प्रतिबिम्ब

दीनू कश्यप साहित्य कभी भी राज्यों के नाम पर नहीं होता है। साहित्य तो सीधे -सीधे भाषाओं, बोलियों और उप-बोलियों की धाराओं से जन्म लेता है। भाषा भी सामूहिक समाजों के भीतर से सृजित होती है। अगर माना जाए तो साहित्यकार एक आईना बनाने वाला कुशल कारीगर होता है, अब यह उस आदमी (पाठक) पर

सोहन लाल द्विवेदी हिंदी के प्रसिद्ध कवि हैं। सोहन लाल द्विवेदी हिंदी के राष्ट्रीय कवि के रूप में प्रतिष्ठित हुए। सोहनलाल द्विवेदी स्वतंत्रता आंदोलन युग के विराट कवि थे। जनता में राष्ट्रीय चेतना जागृत करने, उनमें देशभक्ति की भावना भरने और नवयुवकों को देश के लिए बड़े से बड़े बलिदान के लिए प्रेरित करने के

अनुभूति ही साहित्य को सिरजती है और यह नितांत व्यक्तिगत होती है। जिसने महसूस किया है, उसकी जुबां से, उसकी कलम से,  अनुभव को सुनने-पढ़ने की संतुष्टि ही अलग होती है। साहित्यकार यदि साहित्य के प्रश्न उठाएं, समाधान सुझाएं, तो वे अधिक वास्तविक बन पड़ते है। इसी तथ्य को ध्यान में रखते हुए ‘प्रतिबिंब’ ने

तुम्हारे बिना मैं यतीम हो जाता तेरे बिना हमारी दुनिया , होती जैसे अंधेरी गुफा सूरज क्या होता है वह तो बिलकुल इतना समझ न पाती, या वह ऐसा अंबर होती, जिसमें तारा एक न चमके या फिर ऐसा प्यार कि जिसमें आलिंगन का स्नेह , न बाती। दुनिया होती सागर जैसी, मगर नीलिमा से

आपको नई पत्रिका चाहिए क्या? मंडी शहर में पहुंचते ही अपने मिलने वाले परिचितों से चर्चित कवि सुरेश सेन निशांत यही सवाल पूछते हैं। उनके झोले में हर वक्त कोई न कोई साहित्यिक पत्रिका का ताजा अंक मौजूद रहता है। मतलब वह मंडी तभी आते हैं, जब दो-चार साहित्यिक पत्रिकाओं के  नए अकं उनके पास

यादविंद्र शर्मा साहित्य को पाठकों से दूर किया जा रहा है। पाठकों ने कभी भी साहित्य का विरोध नहीं किया है। पत्र-पत्रिकाएं साहित्य को पाठकों से जोड़ने का माध्यम रही हंै। मगर वर्तमान समय में दैनिक पत्र साहित्य को उचित स्थान नहीं दे रहे हैं। वे त्वरित घटनाओं पर फोकस किए हुए हैं। जबकि साहित्य

साहित्य अकादमी के लिए नहीं बल्कि पाठकों केलिए ही लिखा जाता है। वहीं समग्र हिमाचल अभी एक अवधारणा मात्र है। एक होमोजिनस …हिमाचल एक ऐसी संभावना है जिसे हकीकत में बदला जाना बाकी है। भैागोलिक ,सांस्कृतिक और भाषिक बहुलता के चलते हिमाचल एक समूची इकाई के रूप में विकसित नहीं हो पा रहा है। यद्यपि

साहित्य पाठक के लिए ही लिखा जाता रहा है और हिमाचल में लिखा जा रहा गंभीर साहित्य भी निश्चित तौर पर पाठकों के लिए ही लिखा जा रहा है, किसी संस्था के लिए नहीं। मुझे ऐसा कतई नहीं लगता कि ऐसा नहीं हो रहा है। इधर कविता में भी और कहानी में भी बराबर ऐसा

विद्यानिवास मिश्र हिंदी के प्रसिद्ध साहित्यकार, सफल संपादक, संस्कृत के प्रकांड विद्वान और जाने-माने भाषाविद थे। हिंदी साहित्य को अपने ललित निबंधों और लोक जीवन की सुगंध से सुवासित करने वाले विद्यानिवास मिश्र ऐसे साहित्यकार थे, जिन्होंने आधुनिक विचारों को पारंपरिक सोच में खपाया था। संस्कृत मर्मज्ञ मिश्र जी ने हिंदी में सदैव आंचलिक बोलियों