आस्था

उत्तराखंड को देवभूमि के नाम से जाना जाता है। अध्यात्म व आस्था के अनोखे संगम से निर्मित देवभूमि के कण-कण में भगवान निवास करते है। यहां के पहाड़ों की ऊंची चोटियों अथवा पवित्र नदियों के संगम स्थल पर आपको कोई न कोई मंदिर अवश्य देखने को मिल जाएगा। प्रत्येक मंदिर का अपना महत्त्व एवं पौराणिक मान्यता है।

आपकी लाइफस्टाइल का सीधा कनेक्शन आपकी सेहत से है। अगर ये सही नहीं, तो सेहत से जुड़ी कई सारी समस्याएं परेशान कर सकती हैं, साथ ही हार्मोंस भी असंतुलित हो जाते हैं।

बिहार के बक्सर जिले में स्थित नौलखा मंदिर खूबसूरत मंदिरों में से एक है। इस मंदिर की बनावट काफी आकर्षक और मन मोह लेने वाली है। इस मंदिर को दक्षिण भारतीय वास्तुकला का बेहतरीन उदाहरण माना जाता है। मंदिर में की गई नक्काशी बेहद खास है, जो पूरी तरह से दक्षिण भारतीय शैली में निर्मित है। पुजारी बताते हैं कि इस मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा उत्तर भारत के 108 और दक्षिण भारत के 108 पुजारियों ने मिलकर वैदिक मंत्रोच्चार के साथ संपन्न कराई थी।

गुरुग्राम शहर के शीतला माता मंदिर में हर वर्ष मार्च-अप्रैल में चैत्र मेले का आयोजन किया जाता है। इस बार भी यह मेला 23 अप्रैल तक चलेगा। इन मेलों के दौरान सप्ताह में 3 दिन रविवार, सोमवार और मंगलवार को श्रद्धालुओं की ज्यादा भीड़ रहती है...

कर्म जो आंखों से दिखाई देता है, वह अदृश्य-विचारों का ही दृश्य रूप है। मनुष्य जैसा सोचता है वैसा करता है। चोरी, बेईमानी, दगाबाजी, शैतानी, बदमाशी कोई आदमी यकायक कभी नहीं कर सकता, उसके मन में उस प्रकार के विचार बहुत दिनों से घूमते रहते हैं। अवसर न मिलने से वे दबे हुए थे, समय पाते ही वे कार्य रूप में परिणत हो गए। बाहर के लोगों को किसी के द्वारा यकायक कोई दुष्कर्म होने

शहद और मुलहठी का चूर्ण मिलाकर इस पेस्ट को मुंह के छालों पर लगाएं और लार को बाहर टपकने दें। इससे काफी आराम मिलता है।

यह एक अथाह विस्तृत विषय है, जिसे सीमित स्थान एवं सीमित शब्दावली में समेटना बहुत कठिन है। मानव पूर्ण जीवनकाल में कई अवस्थाओं से गुजरता है शिशुकाल, बाल्यावस्था, अवयस्क काल, युवावस्था, प्रौढ़ावस्था...

यही है ईष्र्या कि बुढिय़ा अपने सुख को भूलकर दूसरों के दु:ख में दिलचस्पी लेती है। ईष्र्या में उन्मत्त होकर मनुष्य धर्मनीति तथा विवेक के मार्ग को त्याग देता है। मस्तिष्क में ईष्र्या के विचार से नाना प्रकार की विकृत मानसिक अवस्थाओं की उत्पत्ति होती रहती है। ईष्र्या एक मानसिक विकार है। इसकी ज्वाला से व्यक्ति का विवेक नष्ट हो जाता है जिससे उसे हित-अहित का ध्यान नहीं रहता।

मैंने एक बहुत पुरानी कहानी सुनी है। यह यकीनन बहुत पुरानी होगी, क्योंकि उन दिनों ईश्वर पृथ्वी पर रहता था। धीरे-धीरे वह मनुष्यों से उकता गया क्योंकि वे उसे बहुत सताते थे। कोई आधी रात को द्वार खटखटाता और कहता, तुमने मेरे साथ ऐसा क्यों किया? मैंने जो चाहा था वह पूरा क्यों नहीं हुआ। सभी ईश्वर को बताते थे कि उसे क्या करना चाहिए। हर व्यक्ति प्रार्थना कर रहा था और उनकी प्रार्थनाएं विरोधाभासी थीं। कोई कहता, आज धूप निकलनी चाहिए क्योंकि मुझे कपड़े धोने हैं। कोई कहता, आज बारिश होनी चाहिए क्योंकि मुझे पौधे रोपने हैं। अब ईश्वर क्या करे? यह सब उसे बहुत उलझा रहा था। वह पृथ्वी से चला जाना चाहता था।