वैचारिक लेख

फिरोज बख्त अहमद स्वतंत्र लेखक चूंकि भारत अपनी स्वतंत्रता के 75वें वर्ष की ओर अग्रसर है, एक लंबे समय से यह सुगबुगाहट हो रही है कि क्या भारत का इतिहास पुनः लिखा जाए? यदि ऐसा प्रतीत किया जा रहा है तो इसका कारण क्या है? वास्तव में जो इतिहास हम लोग अब तक पढ़ते चले

इस तकनीक  के कारण अब यह संभव हो गया है कि महिला का पेशेवर जीवन भी चलता रहे और उसे मातृत्व सुख से भी वंचित न रहना पड़े। पश्चिम में कई प्रसिद्ध महिलाओं ने इस तकनीक को अपनाया है जबकि भारतवर्ष में यह अभी बहुत शुरुआती स्तर पर है। यह कहना अभी मुश्किल है कि

फ्रांस के सम्राट लुई चौदहवें ने नीदरलैंड के साथ काफी लंबे समय तक युद्ध किया। इस संघर्ष में जब उसे ख़ास सफलता नहीं मिली तो निराश होकर अपनी असफलता के लिए मंत्रियों को कोसने लगा। तभी उसके एक क़ाबिल मंत्री जीन कॉल्बर्ट ने करारा जवाब देते हुए कहा, ‘सर, किसी राष्ट्र का बड़ा या छोटा

सुरेश सेठ sethsuresh25U@gmail.com सत्यजीत रे बड़े फिल्म निर्देशक थे। उन्होंने बड़ी खूबसूरती से भारत की गरीबी को अपनी फिल्म ‘अपुर संसार’ में बेचा। ज़माने में हर चीज़ बिकाऊ हो जाने के साथ-साथ भारतीयता के नाम पर न केवल हमारी गरीबी बिकी, बल्कि हमारे रुआंसे और उदास गीत भी मंडी सज़ा कर बैठ गए। कवि शैले

चीन भी अपनी डिजिटल मुद्रा को लॉन्च करके मुद्रा और भुगतान प्रणाली में क्रांतिकारी बदलाव लाने की दिशा में कार्य कर रहा है। ऐसे में भारत के लिए डिजिटल करंसी को लॉन्च करना न केवल वित्तीय प्रणाली में बदलाव लाने की दिशा में महत्त्वपूर्ण है, बल्कि यह रणनीतिक दृष्टि से भी काफी आवश्यक है… भारतीय

दुर्भाग्य की बात यह है कि जनप्रतिनिधियों के वेतनमान लाखों रुपए एवं अन्य सुविधाएं होने के बावजूद उन्हें बुढ़ापे में हजारों रुपयों की पेंशन का लाभ भी प्राप्त है। उधर कर्मचारियों को न तो सही वेतन है, साथ ही पेंशन के सही लाभ भी नहीं मिल पा रहे हैं… लोकतांत्रिक प्रणाली में समानता के अधिकार

अशोक गौतम ashokgautam001@Ugmail.com उनकी पब्लिक शवासन रिसर्च में बड़ी कमांड है। इसलिए वे सम्मेलन में विश्वविद्यालय से खासतौर पर रिसर्चपर्चा पढ़ने को आमंत्रित किए गए थे। उन्हें भी तब किसी ऐसे सम्मेलन में रिसर्चपर्चा प्रस्तुत करने की जरूरत थी क्योंकि उनका प्रमोशन रुका हुआ था। उन्हें कहीं से रिसर्चपर्चा प्रजेंट करने का प्रमाणपत्र मिले तो

जिस प्रकार कांटे से कांटे को निकाला जाता है, उसी प्रकार संभव है कि इन दोनों के आपसी घर्षण का लाभ उठाकर इन दोनों पर ही नियंत्रण किया जा सके। सीधा उपाय यह है कि सरकार देश के आम आदमी यानी जनता को सक्षम बनाए क्योंकि इनके दुराचार की जानकारी जनता को तो होती ही

संस्था के निदेशक जितेंद्र वर्मा का कहना है कि अधिकारियों का यह कहना तर्कसंगत नहीं है कि इस कानून से अवैध कब्जों की प्रवृत्ति बढ़ेगी क्योंकि एफआरए में बिल्कुल स्पष्ट है कि जिस भूमि पर वर्ष 2005 से पहले का कब्जा है, उन्हीं दावों को स्वीकृतियां मिलेंगी, बाद का कोई भी दावा मान्य नहीं होगा…