संपादकीय

चुनाव हिंदू-मुसलमान के मुद्दे पर क्यों लड़े जाते हैं? बीते एक साल के दौरान उप्र, गुजरात, पूर्वोत्तर राज्यों में अलग किस्म का ध्रुवीकरण किया गया है। भाजपा और कांग्रेस दोनों ने ध्रुवीकरण की कोशिशें की हैं। चूंकि कर्नाटक चुनाव बेहद करीब है और वहां कांग्रेस की सरकार रही है। राज्य में 3515 से ज्यादा किसानों

राजनीति की रात्रि कब जाग जाए, यह द्वंद्व सत्ता बनाम विपक्ष की अमानत में चलते भारतीय लोकतंत्र का है। ऐसा लगता है एक बार फिर भारतीय कर्म की परिभाषा में 2019 की सुबह का इंतजार है। जाहिर है सांसदों की परिक्रमा में हिमाचली सत्ता भी मोदी सरकार की रफ्तार बढ़ाना चाहती है। इसलिए मिसरी की

बीते दिनों कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री मोदी को चुनौती दी थी कि उन्हें संसद में सिर्फ 15 मिनट बोलने दिया जाए। वह राफेल विमान और नीरव मोदी पर ऐसा खुलासा करेंगे कि प्रधानमंत्री खड़े नहीं रह पाएंगे। अब 1 मई से प्रधानमंत्री मोदी ने कर्नाटक में चुनाव प्रचार की शुरुआत की है, तो

देश का सर्वोच्च न्यायालय जो प्रश्न कसौली कांड पर उठा रहा है या जिस तरह गोली कांड पर माननीय अदालत ने संज्ञान लिया है, वहां जन्नत को उजाड़ते जल्लादों की बस्ती प्रश्नांकित है। पर्यटक सीजन के दौरान कसौली की अपराधी शक्ल अगर सुप्रीम कोर्ट के सामने चस्पां है, तो प्रदेश की व्यवस्था का जाहिर तौर

यह गोली कानून की छाती पर लगी है और इसका कानूनी मातम मनाया भी नहीं जा सकता है। यह विडंबनाओं के तीर हैं और पूरी व्यवस्था छलनी है या हमारे नियमों के सुराखों में बारूद की गंध है। कसौली ने पर्यटन के लिए आज तक जो गहने पहने, अब औजार क्यों बनने लगे या हथियारों

क्या किसी की बीमारी और इलाज पर भी राजनीति की जा सकती है? क्या यह संभव है कि एम्स सरीखे देश के सर्वोच्च चिकित्सा संस्थान भी सरकार की चाबुक के मुताबिक काम करें और विपक्षी नेताओं की गंभीर बीमारियों को भी नजरअंदाज करें? किसी भी नेता या व्यक्ति के रोगों का इलाज मेडिकल बोर्ड तय

दिल्ली के ऐतिहासिक रामलीला मैदान में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने ‘जन-आक्रोश’ रैली को संबोधित किया। कांग्रेस अध्यक्ष के तौर पर पहली रैली…। उनका दावा है कि देश की जनता प्रधानमंत्री मोदी से नाराज है और उनके खिलाफ मूड बन रहा है। इसी के साथ कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने यह भी दावा किया कि

सीखने की कोई उम्र, तालीम और शोहरत नहीं होती, यह एक जज्बा है अपनी ही लकीरों से आगे बढ़ने का ताकि हर किसी जिक्र पर फिजाएं फिदा हो जाएं। आश्चर्य यह है कि हमारी परवरिश और पहचान के सारे सूत्रधार सरकारी हैं और यही ऐसा कवच है जो हिमाचली क्षमता को ताबूत बना रहा है।

जिस चाय को हिमाचल सरकार उबारने की जमीन तलाश रही है, वास्तव में इसे राज्य के ब्रांड की तरह पेश करने की जरूरत है। कांगड़ा चाय के पिछड़ने के कई कारण हो सकते हैं, लेकिन घाटे की पैदावार में मेहनत हार रही है। चाय बागीचों को बरकरार रखने की लागत, बिक्री के समाधानों से कहीं