पाठकों के पत्र

(अंकित कुंवर, नई दिल्ली ) विश्व खाद्य भारतीय कार्यक्रम का आयोजन पहली बार भारतीय सरजमीं पर हुआ। इस कार्यक्रम में भारतीय खिचड़ी को राष्ट्रीय व्यंजन का दर्जा देने का माहौल बनाया गया। यह भारतीयों के लिए गर्व की बात है। खिचड़ी को भारतीय परंपराओं का प्रसिद्ध भोजन कहा जाता है। यह दीगर है कि खिचड़ी

(जग्गू नौरिया, जसौर, नगरोटा बगवां ) हे वोटर! बात अपने दिल की कर, वोट देना जरूर बेशक नोटा को ही कर। पूछ लेना सवाल मत डर, काबिलीयत की तनिक पहचान तो कर। है कोई नेता जो करेगा समस्या का हल, दूंगा वोट उसी को अन्यथा चलता बन, बंदर और आवारा डंगर, जहां फसलों को उजाड़

(राजेश कुमार चौहान, सुजानपुर टिहरा ) अमरीका में एक बार फिर से होने वाले आतंकी हमले ने गहरी नींद में सोए देशों को जगा दिया है। हालांकि इसमें अब भी संदेह है कि ये देश आतंकवाद की कायराना हरकतों पर विराम लगाने के लिए कुछ गंभीर प्रयास करेंगे। आखिर कब तक बेकसूर लोग आतंकवाद का

(डा. शिल्पा जैन सुराणा, वारंगल, तेलंगाना ) पि्रयंका चोपड़ा की बहुप्रतिभाशाली शख्सियत से तो हम सभी रू-ब-रू हैं। मिस वर्ल्ड का ताज पहनने के बाद उन्होंने बालीवुड में कदम रखा और अपने अभिनय से एक अलग पहचान बनाई। बालीवुड में उनके कर्मठ अभिनय की धाक है और सभी निर्माता भी इसे स्वीकार करते हैं। समाज

(एआर पराशर, सोलन ) भारत, ऋषि-मुनियों, संत-फकीरों की धरती, शहीदों-वीरों और गुरु-पैगंबरों की धरती। ऐसे एक संत नानक का अवतार हुआ, ज्ञान की लौ दिखा, मानवता का कल्याण किया। समाज से ऊंच-नीच का भेदभाव मिटाया, अपनी पावन वाणी से उपदेश सुनाया। साधु-संतों की सदा सेवा करना, गरीबों-असहायों की सदा मदद करना। धन्य हैं ऐसे गुरु

(जयेश राणे, मुंबई, महाराष्ट्र ) केंद्र ने सरकारी स्कूलों के साथ निजी स्कूलों के शिक्षकों के लिए भी शिक्षक पात्रता परीक्षा (टेट) अनिवार्य करने की तैयारी कर ली है। नेशनल काउंसिल ऑफ टीचर्स की सिफारिश पर दिया गया यह निर्देश बिलकुल जायज है। जिन छात्रों का भविष्य शिक्षकों के हाथों में सौंपा जाने वाला है,

(सूबेदार मेजर (से.नि.) केसी शर्मा, गगल ) पांच साल जिन नेताओं ने जनता की सुध नहीं ली, अब चुनावी वेला में वे जनता की बेहतरी के लिए तरह-तरह की वादे परोस रहे हैं। ऐसे में इनकी नीयत सहज ही सवालों के घेरे में आ जाती है। दूसरी तरफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भी प्रदेश के

(अंकित कुंवर, नई दिल्ली ) ‘किसान पर भी तो बरसें चुनावी घटाएं’ शीर्षक से लिखे लेख में कर्म सिंह ठाकुर ने राजनीतिक दलों के चुनावी घोषणा पत्रों अथवा भाषणों में किसानों के उल्लेख को महत्त्वपूर्ण बताया है। विधानसभा चुनाव में विभिन्न राजनीतिक दलों की जुबान से किसानों के लिए हितकारी बातें अन्य मुद्दों के समक्ष

(डा. शिबम कृष्ण रैणा, अलवर ) चिदंबरम जब गृह मंत्री थे, तब तो ऐसा कोई बयान उन्होंने नहीं दिया कि कश्मीर की स्वायत्तता के प्रश्न पर पुनः विचार होना चाहिए। अब अचानक क्या बात हो गई? आखिर स्वायत्तता भी किस बात की? जिहादी और अलगाववादी जिस आजादी की मांग रहे हैं, क्या उनके दबाव में