संपादकीय

सुप्रीम कोर्ट के ही ‘प्रथम न्यायाधीश’ के खिलाफ आरोपों की बौछार और महाभियोग की कोशिश…! और अब इंसाफ  मांगने को भी उसी की दहलीज़ पर…! क्या दोगलापन है! कांग्रेस को चुनाव आयोग, सुप्रीम कोर्ट, प्रधान न्यायाधीश सभी में खोट नजर आता है, किसी पर भी भरोसा नहीं है। चूंकि उपराष्ट्रपति एवं राज्यसभा के सभापति वेंकैया

देश के प्रधान न्यायाधीश के खिलाफ  पहली बार महाभियोग प्रस्ताव लाया गया है। जस्टिस दीपक मिश्रा की न्यायिक और प्रशासनिक शक्तियां क्षीण होंगी या उन्हें पद से हटने को बाध्य किया जा सकता है, यह कांग्रेस और उसके चंपू विपक्षी दलों की खुशफहमी ही है, लेकिन ऐसा कर आम नागरिक के मौलिक अधिकारों पर डाका

अंततः हिमाचल में गुणवत्ता  आधारित शिक्षा-चिकित्सा के साथ-साथ अन्य सार्वजनिक सेवाओं के प्रति एक नया विवेचन होने लगा है। जयराम सरकार अगर गुणवत्ता के आधार पर फैसले लेने में कोताही नहीं बरतती है, तो समाधानों के दीप नई रोशनी के प्रतीक बनेंगे। प्राथमिक स्कूलों को मर्ज करने का वास्तविक संदेश भी यही होना चाहिए कि

मध्यप्रदेश के इंदौर में आठ महीने की बच्ची से बलात्कार और हत्या…क्या इससे ज्यादा पाशविक, नृशंस, जघन्य अपराध कोई और भी हो सकता है? अभी तक तो वह बच्ची दूध और मां की गोद के लिए रोती थी, लेकिन उसे जानलेवा दर्द में चीखना भी पड़ा। वह समझ नहीं सकती थी कि आखिर उसके साथ

पहाड़ी राज्यों की परिवहन व्यवस्था में पुनः स्काई बस तथा मोनो ट्रेन की संभावनाओं पर अगर हिमाचल के सुझाव पर गौर किया जाए, तो यह राष्ट्रीय नीति व कार्ययोजना के तहत संभव हो सकता है। गुवाहाटी में परिवहन विषयों पर हुई अंतरराज्यीय बैठक में अनेक विकल्पों के बीच हिमाचल ने जो प्रस्ताव रखा है, उसे

हिमाचली सुकून की छांव को महसूस करना बड़ा ही अजीब संतुलन है और कमोबेश हर सरकार ने अपने दौर में ऐसी राहें चुनी हैं। लगातार कर्मचारी हितों की खुशखबर लिखते हुए जयराम सरकार भी कमोबेश यही कर रही है। पहले विद्या उपासकों का मानदेय बढ़ा और अब अनुबंध के पालने में कर्मचारियों के भुगतान में

प्रधानमंत्री मोदी ने तमाम व्यस्तताओं के बावजूद इतना समय जरूर निकाला कि वह लिंगायतों के भगवान-स्वरूप संत बसवेश्वर के दर्शन कर सकें और उनकी जयंती पर उन्हें याद कर सकें। लंदन में प्रधानमंत्री मोदी ने संत की प्रतिमा पर फूल बरसाए, मन में ही उनका स्मरण किया और माथा टेक कर अपनी आस्था बयां की।

हमारी दीवारें पुनः तब तसदीक हुईं जब हिमाचल के दो मंत्रियों के बीच तकरार सार्वजनिक बहस का हिस्सा बन गई। केंद्रीय मंत्री जगत प्रकाश नड्डा की मौजूदगी के बीच सरकार की प्राथमिकताओं की कलई खुल गई, जब विषयों के अधूरे पन्ने फटे और कलह की पोशाक में, दो मंत्रियों का स्वाभिमान जाग गया। यहां मसला

अपने स्तर पर संदर्भों को बदलने की कोशिश में जब तक पूरा समाज सक्रिय नहीं होगा, हम राष्ट्र निर्माण नहीं कर पाएंगे। इस प्रयास के कई आयाम और रुकावटें हो सकती हैं, लेकिन ताल ठोंकने के लिए किसी को तो पहल करनी होगी। हिमाचल के शिक्षा मंत्री सुरेश भारद्वाज विभागीय संदर्भों को पलटने की मेहनत