प्रो. सुरेश शर्मा ,लेखक घुमारवीं से हैं

फिल्म उद्योग व्यवसाय करता है तथा कला के साथ राजनीतिक खेल हो जाता है, लोग दंगा-फसाद, आंदोलन तथा विवादित चर्चाओं में व्यस्त हो जाते हैं और बुद्धिजीवी अवाक देखता है… फिल्म देखते हुए कभी हमारी धडक़नें तेज होने लगती, कभी करुण भाव आता, कभी गुदगुदी, कभी नफरत, कभी आक्रोश, कभी प्यार। हम ऐसा महसूस करते

सरकारी तथा गैर सरकारी क्षेत्र में प्रदान किए जाने वाले इन पुरस्कारों को प्राप्त करने वाले व्यक्तियों का चयन बिना किसी पूर्वाग्रह तथा बिना भेदभाव होना चाहिए… कौन अपने अच्छे कार्यों के लिए प्रशंसा, सम्मान या शाबाशी नहीं पाना चाहता? यह सभी की आन्तरिक इच्छा तथा दबी हुई चाहत होती है कि उनके द्वारा किए

बहुत ही दु:ख की बात है कि दुनिया का यह विद्वान शास्त्रीय संगीत गायक, खूबसूरत चेहरा एवं बेहतरीन इनसान आज हमारे बीच में नहीं है… भारतीय शास्त्रीय संगीत की महान संगीत परम्परा में अनेकों श्रेष्ठ तथा धुरंधर संगीतज्ञों ने देश की कला एवं संस्कृति को विश्व पटल पर स्थापित करने में अपनी भूमिका निभाई है।

स्वस्थ एवं मजबूत लोकतंत्र की सशक्त भूमिका निभाते हुए स्वतंत्र, निष्पक्ष और निर्भीक प्रेस का होना जरूरी है… भारतवर्ष दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है। इस देश को संवैधानिक तथा लोकतांत्रिक व्यवस्था से चलाने के लिए चार मुख्य एवं महत्त्वपूर्ण स्तम्भों विधानपालिका कार्यपालिका, न्यायपालिका तथा प्रेस यानी मीडिया का निर्माण किया गया। संविधान में

एक स्वस्थ समाज का निर्माण करने के लिए हमें सभी के दु:ख, तकलीफ तथा पीड़ा को समझना होगा… जब हम दूसरे व्यक्तियों, प्राणियों तथा जीव-जंतुओं की परेशानी, तकलीफ या दु:ख-दर्द को स्वयं में अनुभव करते व्यथित तथा द्रवित होने लगते हैं तो समझो हम शालीन, विनम्र एवं संवेदनशील हो रहे हैं। यह हमारे व्यक्तित्व का

कलाकारों, आयोजकों, प्रशासकों की सहमति लेकर सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन होना चाहिए… हिमाचल प्रदेश की पहाड़ी लोक संस्कृति अनायास सभी का मन मोह लेती है। प्रदेश में प्रतिवर्ष स्थानीय मेलों से लेकर राज्य, राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय स्तर के मेलों का आयोजन होता है। अंतरराष्ट्रीय मेलों में कुल्लू का दशहरा, रामपुर का लवी, चंबा का मिंजर,

हिमाचल प्रदेश की कला-संस्कृति के संरक्षण एवं संवर्धन के लिए विशेष बजट का प्रावधान किया जाना चाहिए। कलाकारों को आर्थिक रूप से सबल बनाया जाना चाहिए… सामान्य शब्दों में संस्कारों की ऐसी एक सुकृति जो हमारी जीवन शैली को सरल, सौम्य, सभ्य, शिष्ट तथा सुंदर बनाती है, संस्कृति कहलाती है। संस्कृति एक विशाल शब्द है

हालांकि यह सही है कि वर्तमान में ज्ञान के प्रचार-प्रसार में संचार, तकनीकी संसाधनों का बहुत विस्तार हुआ है, परंतु पुस्तक, पत्र-पत्रिका तथा समाचार पत्र पढऩे का अपना ही आनंद है। इससे चिंतन, मनन तथा स्व-अध्ययन की आदत का विकास होता है तथा व्यक्ति बहुत सी विकृतियों तथा बुरी आदतों से दूर रह सकता है।

व्यक्तियों के प्रभाव से अपनी सुविधा के अनुसार नियमों में परिवर्तन न हो, अन्यथा व्यवस्था में अराजकता व व्यवधान पैदा होता है… स्थानांतरण किसी भी अधिकारी-कर्मचारी के व्यावसायिक जीवन की एक सामान्य प्रक्रिया है। सरकार के अधीन किसी विभाग में कार्यरत अधिकारी या कर्मचारी का ही स्थानांतरण होता है अन्यथा अपना व्यक्तिगत काम-धंधा, दुकान, उद्योग

राजनेताओं, नागरिकों, प्रशासनिक अधिकारियों तथा कर्मचारियों को सामाजिक, नागरिक, नैतिक, मानवीय तथा राष्ट्रीय मूल्यों को समझना चाहिए। सरकार अपने आप को उदाहरणीय एवं अनुकरणीय रूप में लोगों के समक्ष प्रस्तुत करे। तभी व्यवस्था परिवर्तन संभव है अन्यथा हम सत्ता ही बदलते हैं, व्यवस्था परिवर्तन कहां होता है? सुक्खू सरकार व्यवस्था परिवर्तन के लिए कटिबद्ध लगती