विचार

बर्फ की दौलत से लकदक पहाड़ और सामने आपदा प्रबंधन का गंजापन बरकरार। बर्फ की खुशामदी में व्यवस्था का प्रलाप अगर हिमाचल की छवि की आफत है, तो हमारे प्रबंधन की गरीबी का मलाल स्वाभाविक है। स्वयं राजधानी शिमला बर्फ के पिंजरे में बंद होकर रह गई, तो सर्द हवाओं  में उखड़े बाकी तंबू किसने

( सुरेश कुमार, योल, कांगड़ा  ) इंतजार था कि बर्फबारी हो और बर्फबारी हुई, तो अब इंतजार है कि कब हालात सामान्य हों। प्रदेश के नौ जिले बर्फबारी की वजह से ब्लैकआउट हो गए और अनुमान यह है कि कई जगहों पर विद्युत आपूर्ति बहाल होने में अभी दो दिन का वक्त लग सकता है।

( डा. सत्येंद्र शर्मा, चिंबलहार, पालमपुर ) सत्ता का ऐसा नशा, झूम रहा है चूर, घर में ही कुरुक्षेत्र है, कितना हुआ गुरूर। काला चश्मा चढ़ाकर, चला रहा तलवार, चाचू, बूढे़ बाप पर, कस कर किए प्रहार। बापू से हैं दूरियां, सगे बने गोपाल, पाला-पोसा क्या हुआ, फेंक दिए शिवपाल। अपने खासमखास पर, नित दिन

( राजकुंवर, मलकेहड़, पालमपुर ) क्या आज हम इतने संवेदनहीन हो चुके हैं कि एक तड़पते हुए इनसान को अस्पताल तक नहीं पहुंचा सकते या किसी मुसीबत में फंसे हुए इनसान की मदद नहीं कर सकते? क्या हमारे पास किसी दूसरे इनसान की मदद करने का समय ही नहीं बचा है? जब ऐसे वाक्य सामने

( ललित गर्ग लेखक, स्वतंत्र पत्रकार हैं ) महात्मा गांधी भी कहते थे कि हिंदोस्तान गांवों का देश है। यही कारण है कि पहली स्वतंत्र भारत की अंतरिम सरकार में गांव से आए बाबू राजेंद्र प्रसाद को कृषि मंत्री बनाया गया था, लेकिन बाद में सरकारों ने खेती और किसानों के बारे में फिर उस

आहुति अंतर्मन की तुम तह खोलो, बिन सोचे बिन समझे बोलो। सोच समझ है होती छोटी, केंद्र-बिंदु तुम जरा टटोलो।। शांत-चित्त होकर हे मानव!, देखो अंदर कितने दानव। करते क्रीड़ा देते पीड़ा, काटे कैसे कामी कीड़ा। कर्णप्रिय गुंजार बहुत हैं, आकर्षण शृंगार बहुत हैं। तुझे लुभाएंगे सब मिलकर, बड़ा सताएंगे सब मिलकर। इनसे नेह लगाना

कालेज पूरा हो गया था। राखी की शादी कुछ दिनों बाद थी। सभी दोस्तों को निमंत्रण पत्र मिल गए, सभी जाने की तैयारी के लिए खरीददारी करने लगे, लेकिन उसकी सहेली गुडि़या थोड़ी चुप सी थी। साथ तो होती पर, सबमें अकेली। घूमकर शाम को घर पहुंची। ‘आ गई तुम, गुडि़या’ मां ने पूछा, लेकिन

यही तो इन लोक-देवताओं की वास्तविकता का प्रमाण है। फिर इनसे क्षमा-याचना करके और दूध, दही, रोट, चूरमां, खीर तथा बलेई आदि देवता से संबंधित पकवान भेंट किया जाता है। तब दूध में खून आना अपने आप ही बंद हो जाता है। यदि इन लोक देवताओं में ऐसी-एसी करामातें न हों तो इन्हें मानें कौन?

हिमाचल में सृजन की उर्वरा जमीन पर उम्मीदों की नई कोंपलें फूटंेगी ऐसी संभावना है। साहित्य समाज का दर्पण होने के साथ-साथ अपने समय का प्रामाणिक दस्तावेज भी होता है। जो अपने समय, समाज, संस्कृति और इतिहास को भी रेखांकित करता है। हिमाचली रचनाकारों में भी आज अपने समय की विदू्रपताओं और विषमताओं को लेकर