संपादकीय

नागरिकता संशोधन बिल को 2016 में संसद में पेश किया गया। दिसंबर, 2019 में लोकसभा और राज्यसभा में पारित किया गया। जाहिर है कि कानून बनाने की पटकथा को अंतिम रूप दे दिया गया, लेकिन 4 साल 3 माह की लंबी अवधि के बाद कानून की अधिसूचना तब जारी की गई, जब आम चुनाव की घोषणा कुछ दिन बाद होने ही वाली थी। इस संदर्भ में अधिसूचना के समय पर कठोर सवाल किए जाने स्वाभाविक हैं। अधिनियम के नियम, उसकी पात्रता और शर्तें आदि तय करने में इतना लंबा वक्त गुजार दिया गया, यह वाकई आ

सियासत यूं तो महत्त्वाकांक्षा का दाना है, लेकिन चुगने वालों की दावत कई बार पिंजरों में फंसा देती है। अपने-अपने मुकाम के संघर्ष में हिमाचल कांग्रेस के छह विधायक यूं तो एक प्रभावशाली धड़ा है, लेकिन सत्ता के संकट में उनके पक्ष में अनिश्चितता है। राज्यसभा सीट गंवा बैठी कांग्रेस भी फिलहाल दूध से धुली न•ार नहीं आ रही, लेकिन अदालत की पहली दरख्वास्त पर बागी विधायकों के लिए सुप्रीम कोर्ट ने फिलहाल रास्ता आसान नहीं किया। माननीय अदालत ने बागी विधायकों की फ

हिमाचल के सांस्कृतिक परिदृश्य की निरंतरता में मंडी शिवरात्रि समारोह का ही नजराना पेश हो, तो पर्यटन की मंडी में आर्थिकी का नया दौर शुरू हो सकता है। हम इन सांस्कृतिक समारोहों की रौनक में मंचीय उपलब्धियां देख रहे हैं, तो सियासत की पगडिय़ों

राजस्थान के एक सुदूर रेगिस्तानी गांव की बेटी महिला सशक्तीकरण का प्रतीक बन गई है। उसने अविवाहित महिलाओं के साथ सरकारी स्तर पर किए जा रहे भेदभाव के खिलाफ लंबी कानूनी लड़ाई लड़ी और आखिरकार उसमें जीत हासिल करके महिलाओं को उनका अधिकार दिलाने में सफलता हासिल कर ली है। यह कहानी है राजस्थान के बालोतरा जिले के गूगड़ी गांव की निवासी 26 वर्षीय मधु चारण की। एक गरीब मजदूर पिता की बेटी मधु के संघर्ष की बदौलत राज्य की हजारों अविवाहित महिलाओं को आंगनबाड़ी केन्द्रों में कार्यकर्ता और सहायिका

देश का राजनीतिक ढांचा और सत्ता का दस्तूर अब नेताओं के सुपुर्द विचारधारा नहीं, चुनावी व्यापार की फ्रैंचाइजी दे रहा है। बड़े राज्यों की अमानत में राष्ट्रीय पार्टियों का यह चरित्र समझ आता है या क्षेत्रीय दलों के वर्चस्व में सत्ता की फ्रैंचाइजी चल निकली है, लेकिन हिमाचल जैसे छोटे व संसाधनहीन राज्य में अगर सियासत फ्रैंचाइजी बांटने लगे, तो अस्थिरता यहां भी परिस्थितियों को हमेशा असा

जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 को समाप्त करने के साढ़े चार साल बाद प्रधानमंत्री मोदी पहली बार कश्मीर घाटी में गए, तो फिजाएं बदली हुई थीं। प्रधानमंत्री जम्मू और लद्दाख क्षेत्रों में जाते रहे हैं...

या तो यहां नक्शा बड़ा था, या हमने उसे पढ़ा नहीं। हिमाचल में जो डाक्टर बन गए, वे हड़ताल के सुपुर्द हैं और जो बन रहे हैं, उनकी गलियों में कीचड़ भरा है।

भारत में नकली दवाओं के उत्पादन और प्रसार का बाजार करीब 35,000 करोड़ रुपए का है। यह कोई सामान्य आंकड़ा नहीं है। इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि कितने व्यापक स्तर पर नकली दवाएं बनाई जा रही हैं और औसत बीमार आदमी को बेची जा रही हैं! कितनी बीमारियां घनीभूत हो रही हैं और कितनों पर मौत का साया मंडरा रहा है? यह बाजार इतना व्यापक कैसे बना, यह हमारी प्रशासनिक और जांच संस्थाओं पर बड़ा सवाल है। ये नकली दवाएं, जिन्हें औषधि कहना ही गलत और पाप है, किसी गांव में या उपेक्षित कस्बे के किसी कोने में चुपचाप नहीं बनाई जा रही हैं, बल्कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र गाजियाबाद में धड़ल्ले से बनाई जाती रही हैं

विकास के नए स्रोत पर खड़ी हिमाचल सरकार खुद को चिन्हित करती हुई, नागरिक आशाओं की पैरवी कर रही है। राजनीतिक घटनाक्रम के अतीत से निकल कर सुक्खू सरकार के पैगाम अपनी तीव्रता के केंद्र बिंदुओं पर प्रकाश डाल रहे हैं। गारंटियों की इतिला के बाद विकास की गंगा के साथ मुख्यमंत्री के संदेश स्पष्ट हैं और इसी आधार पर कांगड़ा व हमीरपुर के नाम दर्ज 861 करोड़ अपनी कहानी बता रहे हैं। लाभान्वित विधानसभा क्षेत्र मुखातिब हैं, तो सरकार की प्राथमिकताएं भी चमत्कार कर रही हैं। वर्षों से एक नए बस स्टैं