विचार

डा. भरत झुनझुनवाला ( लेखक, आर्थिक विश्लेषक एवं टिप्पणीकार हैं ) छोटे उद्योगों की मुख्य समस्या टैक्स दरों की है। इसे सुलझाने के बाद ही अन्य कदमों की सार्थकता है। सरकार को समझना चाहिए कि छोटे उद्योग देश की अर्थव्यवस्था में अहम सार्थक भूमिका निभाते हैं। पर्यावरण सुरक्षा के लिहाज से भी लघु उद्योग, बड़े

( हेमांशु मिश्रा लेखक, पालमपुर से अधिवक्ता हैं ) बिना कैबिनेट की अनुशंसा के और राज्यपाल के आदेशों के, बिना किसी अध्यादेश के और उच्च न्यायालय एवं केंद्र सरकार से बातचीत किए केवल प्रेस विज्ञप्ति में लिखने मात्र से राजधानी की घोषणा जनता के मानस पटल पर उतर नहीं रही है। यही कारण है कि

हिमाचल में बदलती चुनावी भाषा और राजनीतिक बोलियों के बीच बेअसर अगर कुछ है, तो आवारा पशुओं और वन्य प्राणियों की बढ़ती तादाद का प्रश्न। क्योंकि सियासी भूमि कभी बंजर नहीं होती, लिहाजा किसान-बागबान के उजड़े खेत पर नहीं उगती। हिमाचली प्रगति के हर आयाम के दूसरे छोर पर खड़ा बंदर, आवारा कुत्ता, गाय या

1967 से भारतीय राजनीति में गठबंधन का दौर चलता रहा है। जनता पार्टी का प्रयोग ऐसा था, जिसमें मुलायम सिंह और भाजपा (तब जनसंघ) साथ-साथ थे। समकालीन दौर में यूपीए का प्रयोग सामने आया, तो उसे सपा और बसपा सरीखे धुर विरोधियों ने एक साथ कांग्रेस को समर्थन दिया। दरअसल कांग्रेस के इर्द-गिर्द ही गठबंधन

( अवतार कपूर, निहारी, कांगड़ा ) हिमाचल में प्रत्येक वर्ष डप्लोमा इन एलिमेंटरी एजुकेशन (पूर्व में जेबीटी) के लिए लगभग 2800 विद्यार्थियों को सरकारी व निजी संस्थानों में प्रवेश दिया जाता है। इसके लिए विद्यार्थी की योग्यता जमा दो व न्यूनतम आयु सीमा 18 वर्ष रखी गई है। विद्यार्थियों की आयु न्यूनतम 18 वर्ष निर्धारित

( जयेश राणे, मुंबई, महाराष्ट्र ) भारतीय जवान चंदू चव्हाण को पाकिस्तान ने आखिरकार छोड़ दिया है। देशवासियों में जवान की घर वापसी से काफी राहत है। भारतीय जवानों के शरीर को छिन्न-भिन्न करने वाले पाकिस्तानी जवान गलती से उनकी सीमा में चले गए इस भारतीय जवान के साथ कैसा बर्ताव करते रहेंगे, उसकी चिंता

( डा. सत्येंद्र शर्मा, चिंबलहार, पालमपुर ) मासूमों की याद में, सब मिल रखें मौन, कुंभकर्णी नींद में प्रशासन, किसको बोले कौन? दोष दे रहे सड़क को या कोहरे को लोग, गति की थी जो तीव्रता, नहीं पकड़ते रोग। नियम फेंक कर भाड़ में, तोड़ रहे कानून, अंधे पट्टी बांधकर, चालक करते खून। शासन, खाकी

( सुरेश कुमार, योल, कांगड़ा  ) जिस प्रदेश के डाक्टर-अध्यापक हड़ताल पर हों, तो सहज ही प्रदेश की प्रगति के पायदान का अंदाजा लगाया जा सकता है। इन्हीं दो चीजों में यदि प्रदेश के पैर उखड़ गए, तो बाकी चाहे जितनी मर्जी प्रगति हो, सब बेमानी है।  

कुलदीप नैयर लेखक, वरिष्ठ पत्रकार हैं कश्मीर में जायरा वसिम का उदाहरण हमारे सामने हैं। उन्होंने बालीवुड फिल्म में अपने अभिनय के दम पर दर्शकों में गहरी छाप छोड़ी थी और फिल्म निर्माता व निर्देशक अमिर खान ने भी स्वीकार किया कि उनका कार्य सराहनीय था। महबूबा मुफ्ती से जब वसिम मिलीं, तो महबूबा ने