आस्था

कालाष्टमी अथवा काला अष्टमी का हिंदू धर्म में बड़ा ही महत्त्वपूर्ण स्थान है। प्रत्येक माह में कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि के दौरान इसे मनाया जाता है। कालभैरव के भक्त वर्ष की सभी कालाष्टमी के दिन उनकी पूजा और उनके लिए उपवास करते हैं। सबसे मुख्य कालाष्टमी, जिसे कालभैरव जयंती के नाम से जाना जाता

कोरोना को लेकर लोगों में इतनी ज्यादा दहशत है कि लोग अपने घरों से बाहर निकलने से पहले और जरूरी कामों के लिए भी जाने से पहले सौ दफा सोच रहे हैं कि कहीं कोरोना इन्फेक्शन होने का खतरा तो नहीं है। इस संक्रमण से दूर रहने के लिए लोग हर छोटी-छोटी चीजों पर एहतियात

कोरोना वायरस पर लगातार रिसर्च जारी है और रोज कुछ न कुछ नया पता चल रहा है। अब तक कोरोना वायरस दुनियाभर में लाखों से ज्यादा लोगों को संक्रमित कर चुका है और लोगों की जान भी ले चुका है। भारत में भी इस वायरस की चपेट में अब लगातार इजाफा हो रहा है और

सद्गुरु  जग्गी वासुदेव आप कभी भी सुख को स्थायी नहीं बना सकते, ये आपके लिए हमेशा कम पड़ते हैं, किंतु आनंदित होने का अर्थ है कि यह किसी भी चीज पर निर्भर नहीं है। सुख हमेशा किसी वस्तु या व्यक्ति पर निर्भर करता है। आनंद का कुआं अपने भीतर खोदना होगा। आनंद किसी पर निर्भर

महिलाएं होम मेकर हों या कामकाजी हों, गर्मी में दोनों को हाइड्रेशन मेंटेन करना बहुत जरूरी है यानी पानी खूब पिएं। ठंडे पदार्थ जैसे जौ, चावल आदि को अपने भोजन में शामिल करें। इनमें पोषक तत्त्व भी भरपूर होते हैं। गर्म पदार्थ जैसे कि मांसाहारी भोजन, अंडे, गर्म मसाला, तली हुई पूडि़यां वगैरह एवॉयड करें।

श्रीश्री रवि शंकर हमारे भीतर कुछ ऐसा है जो कभी नहीं बदलता और हम सबने कभी न कभी किसी न किसी रूप में इसका अनुभव किया है। यदि हम अपने इस कभी न बदलते हुए स्वरूप की ओर केंद्रित होंगे, तो फिर ज्ञान का भोर होगा कि हम सब शाश्वत हैं और हम सब यहां

कोरोना वायरस के लगातार बदलते संकेतों ने लोगों को इस बात को सोचने पर मजबूर कर दिया है कि छोटी से छोटी परेशानी उन्हें गंभीर रोग का शिकार बना सकती है। कोरोना के बदलते लक्षणों ने लोगों के माथे पर शिकन ला दी है। लोग हल्के-फुल्के लक्षण को भी कोरोना समझ रहे हैं। कोरोना के

छोटे-छोटे जीवन के दुखों से प्रयोग शुरू करना पड़ेगा। जीवन में रोज छोटे दुख आते हैं, रोज प्रतिपल वे खड़े हैं और दुख ही क्यों सुख से भी प्रयोग करना पड़ेगा, क्योंकि दुख में जागना उतना कठिन नहीं है, जितना सुख में जागना कठिन है। सुख में दूर होना और भी कठिन है, क्योंकि सुख

बाबा हरदेव गतांक से आगे… अब सारी बात मनुष्य पर निर्भर करती है। यह केवल तर्क ही तर्क सुनेगा तो इसके मस्तिष्क में बात की पुष्टि तो अवश्य होगी परंतु तर्कों के बीच में यदि अतर्कीय को भी थोड़ा सा प्रवेश करने दें, तो यह अतर्कीयता की बूंद मात्र ही सही परंतु यह बूंद भी