भूपिंदर सिंह

पांच दशक पहले भी राष्ट्रीय स्तर से फिटनेस जागरूकता के लिए इस तरह के कार्यक्रम चले थे, मगर शिक्षा राज्य सूची का विषय होने के कारण बाद में धीरे-धीरे खत्म हो गए थे। अब फिर फिटनेस टैस्टिंग की बात हो रही है, मगर धरातल पर कुछ भी नहीं है… शिक्षा संस्थान में विद्यार्थी जीवन से

पद्मश्री शूटर विजय कुमार  की टोली ने प्रशिक्षण के बारे में अपने विचार पेश करते हुए कहा कि चल रहे खेल छात्रावासों में सुधार किया जाएगा तथा राज्य में नई हाई परफॉर्मेंस अकादमियों को खड़ा किया जाएगा। इन अकादमियों में अच्छी प्ले फील्ड व जिम के साथ-साथ अच्छे प्रशिक्षकों का नियुक्त होना भी जरूरी है।

हिमाचल प्रदेश के हर जिला मुख्यालय पर वॉलीबाल के लिए इंडोर स्टेडियम हैं। वैसे भी वॉलीबाल हिमाचल प्रदेश के गांव-गांव में खेला जाता है। हमीरपुर, ऊना, मंडी व ऊपरी हिमाचल प्रदेश से वॉलीबाल के कई अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी निकले हैं। प्रीतम चौहान जैसे अनुभवी व प्रतिभाशाली प्रशिक्षक से हिमाचल प्रदेश को अपेक्षा रहेगी कि वह हिमाचल

आवश्यकता से अधिक संचय करना अपरिग्रह है। दूसरों की वस्तुओं की इच्छा न करना। मन, वचन एवं कर्म से इस प्रवृत्ति को त्यागना ही अपरिग्रह है। नियमों में शौच के अंतर्गत पानी-मिट्टी आदि के द्वारा शरीर, वस्त्र, भोजन, मकान आदि के मल को दूर करना बाह्य शुद्धि माना जाता है। सद्भावना, मैत्री, करुणा आदि से

स्कूल से निकल कर जब खिलाड़ी महाविद्यालय में प्रवेश ले रहा होता है तो उस समय उसकी उम्र अठारह वर्ष हो चुकी होती है। इसलिए इन खेल छात्रावासों में दाखिल होने के अवसर न के बराबर होते हैं… पिछले दो सालों से कोरोना के कारण हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय व अन्य संस्थानों के विद्यार्थियों की खेल

अगर हिमाचल प्रदेश में घटिया खेल सामान न खरीद कर उच्च क्वालिटी का खेल सामान खरीदा होगा तो स्तरीय खेल सुविधा होगी और जो खिलाड़ी प्रशिक्षण सुविधाओं के अभाव में खेल छोड़ देते हैं, वे ऐसा नहीं करेंगे… बहुत अरसे बाद एक बार फिर प्रदेश के शिक्षा संस्थानों में महाविद्यालय तो खुल गए हैं और

हिमाचल प्रदेश सरकार का युवा सेवाएं एवं खेल विभाग अभी तक करोड़ों रुपए से बने इस खेल ढांचे के रखरखाव में नाकामयाब रहा है। उसके पास न तो चौकीदार हैं और न ही मैदान कर्मचारी, पर्याप्त प्रशिक्षकों की बात तो बहुत दूर है। हिमाचल से खिलाडिय़ों के पलायन का पहले सबसे बड़ा कारण यहां पर

हिमाचल प्रदेश की अधिकांश आबादी गांव में रहती थी। वहां पर सवेरे-शाम  वर्षों पहले विद्यार्थी अपने अभिभावकों के साथ कृषि व अन्य घरेलू कार्यों में सहायता करता था। विद्यालय आने-जाने के लिए कई किलोमीटर दिन में पैदल चलता था। इसलिए उस समय के विद्यार्थी को किसी भी प्रकार के फिटनेस कार्यक्रम की कोई जरूरत नहीं

विद्यालय के प्रधानाचार्यों व शारीरिक शिक्षा के अध्यापकों को चाहिए कि वे खेल सुविधा व प्रतिभा के अनुसार अपने विद्यालय में अच्छे प्रशिक्षकों के साथ प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाएं ताकि हिमाचल के खिलाडिय़ों को विद्यालय में उच्च स्तरीय प्रशिक्षण सुविधा उपलब्ध हो सके… हिमाचल प्रदेश में सैकड़ों खिलाड़ी खेल आरक्षण के अंतर्गत विभिन्न विभागों में नौकरी