आस्था

वज्रांग की पतिव्रता स्त्री भी अपने पति के साथ-साथ शीत-ऊष्मादि के कष्ट सहन करती हुई तपोरत रहने लगी। तपस्या करते हुए उन दोनों को इंद्र कभी मेष रूप में तो कभी भुजंग रूप में, कभी मेद्य रूप में तो कभी झंझा रूप में बहुत देने लगा… मैं आप दोनों के गौरव से इंद्र को बंधन

नेक कार्य और प्रसिद्धि इन दोनों की जड़ अत्यंत सशक्त होती है, हे विजेताओं के विजेता। इसलिए जो लोगों पर शासन करते हैं, उनकी सुरक्षा बनाए रखना बहुत जरूरी होता है। किसी भी राज्य का ऐसा शासक नहीं होना चाहिए जो कि निर्दयी हो व जिसको लोग न पसंद करते हों और जो बहुत शेखीखोरा

हिंदू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार कैलाश भगवान शिव का धाम है। अपने एकांत और सुरम्य स्थिति के कारण यह भक्तों के मन को बहुत भाता है। गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं कि  ‘परम रम्य गिरवरु कैलासू, सदा जहां शिव उमा निवासू।’ ऐसी मान्यता है कि  कैलाश पर्वत पर भगवान शिव अपने परिवार के साथ रहते

पराशर ने कहा कि प्रजापतियों के पति भगवान नारायण  ने जिस प्रकार प्रजा की सृष्टि की, उसका वर्णन सुनो। प्राचीन कल्प के व्यतीत हो जाने पर रात्रि में शयन के पश्चात उठने पर सत से युक्त होकर प्रभु ब्रह्मलोक को शून्य अवस्था में देखते हैं… ब्रह्मा नारायणाख्याऽसौ कल्पादौ भगवान्यथ। ससर्ज सर्व भूतानि सदाचक्ष्व महामुने।। प्रजाः

हिंदू भावना स्त्री के रूप में केवल अर्द्धांगिनी और सहधर्मिणी हो सकती है, अन्य कुछ नहीं। हिंदू की दृष्टि में नारी केवल साथिन के रूप में या थोथी और उथली रोमांचक प्रेमिका नहीं दिखाई देती। इस वैचित्रयमय जगत में नानात्व की अभिव्यंजना के साथ नारी को भी हम अनंत शक्ति-रूपिणी, अनंत रूप से शक्ति दायिनी

अंगूर प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, सोडियम, फाइबर, विटामिन ए, सी, ई  व  के, कैल्शियम, कॉपर, मैगनीशियम, जिंक और आयरन जैसे पोषक तत्त्वों से भरपूर होते हैं। अंगूर खाने से पेट की बीमारियों से राहत मिलती है… इन दिनों अंगूर का मौसम है। बाजार में आसानी से अंगूर मिल जाते हैं। अंगूर एक रसीला फल है, जो ज्यादातर

एक समय जब श्री रामचंद्र जी का दर्शन करने के लिए अपने साठ हजार शिष्यों सहित दुर्वासा ऋषि अयोध्या को जा रहे थे, तब मार्ग में जाते हुए दुर्वासा ने सोचा कि मनुष्य का रूप धारण कर यह तो विष्णु जी ही संसार में अवतीर्ण हुए हैं। यह तो मैं जानता हूं किंतु संसारी जनों

नीलतंत्र में यह भी उल्लेख है कि मां गंगा पूरे भारतवर्ष में कहीं भी पहाड़ों को छूकर नहीं गुजरतीं, बस विंध्याचल ही एक ऐसा स्थान है जहां विंध्य पर्वत शृंखला को छूते हुए गंगा का प्रवाह है। इस महाशक्तिपीठ में वैदिक तथा वाम मार्ग विधि से पूजन होता है… विन्ध्याचल को महाशक्तिपीठ माना जाता है।

स्वामी रामस्वरूप वर्तमान में तो यह अज्ञान फैल चुका है कि भक्ति आदि से इसी जन्म में मुक्ति है। गुरु जी तुम्हारे पाप माफ कर देंगे। कथा सुन कर तर हो जाओगे। नाम लो और तर जाओ इत्यादि। परंतु योगेश्वर श्रीकृष्ण महाराज का यह उपदेश हमें याद रखना है कि तप कई जन्मों तक भी