संपादकीय

तमिलनाडु में सत्तारूढ़ पार्टी द्रमुक न केवल सनातन-विरोधी है, बल्कि भारत-विरोधी भी है। संविधान धार्मिक आस्था और पूजा-पद्धति की अनुमति तो देता है, लेकिन भारत-विरोध का कोई प्रावधान नहीं है। भारत-विरोध के मायने हैं कि आप देश की संप्रभुता, एकता, अखंडता और राष्ट्र के तौर पर अपमान कर रहे हैं। कोई साजिश रच रहे हैं। उन्हें चुनौती दे रहे हैं। यह सरासर देशद्रोह है और नई न्याय संहिता में इस अपराध की सजा स्पष्ट हो जाएगी। यह संहिता 1 मार्च से देश भर में लागू हो रही है। द्रमुक सरकार ने एक विज्ञापन छपवाया है, जो इसरो

कांग्रेस खुद पर अफसोस या गुस्सा करे, अहंकार की दौलत में बिक रहा जमाना। जाहिर है हिमाचल से राज्यसभा की यात्रा ने एक सरकार के वजूद को छील दिया और इस छिछालेदर में सारी खुन्नस निकल गई। राजनीति अपनी बस्ती नहीं चुन सकती, तो अपनी ही अस्थि उठानी पड़ेगी, वरना भाजपा के कुल 25 विधायकों के सामने कांग्रेस के चालीस इतने सक्षम थे कि अभिषेक मनु सिंघवी यहां से राज्यसभा का तिलक लगाकर लौटते, मगर लुटिया डूबी जहां आशाएं तैर रही थीं। इस गिनती पर कौन भरोसा करे जिसने भाजपा के हर्ष में अपनी तौहीन कबूल की। आश्चर्य यह कि जिस अकड़ से सत्ता चल रही थी, उसकी

स्वतंत्र भारत के इतिहास में पालाबदल और क्रॉस वोटिंग का सबसे सनसनीखेज और विवादास्पद उदाहरण 1969 का राष्ट्रपति चुनाव था। 16 अगस्त, 1969 को पांचवें राष्ट्रपति का चुनाव हुआ। लोकसभा के पूर्व स्पीकर नीलम संजीवा रेड्डी कांग्रेस के अधिकृत उम्मीदवार थे, लेकिन तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी उनकी उम्मीदवारी से सहमत नहीं थीं, लिहाजा उन्होंने पार्टी प्रत्याशी के खिलाफ, अपने उम्मीदवार के तौर पर, लोकप्रिय मजदूर यूनियन नेता वीवी गिरि को चुनाव मैदान में उतार दिया। गिरि ने निर्द

भारत सरकार ने राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय (एनएसएसओ) का 2022-23 के घरेलू उपभोग व्यय सर्वेक्षण का सारांश छापा है। औसतन भारतीय परिवार, उसके खर्च और ‘गरीबी’ पर यह महत्वपूर्ण आर्थिक डाटा है। नीति आयोग ने इसकी रपट जारी की है। सबसे महत्वपूर्ण निष्कर्ष यह है कि देश की आबादी का 5 फीसदी से भी कम लोग, यानी 7.20 करोड़ भारतीय ही, ‘गरीब’ रह गए हैं। गरीबी का यह डाटा 2011-12 के बाद सामने आया है। एक ऐसा ही सर्वेक्षण 2017-18 में भी आया था। उसमें ‘गरीबी’ बढ़ती हुई दिख रही थी, लिहाजा मोदी सरकार ने वह रपट छिपा ली थी। तब सरका

शिमला के मॉल रोड पर कफन बिकने लगे, हमारी आंखों के सामने कत्ल दिखने लगे। जिस मॉल रोड पर हिमाचल की कानून व्यवस्था ना•ा करती है। जहां भीड़ में भी शिष्टाचार की संगत चलती है। जहां पुलिस चौकसी के इंतजाम गारंटी देते हैं कि हिमाचल शांत है, वहां पुलिस रिपोर्टिंग रूम में कफन ओढ़े एक युवा अपने ही कत्ल की शिकायत कर गया। यह दृश्य वीभत्स है और हमारी व्यवस्था के सामने लाश बनकर कई प्रश्न उठा देता है। बेशक कत्ल की वारदात एक रेस्तरां के भीतर होती है, लेकिन गुनाह की परतें मॉल रोड से होकर गुजरीं और एक निर्मम हत्या की चीखों के बीच ह

बहुत पहले जब संस्कृति भूगोल बनाती थी, तब डोगरी और कांगड़ी के बीच सेतु बन कर खड़ा एक लोकगीत ‘कूंजां जाई पेइयां’ हर सरहद के पार पहुंच जाता था। आज भी मल्लिका पुखराज के बाद उनकी बेटी ताहिरा सैयद...

अमरीका, यूरोप, ब्रिटेन के बाद भारत में खसरा फैल रहा है। हालांकि यह कोरोना महामारी सरीखा जानलेवा संक्रमण नहीं है, लेकिन त्वचा से जुड़ा खतरनाक संक्रमण जरूर है। इसे घरेलू स्तर पर ‘माता’, ‘चेचक’, ‘शीतला माता’ कहा जाता है...

कुछ दिन पहले विपक्ष का जो ‘इंडिया’ गठबंधन बिखरता और समाप्त-सा लग रहा था, वह अचानक एकजुट होता लग रहा है। चुनावों से पहले यह एक महत्वपूर्ण राजनीतिक घटनाक्रम है। उप्र में 63 सीटों पर समाजवादी पार्टी और 17 सीटों पर कांग्रेस का गठबंधन सुनिश्चित हो चुका है। अब ‘न्याय यात्रा’ में अखिलेश यादव और राहुल गांधी साथ-साथ दिखाई देंगे। दिल्ली, हरियाणा, गोवा, गुजरात और चंडीगढ़ की 46 सीटों पर आ

स्मार्ट सिटी परियोजना के तहत विकसित हो रहे हिमाचल के दो शहरों के बजट की दास्तान यह समझाने में असमर्थ है कि भविष्य की तिजोरी में क्या छिपा है। घाटे के शहरों पर लादे गए प्रशासनिक व आर्थिक सपने केवल सियासी ताजपोशी के मंसूबे बनकर रह गए हैं। आखिर नागरिक भागीदारी में धर्मशाला और शिमला जैसे शहरों का भविष्य पढ़ा कहां जाए। सिर्फ आंकड़ों के लाग-लपेट में शहरीकरण की यह तस्वीर धुंधली है। कम से कम राष्ट्रीय स्वच्छता के मानदंडों व सर्वेक्षणों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि शिमला जैसे शहर की तहजीब भी अब इस