आस्था

ऐसे उमादेवी सहित नीलकंठ महादेव का जो योगी अपने हृदय कमल में ध्यान करता है अथवा सूर्य मंडल अथवा अग्नि या चंद्रमंडल या कैलाश आदि पर्वत में ध्यान करता है, तो उसी सगुण ध्यान द्वारा उस योगी पुरुष का मन स्थिरता को प्राप्त हो जाता है। हे अश्वलायन इस प्रकार चित्त के स्थित हो जाने

हे मुने! राजा भरत उस मृगशवक का पालन-पोषण करने लगे, जिनसे वह उनके पोषण हुआ और नित्य प्रति वृद्धि को प्राप्त होने लगा। वह बालक कभी उनके आश्रम के निकटवर्ती प्रदेश में चरा करता और कभी दूर जंगल में चला जाता और फिर सिंहादि के डर से लौट आता… इति राजाह भरतो हरेर्नामानि केवलम। नान्यञ्जगाद

आज की लाइफस्टाइल में तमाम तरह के बदलाव और तनाव के चलते इंसान खुद पर ध्यान नहीं देता, जोकि सही नहीं है। खुद के लिए तो थोड़ा सा वक्त निकाला ही जा सकता है। सेल्फ  केयर बहुत जरूरी है, क्योंकि ये दिमाग और सेहत दोनों को खुश रखने में मदद करती है। आजकल की भागदौड़

स्वामी रामस्वरूप  हे अर्जुन ! जो साधक केवल एक निराकार, स्वयंभू परमेश्वर की वेदों में कही यज्ञ, नाम, स्मरण, योगाभ्यास आदि उपासना ही करता है और नित्य वेद मंत्रों से ईश्वर के स्वरूप का चिंतन करता है और इस परमेश्वर से अन्य किसी और परमेश्वर आदि की भक्ति नहीं करता तो उसका ‘योगक्षेम’ रूप कर्त्तव्य

 हमारे ऋषि-मुनि, भागः 15 महाराज जनक को ब्रह्मनिष्ठ गुरु से शिक्षा पाने के लिए पहचान करनी थी। परीक्षा का नाटक रचा। दूर-दूर से प्रसिद्ध ऋषि बुलाए। बछड़े सहित हजारों गौएं खड़ी कर दीं और उनके सींगों को स्वर्ण से मढ़वा दिया। घोषणा हुई। कोई भी ब्रह्मनिष्ठ गौओं को ले जा सकता है। संकोचवश सब बैठे

कालभैरवाष्टमी मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मनाई जाती है। भगवान शिव के अवतार कहे जाने वाले कालभैरव का अवतार मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को हुआ था। इस संबंध में शिवपुराण की शतरुद्र संहिता में बताया गया है। शिवजी ने कालभैरव के रूप में अवतार लिया और यह स्वरूप भी

उत्पन्ना एकादशी के दिन भगवान श्रीकृष्ण की पूजा की जाती है। पुराणों के अनुसार मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष की एकादशी उत्पन्ना है। इस व्रत को करने से मनुष्य को जीवन में सुख-शांति मिलती है। मृत्यु के पश्चात विष्णु के परम धाम का वास प्राप्त होता है। विधि व्रत करने वाले को दशमी के दिन रात में

विश्वव्यापी, प्रेमस्वरूपा, दिव्य आत्मास्वरूप, आनंदस्वरूप, हजारों-करोड़ों के दिलों में आज भी राज करने वाला व लाखों जीवन में सुधार लाने वाला यह सुंदर मानवीय रूप आज व्यक्तिगत रूप में हमारे बीच नहीं है। उन शब्दों का जादू, जो हमारी आंखों के हजारों आंसुओं को पोंछता चला गया व हजारों दिलों के दर्द अपने में समेटता

गुजरात की धरती पर मंदिरों और धामों का खासा महत्त्व है। राजस्थान में पोखरण, मादेरा और नाडोल में आशापुरा माता के मंदिर हैं। आइए जानते हैं आशापुरा मंदिर का इतिहास और इसकी महत्ता। आशापुरा मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है यहां की देवी। आशापुरा मां को कच्छ की कुलदेवी माना जाता है और बड़ी तादाद