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एटीएम का दूसरा तर्क और भी मज़ेदार था। उनका कहना था कि पहाडिय़ों में हिंदू, सिख और मतांतरित मुसलमान सभी शामिल हैं। इसलिए उनको एसटी का दर्जा कैसे दिया जा सकता है? यह सचमुच हास्यास्पद तर्क था। इसका अर्थ हुआ कि यदि ये हिंदू-सिख मतांतरित होकर मुसलमान हो जाएं तब तो एसटी का दर्जा देने

इस सबके लिए हर प्रशिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रम से जुड़ेगा। हिमाचल प्रदेश में अच्छे क्षमतावान प्रशिक्षकों का लगातार प्रशिक्षण खिलाडिय़ों को किसी भी स्तर पर नहीं मिल पा रहा है। खेल मंत्री युवा हैं, वर्तमान में राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खेल के महत्त्व को भी समझते हैं। उन्हें चाहिए कि वह अपने यहां नियुक्त प्रशिक्षकों

आज हमारा जीवन बहुत व्यस्त है और करिअर की दौड़ में सरपट भागते हुए हम सोच ही नहीं पा रहे कि हम जीवन में क्या खो रहे हैं। एकल परिवार में कामकाजी दंपत्ति के बच्चे अकेलापन महसूस करने पर टीवी और प्ले स्टेशन में व्यस्त होने की कोशिश करते हैं। भावनात्मक परेशानियों से जूझ रहा

भारत में युवाओं के बीच, नशा समाजशास्त्रीय संदर्भ मेंआदत बनाने वाला पदार्थ है जो शरीर पर प्रभाव डालता है… भारत में नशे की लत युवाओं के बीच में इतनी बढ़ चुकी है जिसका अंदाजा आए दिन समाचार पत्रों में पढऩे को मिलता है कि युवाओं से नशीले पदार्थ पकड़े गए और कुछ नशे की लत

भारत को 126वें स्थान पर रखा गया है, जबकि 137 देशों की सूची में अफगानिस्तान सबसे अंतिम पायदान पर दिखाया गया है। हालांकि भारत की रैंकिंग पहले से बेहतर हुई है क्योंकि पिछले साल तो भारत को 136वें स्थान पर बताया गया था… मार्च 2023 के तीसरे सप्ताह में ‘सस्टेंनेबल डेवलपमेंट सोल्युशन नेटवर्क’ द्वारा विश्व

अत: मदिरापान के बढ़ते क्रेज पर लगाम लगाने के लिए नीति बने। सरकारों को शराब की बिक्री से प्राप्त राजस्व का मोह त्याग कर उन्नति के बेहतर आयाम हासिल करने के लिए आमदनी के अन्य विकल्प तलाशने होंगे… सभ्य समाज में मयखानों को भले ही इज्जत के नजरिए से नहीं देखा जाता हो मगर मुल्क

निश्चित रूप से अंतरराष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष 2023 के तहत सरकार की यह रणनीति होनी चाहिए कि जिस तरह से पिछले चार-पांच दशकों में अन्य नकदी फसलों को बढ़ावा देने के कदम उठाए गए हैं, उसी तरह के कदम मोटे अनाजों के संदर्भ में भी उठाए जाएं। इनका न्यूनतम समर्थन मूल्य भी बढ़ाना होगा। देश

एक स्वस्थ समाज का निर्माण करने के लिए हमें सभी के दु:ख, तकलीफ तथा पीड़ा को समझना होगा… जब हम दूसरे व्यक्तियों, प्राणियों तथा जीव-जंतुओं की परेशानी, तकलीफ या दु:ख-दर्द को स्वयं में अनुभव करते व्यथित तथा द्रवित होने लगते हैं तो समझो हम शालीन, विनम्र एवं संवेदनशील हो रहे हैं। यह हमारे व्यक्तित्व का

प्रथम विश्व युद्ध की समाप्ति के साथ ही उन योद्धाओं की वीरता का सुनहरा मजमून भी समाप्त हो गया। राज्य के शूरवीरों के साहस की शौर्यगाथाएं शिक्षा पाठ्यक्रम में शामिल होनी चाहिए ताकि भावी पीढिय़ां पहाड़ की सैन्यशक्ति के शौर्य पर गर्व महसूस कर सकें… शौर्य से लबरेज वीरभूमि हिमाचल का सैन्य इतिहास किसी तारूफ