वैचारिक लेख

हर भारतीय को अपने कत्र्तव्यों को निभाना होगा… किसी भी देश व समाज के संतुलित विकास में उस देश के नियम व कानून बहुत महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं। भारत में इन कानूनों-नियमों का शासन शास्त्र संविधान कहलाता है। शासन प्रशासन की शक्तियों का स्त्रोत हमारा भारतीय संविधान अपने आप में एक विशेष आयाम रखता

विपक्षी दल दुर्भावना से कार्रवाई का आरोप लगाने तक सीमित हैं। भ्रष्टाचार से निपटने का उपाय कोई राजनीतिक दल नहीं देता। इसके अलावा कांग्रेस और विपक्षी दल चुनावी राज्यों में भी यह नहीं बता रहे हैं कि भ्रष्टाचार के मामले में उनकी नीति क्या रहेगी। इस मुद्दे को चुनावी घोषणा पत्र में शामिल नहीं किया।

भौतिक संसार में भावनात्मक संतुलन बनाए रखने की सलाह दी जाती है, लेकिन कई मामलों में तो भावनात्मक होते हुए सामान्य रोना नहीं बल्कि खूब रोना, अनेक परेशानियों से बाहर निकलकर, बेहतर जि़ंदगी जीने के लिए ज़रूरी माना जाता है। जापान जैसे विकसित देश में तो आंसू निकलवाने के लिए टियर टीचर्स भी प्रशिक्षित किए

रूस के पतन के बाद अमेरिका को लगता था कि अब वह दुनिया की एकमात्र शक्ति बन कर रह गया है। लेकिन जल्दी उसे समझ आ गया कि दुनिया में एक सिविलाईजेशनल वार भी शुरू हो चुकी है, जिसमें इस्लाम के कट्टरपंथी ईसाइयत को ललकार रहे हैं। 9/11 के बाद यह लड़ाई और तेज हो गई। विश्व की सांस्कृतिक ताकतों में भारत का भी अपना स्थान है। दक्षिण पूर्व एशिया के बौद्ध देशों व जापान को मिला कर यह तीसरा सांस्कृतिक मंच बनता है। पिछले कुछ समय से यह मंच भी सक्रिय ही नहीं हुआ है, बल्कि विश्व गुरु की आवाज भी आनी शुरू हो गई है। चीन भी अमे

देश में बेटियां हर जगह असुरक्षित महसूस कर रही हैं। बेटियों की सुरक्षा के दावे कहां हैं, यह एक यक्ष प्रश्न है। यह सुलगता प्रश्न है कि बेटियां कब सुरक्षित होंगी। हाल में एक घटनाक्रम वाराणसी में घटित हुआ है जहां बीएचयू परिसर में कुछ गुंडों द्वारा एक लडक़ी के साथ अश्लील हरकतें करने और वीडियो बनाने की घटना सामने आई है। साल के 365 दिनों में महिलाओं पर अत्याचार होते रहते हैं। आज कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक महिलाओं पर अनगिनत अत्याचार हो रहे हैं, मगर सरकारों की कुंभकरणी नींद नहीं टूट रही है। आज कोई भी विश्वास के योग्य नहीं र

आजकल पुरस्कार मूली-गाजर के भाव मिल रहे हैं। देने वाले फेरी लगाकर आवाज लगाते हैं-पुरस्कार ले लो पुरस्कार। हर चीज के खरीददार मिलेंगे। फिर पुरस्कारों को कौन छोड़ता है-जब वे बिना योगदान के मात्र मोलभाव के मोल मिलने लगें तो। पुरस्कार साहित्य का है तो और भी सुविधा है। अपना आदमी होना चाहिए। अपना खेमा और अपनी विचारधारा। फिर पुरस्कार चाहे पंद्रह पृष्ठ की बुलेटिन पर देना पड़े, दे दिया जाता है। पुरस्कार के लिए मौलिक साहित्य लेखन भी अब आवश्यक नहीं रह गया। पुस्तक ऐतिहासिक हो-साहित्य का पुरस्कार आराम से मिल जाएगा। आ

हमारी लार जितना अधिक पेट में जाएगी, वह उतना ही शरीर को न्यूट्रल बनाएगी, यानी अम्लीय अवस्था का समाधान करेगी, पेट में अम्ल होने से जलन होती है, खट्टे डकार आते हैं जबकि हमारी लार ही उनका इलाज है। भोजन चबा-चबाकर खाने तथा पानी घूंट-घूंट कर पीने से उनमें ज्यादा से ज्यादा लार मिलती है जो मुफ्त में प्राकृतिक ढंग से हमारी एसिडिटी का इलाज करती है। लार में बहुत से जीवाणु होते हैं जो हमारे शरीर के लिए तो ठीक हैं, परंतु थूक देने पर दूसरों के लिए बीमारी का कारण बनते हैं। इसीलिए कहा गया है कि थूकना नहीं चाहिए। थूकने के बजाय ला

पुलिस विभाग में फील्ड गतिविधियों के लिए पेट्रोल और डीजल वाहनों और स्टाफ के लिए ई-वाहन उपलब्ध करवाए जाने के अतिरिक्त आबादी, क्षेत्रफल, अपराध दर, पर्यटकों की संख्या सहित अन्य कारकों को ध्यान में रखते हुए प्रदेश के पुलिस थानों की पुन:संरचना पर जल्दी निर्णय लिए जाने चाहिए ताकि व

‘मुंह में राम-राम बगल में छुरी’ बहुत पुराना मुहावरा है। ऐसे पुराने मुहावरों से अब किसी को चौंकाया नहीं जा सकता है, और न ही इसे एक तीखा व्यंग्य बना सच को झूठ के सात पर्दों से बाहर लाया जा सकता है। जब भी इस देश के आम आदमी के कल्याण और उद्धार के लिए ऊंची मीनारों से कोई घोषणा होती है, तो बरसों से भूख और अजहद गरीबी की कतार में खड़े लोग अप्रभावित रहते हैं। ये घोषणाएं न तो किसी नई उम्मीद का सिलसिला बनती हैं, और न ही किन्हीं नए सपनों के अदना से कुतुबमीनार रच पाती हैं। लोग तो विकास और प्रगति के आंकड़ों से चुंधियाने के बावजूद ‘अच्छे दिनों’ की कल्पना को किसी भूली बिसरी कहानी की तरह खो देना चाहते हैं, लेकिन क्या करें? एक सौ पैंतालीस करोड़ के इस भीड़ भरे देश