वैचारिक लेख

आरक्षण को लेकर जब तक राष्ट्रीय नीति नहीं बनेगी, राजनीतिक दल अपने फायदे के मुताबिक इसे भुनाते रहेंगे… आरक्षण की आग से अभी तक रह-रह कर सुलग रहे मणिपुर से देश के राजनीतिक दलों ने कोई सबक नहीं सीखा। राजनीतिक दल आरक्षण को वोट बैंक का हथियार बनाए हुए हैं। सत्ता पाने की होड़ इस

प्रसिद्ध और महान लोग कहते रहते हैं कि क्षमा का आदान-प्रदान कर लेने से बड़ी से बड़ी गलतफहमियां, गुस्ताखियां और समस्याएं खत्म हो जाती हैं। फेसबुक जैसी महान किताबों के रचयिता ने भी तो हमारे जैसे विश्वगुरु देशों से बार बार माफी मांगकर अपना धंधा कायम रखा है। यह नीम में लिपटा गुलाब जामुन टाइप

इसमें कोई शक ही नहीं कि जब पश्चिमोत्तर द्वार से भारत पर अरबों, तुर्कों, मुगल मंगोलों के आक्रमण हुए तो उसको चुनौती देने वालों में से वाल्मीकि समाज अग्रणी भूमिका में था। लेकिन उससे पहले हजारों वर्षों तक इस समाज ने देश में ज्ञान की ज्योति भी प्रज्ज्वलित करने में अपनी भूमिका निभाई। दुर्भाग्य से इतिहासकारों ने न तो इस दिशा में शोधकार्य किया, न ही वाल्मीकि समाज की संरचना और उसकी गोत्र प्रणाली को समझने की दिशा में

स्वर्ण पदक की परम्परा को जारी रखते हुए चंबा की सीमा ने दस हजार मीटर की दौड़ में स्वर्ण पदक व पांच हजार मीटर की दौड़ में भी अपना सर्वश्रेष्ठ समय निकाल कर दूसरा स्वर्ण पदक जीता है। सीमा साई खेल छात्रावास धर्मशाला में एथलेटिक्स प्रशिक्षक केहर सिंह पटियाल के प्रशिक्षण कार्यक्रम से निकल कर आजकल भोपाल में विशेष व गहन प्रशिक्षण प्राप्त कर रही है। अगले साल ओलंपिक खेलों में इस धाविका से काफी उम्मीद है। हिमाचल को महिला हैंडबाल में स्नेहलता की टीम ने इस बार भी अपना जलवा दिखाते हुए स्वर्ग पदक दिलाया है। हिमाचल प्रदेश के मुक्केबा

मैंने कहा-‘अमां यार परेशान क्यों होते हो, हार गये तो हार गये।’ वे बोले-‘यह बात नहीं है।’ मैंने पूछा-‘तो क्या बात है?’ बोले-‘वे जीत गये न।’ ‘तो क्या हुआ, चुनाव में एक जीतता है दूसरा हारता है।’ ‘आप नहीं समझेंगे भाईजी यह रहस्य?’ ‘इसमें रहस्य की बात क्या है? आप परेशान मत होइये, अभी चंद दिनों में सारी पोलें खुल जायेंगी और असलियत सामने आ जायेगी।’ मेरे दिलासे से वे ज्यादा अधीर होकर बोले-‘भाई जी आप ठहरे भावुक आदमी, यथार्थ के कठोर धरातल की सख्ती का आपको पता नहीं है। वे जीते हैं और मेरे सीने के नाग किस तरह फुंफकार रहे हैं आपको अंदाजा

इसीलिए कहा गया है..‘सकल पदारथ हैं जग माहीं, कर्महीन नर पावत नाहीं’। जो आदतन परजीवी बने रहते हैं, दूसरों की मदद के तलबगार बने रहते हैं, वे ही असफल होते हैं। कोई साहसी और मजबूत इरादों वाला व्यक्ति कभी असफल नहीं होता। यह जीवन के हर क्षेत्र में सच है। अत: याद रखिए, सफलता के लिए लक्ष्य निर्धारित करना पड़ता है, उस लक्ष्य की ओर पूरा ध्यान केंद्रित करना पड़ता है, कठिनाइयों का मुकाब

गांधी जी का मानना था कि सहिष्णुता का अर्थ सिर्फ एक-दूसरे से सहमत होना या अन्याय के प्रति उदासीन रहना नहीं है, बल्कि प्रत्येक व्यक्ति में आवश्यक मानवता के प्रति सम्मान दिखाना है। लिहाजा हम मनुष्यों के लिए अनिवार्य हो जाता है कि हम अपनी बुरी आदतों को छोड़ें, अपनी जरूरतों को

लगता है, आज जिंदगी ठेके पर चली गई है। लेखन से कलाकृतियों तक का सृजन ठेके पर होता है। जिंदगी से प्यार खत्म करवाने का ठेका पहले कुछ लोगों ने ले रखा था। इस पर न जाने कितनी दर्दनाक फिल्में लिखी गईं, न जाने कितनी प्रेम कहानियां बनीं, जिनके प्रेम त्रिकोण में तीसरा कोना खल

विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के बजट का 65 फीसदी हिस्सा केंद्रीय विश्वविद्यालयों और उनके कॉलेजों को मिलता है, जबकि राज्य विश्वविद्यालयों और उनके संबद्ध कॉलेजों को शेष 35 फीसदी ही प्राप्त होता है। वर्तमान में विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में प्रोफेसरों की जिम्मेदारी और प्रदर्शन को सुनिश्चित करने के लिए कोई तंत्र मौजूद नहीं है। इसकी बजाय विदेशी विश्वविद्यालयों में कॉलेज फैकल्टी के प्रदर्शन