, वे हड़ताल के सुपुर्द हैं और जो बन रहे हैं, उनकी गलियों में कीचड़ भरा है।

भारत में नकली दवाओं के उत्पादन और प्रसार का बाजार करीब 35,000 करोड़ रुपए का है। यह कोई सामान्य आंकड़ा नहीं है। इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि कितने व्यापक स्तर पर नकली दवाएं बनाई जा रही हैं और औसत बीमार आदमी को बेची जा रही हैं! कितनी बीमारियां घनीभूत हो रही हैं और कितनों पर मौत का साया मंडरा रहा है? यह बाजार इतना व्यापक कैसे बना, यह हमारी प्रशासनिक और जांच संस्थाओं पर बड़ा सवाल है। ये नकली दवाएं, जिन्हें औषधि कहना ही गलत और पाप है, किसी गांव में या उपेक्षित कस्बे के किसी कोने में चुपचाप नहीं बनाई जा रही हैं, बल्कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र गाजियाबाद में धड़ल्ले से बनाई जाती रही हैं

विकास के नए स्रोत पर खड़ी हिमाचल सरकार खुद को चिन्हित करती हुई, नागरिक आशाओं की पैरवी कर रही है। राजनीतिक घटनाक्रम के अतीत से निकल कर सुक्खू सरकार के पैगाम अपनी तीव्रता के केंद्र बिंदुओं पर प्रकाश डाल रहे हैं। गारंटियों की इतिला के बाद विकास की गंगा के साथ मुख्यमंत्री के संदेश स्पष्ट हैं और इसी आधार पर कांगड़ा व हमीरपुर के नाम दर्ज 861 करोड़ अपनी कहानी बता रहे हैं। लाभान्वित विधानसभा क्षेत्र मुखातिब हैं, तो सरकार की प्राथमिकताएं भी चमत्कार कर रही हैं। वर्षों से एक नए बस स्टैं

सर्वोच्च अदालत की संविधान पीठ ने संविधान पीठ का ही फैसला बदल दिया। फर्क इतना था कि 1998 की पीठ पांच न्यायाधीशों की थी, जिसने ‘नरसिम्हा राव बनाम सीबीआई’ मामला सुना था और 3-2 न्यायाधीशों के बहुमत से फैसला सुनाया था। अब संविधान पीठ सात न्यायाधीशों की है। मुद्दा संविधान के अनुच्छेद 105 (2) और 194 (2) के तहत सांसदों और विधायकों के, सदन के भीतर, विशेषाधिकार का है। पहला केस झामुमो सांसदों को दी गई घूस का था, जिसके एवज में उन्होंने तत्कालीन नरसिम्हा राव सरकार के समर्थन में वोट दिए थे। वह अल्पमत सरकार थी और बहुमत के लिए कई सांसदों को ‘खरीदा’ गया था। विशेषाधिकार यह रहा है कि सांसद और विधायक सदन में अपना वोट बेच सकते थे। संविधान पीठ ने भी इसे ‘माननीयों’ का विशेषाधिकार करार दिया था। ऐसी घूस के लिए उनके खिलाफ आपराधिक मुकदमा नहीं चलाया जा सकता था। यदि ‘माननीय’ रिश्वत ले

हिमाचल में सडक़ों की परिभाषा को सुदृढ़ता का पैगाम देते हुए केंद्रीय भूतल परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने एक लाख करोड़ का खाका पेश किया है। यह दूसरी बार है कि गडकरी हमीरपुर आ कर सडक़ परियोजनाओं की महत्त्वाकांक्षा में हिमाचल को वरदान दे रहे हैं। इससे पूर्व पिछले लोकसभा चुनाव से पूर्व उन्होंने राष्ट्रीय उच्च मार्गों के साथ-साथ फोरलेन परियोजनाओं का हवाला दिया था। करीब चार हजार करोड़ की अधोसंरचना निर्माण की जमीन पर उद्घाटन व शिलान्यासों की श्रृंखला बना कर गडकरी एक साथ कई पैगाम व प्रतिबद्धता का सबूत देने से नहीं चूकते। हिमाचल की दृष्टि से सडक़ परिवहन की अनिवार्यता को इन परियोजनाओं के

आम चुनाव की घोषणा हुई भी नहीं, लेकिन नेताओं के कीचड़ उछालने और आपत्तिजनक शब्द बोलने का सिलसिला शुरू हो गया है। प्रधानमंत्री मोदी के लिए पहले कांग्रेस ने खूब अपशब्द कहे हैं, लेकिन अब लालू यादव ने ऐसा मुद्दा उछाला है कि मोदी और भाजपा ने उसे लपक लिया है। लालू ने सार्वजनिक मंच से कहा है कि मोदी का अपना परिवार तो नहीं है, लिहाजा वह ‘परिवारवादी पार्टियां’ कहते रहते हैं। मोदी हिंदू भी नहीं हैं, क्योंकि मां के शोक में उन्होंने सिर नहीं मुंडवाया और न ही दाढ़ी साफ कराई। प्रधानमंत्री ते

छह विधायकों की बगावत ने प्रदेश के संबोधन, सरकार के उद्बोधन और विपक्ष के सम्मोहन बदल दिए। कई टीलों पर सवार रणनीतियां बता रही हैं कि बेमौसमी बरसात में बादल गरज रहे हैं। बहरहाल केंद्र बनाम हिमाचल, भाजपा बनाम कांग्रेस और सत्ता बनाम बागी विधायकों के बीच जारी द्वंद्व और राजनीतिक रस्साकशी के बीच सरकार अपना रुतबा तथा सरकार के बीच अपने नेताओं का रुतबा बढ़ा रही है। कैबिनेट रैंक के प्रशस्तिपत्र कुछ बंट गए और कई अन्य तैयार हो रहे हैं। बादलों की गर्जना के बीच सरकार

अंब-अंदौरा के बाद एक और वंदे भारत ट्रेन हिमाचल के नजदीक पहुंच रही है। दरअसल वैष्णो देवी दौड़ रही वंदे भारत अब पठानकोट कैंट में रुकेगी, तो पंख फैलाए हिमाचल को दूर से ही सही इसमें बैठने का मौका मिल जाएगा। हम इसमें भी खुश हैं कि पठानकोट से ही देश के साथ कदमताल का अवसर मिल गया, वरना सपनों की ट्रेन तो आज भी कम चौड़ी पटरियों पर जगह तलाश रही है। वंदे भारत का पठानकोट में रुकना हिमाचल को कितना समृद्ध कर रहा है, इसको लेकर शाबाशियों और आत्म श£ाघा का एक दौर जरूर चलेगा, लेकिन हिमाचल की असली ट्रेन है कहां। अब अंब-अंदौरा की वंदेभारत ज्यादा व्यावहारिक होगी या पठानकोट कैंट की, इस पर यात्रीगण जरूर ध्यान देंगे, लेकिन राहत यह कि दिल्ली का सफर सीधा होने जा रहा है। पर्यटन और ट्रेन के