आस्था

फ्लू का होना हमेशा एक खराब अनुभव की तरह होता है। अचानक मौसम में बदलाव से होने वाले फ्लू में बुखार, गले में खराश, ठंड लगना, मांसपेशियों में दर्द हो सकता है और साथ ही आपको कंबल ओढ़ने का मन कर सकता है। यहां तक कि हल्के फ्लू में भी कम से कम एक सप्ताह

*  दही में थोड़ा सा नींबू का रस और ओटमील मिलाकर मोटा पेस्ट तैयार करें। इसे अपने चेहरे पर फेस मास्क की तरह लगाएं। यह उपचार आपकी स्किन को गोरा बनाने के साथ-साथ उसे कोमल और नम बनाए रखने में मदद करता है। * थोड़े से वेसन में पानी या गुलाबजल मिलाकर मोटा पेस्ट बना

26 अप्रैल रविवार, वैशाख, शुक्लपक्ष, तृतीया, अक्षय तृतीया 27 अप्रैल सोमवार, वैशाख, शुक्लपक्ष, चतुर्थी 28 अप्रैल मंगलवार, वैशाख, शुक्लपक्ष, पंचमी, शंकराचार्य जयंती 29 अप्रैल बुधवार, वैशाख, शुक्लपक्ष, षष्ठी 30 अप्रैल बृहस्पतिवार, वैशाख, शुक्लपक्ष, सप्तमी, श्री गंगा जयंती 1 मई शुक्रवार, वैशाख, शुक्लपक्ष, अष्टमी, जानकी जयंती 2 मई शनिवार, वैशाख, शुक्लपक्ष, नवमी

बाबा हरदेव ऐसे ही यदि मनुष्य पत्ता है, तो यह पत्ते की तरह प्रभु की शरण में आ जाए और यदि फूल जैसा हो गया है, तो फूल की भांति अर्पित हो जाए और अगर फल की तरह हो गया है, तो फल की तरह भेंट हो जाए अर्थात जिस किसी भी अवस्था में है,प्रभु

स्वामी विवेकानंद गतांक से आगे… शादी और संतान पैदा करना मानव का परम कर्त्तव्य है, ऐसा वह कभी नहीं मानते थे। खासतौर पर जिन्होंने कोई ऊंचा काम करने का संकल्प लिया हो,उनके लिए तो विवाह सिर्फ आवश्यक चीज है, ऐसा ही वह सोचते थे। उनका कहना था कि मनुष्य को गृहस्थ व संन्यास दोनों की

ओशो प्रेम और घृणा के बीच वही नाता है, जो जन्म और मृत्यु के बीच में है, जो धूप-छाया के बीच में है। जो दिन और रात के बीच में, अमृत और जहर, ठंडक और गर्मी के बीच में है, लेकिन मेरी बात को गलत मत समझना। जब मैं कह रहा हूं अमृत और जहर,

श्रीश्री रवि शंकर जो कोई विभिन्न देवी-देवताओं को पूजता है, वह उनमें से एक बन जाता है, लेकिन मेरे भक्त मुझको प्राप्त करते हैं। हमारे भीतर कुछ ऐसा है, जो कभी नहीं बदलता और हम सबने कभी न कभी किसी न किसी रूप में इसका अनुभव किया है। यदि हम अपने इस कभी न बदलते

सद्गुरु  जग्गी वासुदेव जब एक बार आप नाटक को मंच की पार्श्वभूमि से देखने लगते हैं, तब कुछ समय बाद आप को इसमें रस नहीं आता। आप सब कुछ जानते हैं। आप इसके प्रस्तुतिकरण के बारे में उत्साहित हो सकते हैं पर उसकी कहानी से अब आप रोमांचित नहीं होते, क्योंकि आप जानते हैं कि

श्रीराम शर्मा शरीर और प्राण मिलकर जीवन बनता है। इन दोनों में से एक भी विलय हो जाए, तो जीवन का अंत ही समझना चाहिए। गाड़ी के दो पहिए ही मिलकर संतुलन बनाते और उसे गति देते हैं। इनमें से एक को भी अस्त-व्यस्त नहीं होना चाहिए।  अन्यथा प्राण को भूत-प्रेत की तरह अदृश्य रूप