आस्था

छोटी उम्र के लड़की और लड़के लगभग एक जैसे लगते हैं। कपड़ों से, बालों से उनकी भिन्नता पहचानी जा सकती है, अन्यथा वे साथ-साथ हंसते, खेलते-खाते हैं, कोई विशेष अंतर दिखाई नहीं पड़ता, पर जब बारह वर्ष से आयु ऊपर उठती है तो दोनों में काफी अंतर अनायास ही उत्पन्न होने लगता है। लड़के की

गोरखनाथ का चमत्कार देखकर  कणीफानाथ को बहुत आश्चर्य हुआ। उन्हें बिलकुल भी विश्वास नहीं था कि टूटे  हुए फल वापस वृक्षों पर लग सकते हैं। कणीफानाथ को अपने व्यवहार पर बहुत ग्लानि हुई। वह अच्छी तरह समझ गए कि मैं गोरखनाथ से विद्या बुद्धि में काफी पिछड़ा  हुआ हूं। मेरे गुरु ने सच ही कहा

श्रीश्री रवि शंकर प्रकृति में हर क्षण अनंत सहजता और रचनात्मकता प्रकट होती रहती है। हर सुबह सूर्य उदय होता है पर प्रतिदिन सूर्योदय कुछ अलग प्रकार से सुंदर होता है। यदि हम जीवन के अनुभवों को देखें, तो हर रोज सब कुछ एक जैसा होते हुए भी भिन्न होता है, यह एक सच्चाई है।

एक ज्ञान पिपासु साधिका ने अपने हाथों से बुद्ध की मूर्ति बनाई और उसे स्वर्णिम वस्त्र में लपेट दिया। साधिका जहां जाती, अपनी बुद्ध मूर्ति को हमेशा साथ रखती। एक बार साधिका एक आश्रम में ठहरी हुई थी। आश्रम में अनेक बुद्ध मूर्तियां थीं। साधिका ने अपनी बुद्ध मूर्ति के सम्मुख अगरबत्ती जलानी चाही। इस

सहस्त्रार्णाधिका मंत्रा दंडकाः पीडिताक्षराः।। 70।।  जिस मंत्र में 10,000 वर्ण से अधिक वर्ण हों उसे पीडि़त मंत्र कहते हैं। द्विसस्त्रिक्षरा मंत्राःखंडशःसप्ताधाश्रिताः। ज्ञात्वयाः स्तोत्ररूपास्ते मंत्रा एते न संशयः।। तथा विद्याश्च बो व्या मंत्रिभिः सर्वकर्मसु।। 71।। जिस मंत्र में 2000 अक्षर हों उसको 6 भाग में बांटकर जप करें। मंत्र क्या,विद्या क्या, जिस किसी की उपासना करनी

* समय और समुद्र की लहरें किसी का इंतजार नहीं करती * मनुष्य अपने जन्म नहीं, बल्कि कर्म से महान बनता है * पसीने की स्याही से जो लिखते हैं अपने इरादों को, उनके मुकद्दर के पन्ने कभी कोरे नहीं हुआ करते * जो गिरने से डरते हैं, वो कभी उड़ान नहीं भर सकते *

श्रीराम शर्मा फकीर नूरी की इन बातों ने जता दिया कि प्रार्थना का कोई ढांचा नहीं होता। वह तो हृदय का सहज अंकुरण है। जैसे पर्वत से झरने बहते हैं, वैसे ही प्रेमपूर्ण व्यक्ति के प्रत्येक कर्म में प्रार्थना की धुन गूंजती है। प्रार्थना में बहुत शक्ति होती है… प्रार्थना का संगीत प्रेम की सरगम

ओशो यह असंभव है। अहंकार का त्याग नहीं किया जा सकता क्योंकि अहंकार का कोई आस्तित्व नहीं है। अहंकार केवल एक विचार है, उसमें कोई सार नहीं है। यह कुछ नहीं है, यह सिर्फ  शुद्ध कुछ भी नहीं है। तुम इस पर भरोसा करके इसे वास्तविकता दे देते हो। तुम भरोसा छोड़ सकते हो और

सद्गुरु  जग्गी वासुदेव मेरा प्रश्न आकाश तत्त्व से संबंधित है। अगर हम मैदान जैसे खुले स्थान में बैठें, क्षितिज के बिंदुओं को देखते रहें या समुद्र पर एकटक नजर रखें या बस आकाश की तरफ  देखते रहें या फिर ऐसे ही खुले स्थानों में समय बिताएं तो क्या हम आकाश के प्रति ज्यादा जागरूक हो