वैचारिक लेख

क्रिकेट विश्व कप के प्रभाव से देश के सरकारी खजाने को अतिरिक्त राजकोषीय वृद्धि हुई है। अर्थशास्त्रियों के अनुसार भारत में आयोजित किया गया यह कार्यक्रम तीन महीने के त्योहारी सीजन के साथ भी मेल खाता है। नतीजतन, सम और त्योहारी सीजन खुदरा क्षेत्र को लाभान्वित करेगा और लोगों को ‘माल की भावनात्मक खरीद’ करने की संभावना है। भारत में आयोजित हुआ आईसीसी क्रिकेट विश्व कप आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा

सच मानिए, जिस तरह वे बिना बैल हल वाले प्रगतिशील किसान हैं, उसी तरह मैं बिना बीवी वाला प्रगतिशील पति हूं। मैं बीवी की वाणी और ज्योतिषी की भविष्यवाणी पर पूरा पूरा भरोसा करता हूं। बीवी और ज्योतिषी का कहा मेरे लिए परम सत्य है। जिस तरह अंधभक्तों को अपने लोकप्रिय नेता पर अंधविश्वास होता है, उसी तरह मुझे भी अपनी बीवी के वचनों और अपने फैमिली ज्योतिषी के कथनों अंधविश्वास है, दुर्गंध विश्वास है। हालांकि मैं आंखें खुली रखने के बाद भी उनके वचनों के पथ पर चलकर अनेकों बार औंधे मुंह गिर चुका हूं। पता होते हुए भी औंधे मुंह

बढ़ते कर्ज न केवल राजकोषीय असंतुलन पैदा कर रहे हैं, बल्कि कल्याणकारी योजनाएं चलाने की क्षमता को भी प्रभावित कर रहे हैं... नवंबर 7 से शुरू होकर 30 नवंबर 2023 तक देश के पांच महत्वपूर्ण राज्यों में चुनाव होने जा रहे हैं। चुनाव हमारे लोकतंत्र के उत्सव के रूप में जाने जाते हैं। आजादी के बाद चुनावों की सतत प्रक्रिया के चलते भारत दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्रीय देश के रूप में उभरा है। यह समय है राजनीतिक दलों द्वारा अपने-अपने चुनाव घोषणापत्रों के माध्यम से मतदाताओं को अपने दलों की नीतियों और प्रस्तावित कार्यक्रमों से अवगत करवाने का। इतिहास में सभी राजनीतिक दल मतदाताओं को अपने वादों से लुभाने का प्रयत्न करते ही रहे हैं, लेकिन पिछले लगभग डेढ़ दशक में चुनावी वादों का प्रकार

इस आलेख का शीर्षक आम तौर पर ट्रकों के पीछे लिखा रहता है, क्योंकि ट्रक का ड्राइवर परिवार के भरण पोषण के लिए हमेशा घर से दूर तथा सफर में ही रहता है। लगभग दो-तीन दशक पूर्व यह बात इसलिए समझ नहीं आती थी क्योंकि ज्ञान, अनुभव और समझ भी कम थी। उस समय आबादी भी अधिक नहीं थी तथा गरिमापूर्ण तरीके से भरण-पोषण के अवसर भी मौजूद थे। घर के युवा तथा बड़े अपने गांव-शहर के आसपास ही मौ

देश में जब तक आज़ादी का अमृत काल नहीं उतरा था, आम जनता गुड़ से बने गुलगुले खाती थी। उस वक्त हिन्दी की एक मशहूर कहावत चलती नहीं दौड़ती थी- गुड़ खाए, गुलगुलों से परहेज़। लेकिन जब से भक्तों ने गुड़ की जगह गोबर खाना शुरू किया है, लगता है इस कहावत को बदलने का समय आ गया है। अब कहना हो तो कहना चाहिए- गोबर खाय, गुलगुलों से परहेज़। मुझे लगता है कि जो भक्त हैं, अगर उन्हें तनिक भी प्रेरित किया जाए तो वे गोबर के गु

इस बार भी क्रिकेट विश्व कप हमारे हाथों से निकल गया। इस बार जिस तरह हमारे देश की टीम ने क्रिकेट वल्र्ड कप में शानदार प्रदर्शन सेमीफाइनल मैच तक किया, उससे हम सभी को यह उम्मीद थी कि विश्व कप हमारे देश की झोली में ही आएगा। लेकिन अफसोस कि ऐसा नहीं हुआ और आस्ट्रेलिया बाजी मार गया। इस बार फिर देश के करो

सरकार ने बासमती चावल के निर्यात के लिए 1200 डॉलर प्रति टन को न्यूनतम मूल्य तय किया है। प्याज पर 40 फीसदी निर्यात शुल्क लगाया है। सरकार ने उबले चावल के निर्यात पर भी 20 प्रतिशत शुल्क लगा दिया है। गेहूं और चावल की बढ़ती कीमतों को काबू करने की कोशिश में सरकार जुटी हुई है। इसलिए सरकार ओपन मार्केट सेल स्कीम (ओएमएसएस) के जरिए रियायती दर पर गेहूं और चावल दोनों बेच रही है। निश्चित रूप से

बहरहाल 21 नवंबर 1962 को युद्ध विराम हुआ था। मौत को सामने देखकर भी मैदाने जंग में डटे रह कर फिदा-ए-वतन हो जाना, सैनिकों में सरफरोशी की इस तमन्ना को शूरवीरता की पराकाष्ठा कहें, वतन के लिए मोहिब्बे वतन के जज्बात या मुल्क की हशमत के लिए शहादत का जज्बा। वालोंग युद्ध के शूरवीरों को देश नमन करता है...

आनंद तो बुद्धिजीवी ने भी सरकारी धन के लिए थे, लेकिन वह मानता है कि उसी ने नैतिकता को सिर पर उठा रखा है। सदियों से नैतिकता गोरी-चिट्टी रही है, फिर भी इसके करीब जाने से लोग डरे हैं, क्योंकि इसने किसी को भी स्थायी रूप में पात्र नहीं माना। हालांकि बुद्धिजीवी से उसे परहेज नहीं और अपनी चर्चा के हर अवसर में उसे इसी वर्ग का समर्थन मिला, नैतिकता ने अपने हिसाब से सत्ता और अपने हिसाब से विपक्ष को मान लिया। नैतिकता अब सफलता की दीवार का अहंकार है, तो विफलता को पीटने का हथियार भी। जो जनता का समर्थन पाकर पंचायत से संसद तक जनप्रतिनिधि बन जाए, वह देश का नैतिक चेहरा है। इसलिए अब नैतिकता प्रमाणिक है। यही नैतिकता समाज को बदल सक