वैचारिक लेख

शुरू से लेकर अंत तक किशोरावस्था अगले 6 से 7 वर्ष तक चलती है। किशोरावस्था में शारीरिक क्षमताओं व सलीके में पुनर्गठन होता है। मानव वृद्धि व विकास को समझना जरूरी है… पिछले एक वर्ष से भी अधिक समय से पूरा विश्व कोरोना महामारी के कारण अस्त-व्यस्त चल रहा है कि अब इस वर्ष भी

पूरन सरमा स्वतंत्र लेखक कालेधन और भ्रष्टाचार के खिलाफ वातावरण फिर गरमाने लगा है। अनशन-उपवास के कार्यक्रम होने लगे हैं। सुबह-सुबह मेरे गरीबखाने पर एक सरकारी नुमाइंदा आया और बोला -‘सरकार ने आपको दिल्ली बुलाया है।’ मैने पूछा -‘क्यों क्या बात है? मेरा दिल्ली में क्या काम।’ सरकारी नुमाइंदा बोला -‘आपसे सलाह-मशविरा करना है। सरकार

कोविड वैक्सीन का पहला डोज़ लेने के बाद शुरू के 15 दिन बहुत सावधानी के दिन हैं क्योंकि तब हमारा इम्यून सिस्टम बहुत कमज़ोर होता है और जरा सी असावधानी से हम कोविड या किसी अन्य वायरस के शिकार हो सकते हैं। इस दौरान बार-बार पानी पीना, हाथ धोना, भीड़ से बचना आदि सावधानियां आवश्यक

महिला प्रत्याशी के विजय होने पर लोग उस महिला को कम, उसके पति, पुत्र, पिता, ससुर को अधिक मुबारकबाद देते हैं। चौराहों पर चर्चा होती है कि फलां की घरवाली जीत गई। आखिर कब हम महिला के अस्तित्व, सामर्थ्य, अस्मिता व गरिमा को सम्मान देंगे? स्पष्ट है कि जब महिला जीत कर या मनोनीत होकर

सुरेश सेठ sethsuresh25U@gmail.com नगरी अंधेरी थी और राजा चौपट था, लेकिन फिर भी अगर आज भारतेंदु होते, तो उससे प्रेरित होकर ‘अंधेरी नगरी चौपट राजा’ न लिख पाते, क्योंकि यहां न टके सेर भाजी बिकती थी और न ही टके सेर खाजा। खाजा तो ख़ैर सरहदों पर नाकाबंदी के कारण खत्म हो गया। जब मन

उनके पिता रामोजी राव एक हवलदार थे। घर की माली हालत ठीक नहीं थी। मां जीजाबाई की मौत के बाद चार भाई-बहनों में सबसे छोटे रजनीकांत ने परिवार को सहारा देने के लिए ‘कुली’ का भी काम किया। इसके बाद वह बेंगलुरू ट्रांसपोर्ट सर्विसेज में कंडक्टर बन गए। फिर उन्होंने अभिनय में डिप्लोमा किया… मेहनत

दैनिक जीवन के तनाव और खराब जीवनशैली ने सबसे ज्यादा हमारी नींद को प्रभावित किया है। आलम यह हो गया है कि दिनभर की थकान के बाद भी बिस्तर में जाने के बाद लंबे समय तक नींद नहीं आती है। नींद पूरी न हो पाने का असर हमारे अगले दिन के कामकाज पर पड़ता है

अशोक गौतम ashokgautam001@Ugmail.com कल अपने प्रभु वैक्सीन की दूसरी डोज लगवाने आए थे। है तो छोटे मुंह बड़ी बात, पर मैं ही उनके और अस्पताल के बीच बिचौलिए की भूमिका निभाई है। तब मरता क्या न करता! प्रभु वैक्सीन लगवाने को अड़ गए तो बस, अड़ गए। तब मैंने उन्हें बहुत समझाया भी, ‘प्रभु! पहले

मैं समझता हूं कि कपड़े और कागज जैसी आवश्यक एवं उपयोगी वस्तुओं के स्थान पर तेल पर अधिक टैक्स वसूल करना ही उचित होगा। विशेषकर इसलिए कि तेल पर टैक्स वसूल करने का बोझ आम आदमी पर कम और समृद्ध वर्ग पर ज्यादा पड़ेगा। तेल के ऊंचे मूल्य सही हों तो भी सरकार की आलोचना