संपादकीय

सीखने की कोई उम्र, तालीम और शोहरत नहीं होती, यह एक जज्बा है अपनी ही लकीरों से आगे बढ़ने का ताकि हर किसी जिक्र पर फिजाएं फिदा हो जाएं। आश्चर्य यह है कि हमारी परवरिश और पहचान के सारे सूत्रधार सरकारी हैं और यही ऐसा कवच है जो हिमाचली क्षमता को ताबूत बना रहा है।

जिस चाय को हिमाचल सरकार उबारने की जमीन तलाश रही है, वास्तव में इसे राज्य के ब्रांड की तरह पेश करने की जरूरत है। कांगड़ा चाय के पिछड़ने के कई कारण हो सकते हैं, लेकिन घाटे की पैदावार में मेहनत हार रही है। चाय बागीचों को बरकरार रखने की लागत, बिक्री के समाधानों से कहीं

उत्तर कोरिया और दक्षिण कोरिया के शासकों की मुलाकात ऐतिहासिक थी। दुनिया को परमाणु अस्त्रों के निशाने पर रखने वाले तानाशाह किम जोंग उन ने सरहद की दहलीज लांघी और दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति मून जे इन ने उन्हें आलिंगनबद्ध कर लिया। दोनों नेता अब निरस्त्रीकरण, चरणबद्ध तरीके से परमाणु हथियारों को नष्ट करने की

बलात्कार भी हिंदू-मुस्लिम हो सकता है। जम्मू के कठुआ में मुस्लिम नाबालिग कन्या से सामूहिक बलात्कार किया गया और फिर हत्या…! उसकी प्रतिक्रिया में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के नेतृत्व में इंडिया गेट पर कैंडल मार्च आयोजित किया गया। इस बार गाजियाबाद जिले के एक मदरसे में कथित मौलवी ने 10 साल की एक नाबालिग

अपने मंत्रिमंडलीय फैसलों की तहजीब में हिमाचल सरकार बेशक मंजिलें लांघने की जुस्तजू रखती है, लेकिन प्रस्तुति से स्तुति तक पहुंचने की मंजिलें अलग भी होती हैं। गुरुवार की मंत्रिमंडलीय बैठक का गुरुत्त्व नए रोजगार का वजन बढ़ाता है, तो युवा आशाओं के समुद्र से कुछ लहरें अवश्य ही हलचल पैदा करेंगी। हम फैसलों की

न मुजरिम सामान्य हैं और न ही इसकी खोज साधारण तरीकों से संभव है, इसलिए आरोपों के तीरों से बिंधा कोटखाई का सामाजिक परिदृश्य आज भी आहत है। कहीं जंगल में दबी चीख की अनुगूंज का बार-बार लौट आना या कहीं जांच के मुर्दों का जीवित हो जाना सालता है। वहां एक साथ कई मुजरिम

कल तक जो ‘भगवान’ था, आज वह बलात्कारी है। जिसके एक हाथ में त्रिशूल और दूसरे में डमरू सजते थे और वह खुद को ‘शिव का अवतार’ मानता था, आज बलात्कारी के तौर पर जेल में है। होली के पर्व पर आपने भी उस शख्स का ‘कमंडल डांस’ देखा होगा या भगवान कृष्ण की तरह

हिमाचल स्कूल शिक्षा बोर्ड की जमा दो की परीक्षा हालांकि प्रदेश के सपनों के महल को बुलंदी दे रही है, फिर भी कहीं सरकारी बनाम निजी स्कूलों में मुकाबला हो रहा है। पाठ्यक्रम की सीमाएं और सरकारी क्षेत्र की उपयोगिता के दीपक अंधेरे से लड़ते देखे जा सकते हैं। शोहरत के पैगाम में शिक्षा एक

पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं कांग्रेसी नेता सलमान खुर्शीद ने ऐसा बयान क्यों दिया? यह आत्म-स्वीकृति दशकों बाद क्यों सामने आई है? सलमान ने हकीकत की तमाम हदें पार क्यों कीं, जब उन्होंने कहा कि कांग्रेस के दामन पर खून के धब्बे हैं। ये धब्बे दंगों ने दिए हैं। ऐसा कैसे हो सकता है कि तुम