विचार

पुस्तक समीक्षा * पत्रिका का नाम : दृष्टि * संपादक : अशोक जैन * कुल लघुकथाएं : 90 * मूल्य : 500 रुपए (छह अंकों के लिए) लघुकथा को पूर्णतया समर्पित अर्द्धवार्षिक पत्रिका ‘दृष्टि’ का अंक नंबर तीन (जुलाई-दिसंबर, 2017) साहित्यिक बाजार में आ गया है। यह पत्रिका दो वर्षों से छप रही है तथा

प्रो. एनके सिंह लेखक, एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया के पूर्व चेयरमैन हैं प्रदेश को विकास की अपनी प्राथमिकताएं जल्द तय करनी चाहिएं। चिन्हित लक्ष्यों पर एक समय सीमा के भीतर काम होना चाहिए। पहली प्राथमिकता पर्यटन है, लेकिन इसका विकास सड़कों, रेल व उड्डयन पर निर्भर करता है। दुखद यह है कि इन तीनों मामलों

जिला चंबा को पिछड़े जिला में 114वां स्थान मिलने से प्रदेश के राजनेताओं द्वारा अब तक किए प्रयासों को कटघरे में लाकर खड़ा कर दिया है। प्राचीनकाल में विकसित रहे इस जिला को आखिर इस पायदान तक पहुंचाने में क्या-क्या कारण रहे हैं आइए पढ़ें क्षेत्र के बुद्धिजीवियों के विचार ‘दिव्य हिमाचल’ जिला संवाददाता हामिद

रोमिल कौंडल, केंद्रीय विश्वविद्यालय,धर्मशाला एक वृक्ष की ही भांति मनुष्य के जीवन में भी कई चरण आते हैं। बचपन से लेकर बुढ़ापे तक जीवन की हर अवस्था का एक खास महत्त्व रहा है। कहीं बचपन के नटखट भाव, तो कहीं जवानी में देश, समाज, परिवार व व्यक्तिगत विकास के लिए फूटते ऊर्जा के स्रोत। बुढ़ापे

राष्ट्रीय पर्व की लोकतांत्रिक मशाल को प्रकाशमय रखने का गौरव धारण करके, हिमाचल एक ऐसी पृष्ठभूमि है जो स्वाधीनता के तिलक को अपने रक्त से सिंचित करती है। आजादी से लोकतंत्र के हर अक्षुण्ण पल की पहरेदारी में हिमाचली नायक का हर घर से ताल्लुक है, फिर भी फरियाद बन कर हम सम्मान की पलकों

अब यह मुद्दा फिल्म या महारानी पद्मावती के गौरव और उनकी अस्मिता का नहीं रहा, बल्कि कानून-व्यवस्था का बन गया है। देश के विभिन्न हिस्सों में करणी सेना के गुंडों ने जो फसाद के हालात बनाए हैं, उनके मद्देनजर यही कहा जा सकता है। बसें जलाई जा रही हैं, रेलगाडि़यां रोकी गई हैं, मॉल फूंके

राजेंद्र राजन लेखक, स्वतंत्र पत्रकार हैं बहुत कम लोग जानते हैं कि कैप्टन रामसिंह ने राष्ट्रगान ‘जन गण मन अधिनायक जय हे, भारत भाग्य विधाता’ की मूल धुन तैयार की थी। जिस राष्ट्र गान ने समूचे राष्ट्र को एक माला में पिरोया, उसके जन्मदाता कैप्टन राम सिंह हैं। खनियारा में जन्मे कैप्टन राम सिंह सेवानिवृत्ति

देवेंद्रराज सुथार, जालोर हमारे देश को गणतंत्र की राहों पर चलने से पहले स्वतंत्र होना पड़ा। और यह स्वतंत्रता हमें इतनी भी आसानी से नहीं मिली, जितनी की हम फेसबुक की प्रोफाइल पिक्चर को तीन रंगों में रंगकर अपनी राष्ट्रभक्ति साल में दो दिन छब्बीस जनवरी और पंद्रह अगस्त पर सार्वजनिक कर देते हैं। आजादी

रूप सिंह नेगी, सोलन कितने दुर्भाग्य की बात है कि मुट्ठी भर उपद्रवी तत्त्वों ने मात्र एक फिल्म का विरोध करते हुए हिंसक रुख अपना लिया। इस दौरान इन्होंने गुरुग्राम में स्कूली बच्चों की बस पर पत्थरबाजी और तोड़फोड़ की वारदात की। इस घटना की जितनी भर्त्सना की जाए, कम होगी। कुछ वर्षों से गुंडागर्दी