वैचारिक लेख

शिकायत की सार्वभौमिकता, राष्ट्रवाद से भी ऊपर है, क्योंकि विश्व की कई शिकायतों का आपसी भाईचारा सरहदों को पिघला देता है। मच्छर की शिकायत रुके हुए पानी और थमे हुए इनसान से है और इस तरह की प्रजाति हर समाज और समाज के हर देश से है। लोगों को अपने-अपने खुदा से शिकायत रहती है, फिर भी दूसरे के धर्म को अच्छा नहीं मानते। घर में परिवार की शिकायत, परिवार को पड़ोस से शिकायत, पड़ोसी को पड़ोसी के धन से शिकायत, धन को आयकर से शिकायत, आयकर विभाग को लोगों की जेब से शिकायत और इसी जेब से निकल रहे नेताओं से देश को शिकाय

मौजूदा नियमों में ऐसे भी परिवर्तन होना चाहिए कि न सिर्फ आवारा कुत्तों की आबादी कम करने पर जोर हो, बल्कि सडक़ों को कुत्तों से मुक्त करने का लक्ष्य तैयार किया जाना चाहिए। डॉग लवर्स को भी जिम्मेदार बनाना होगा। देश में विकराल होती जा रही आवारा कुत्तों की समस्या का यदि

प्रकृति में बंदरों का संतुलन भी रखना होगा। बायोमेडिकल रिसर्च के लिए सबसे अधिक रिसस प्रजाति के बंदरों का प्रयोग होता है। अमेरिका में बंदरों की भारी कमी होने के कारण कोरोना वैक्सीन तैयार करने में देरी हुई। यानी प्रकृति संतुलन चाहती है। सरकार को सभी पहलुओं को ध्यान में रखते हुए बंदरों से बचाव हेतु नीति बनानी होगी। प्रदेश को कृषियुक्त रखने के लिए बंदरमुक्त वातावरण देना होगा...

आम आदमी की ज़रूरतों बारे, बातें और विचार विमर्श करने के लिए, बदलावों की जननी राजनीतिजी तैयार बैठी रहती है। उनके हुक्म के बिना सूखा पत्ता भी नहीं गिरता, वह बात दीगर है कि आम जि़ंदगी की ज़रूरतें शोर मचाती रहती हैं। उधर ख़ास लोग अपने काम में जुटे रहते हैं। अब ख़ास यानी नकली बुद्धि का ज़माना आ चुका है जिसने सामान्य बुद्धि की ज़रूरत कम कर दी है। नई, विशेष, स्वादिष्ट, चमकती, शान बढ़ाऊ बुद्धि बाज़ार में बिकनी शुरू हो चुकी है। यह विडंबना का विकसित रूप ही है कि अभी तो कृत्रिम बुद्धि ने अपना सिक्का जमाना शुरू ही किया है

राष्ट्रीय पदक विजेताओं के लिए वजीफे की बात हो। जो खेल छात्रावास के बाहर हों, उन्हें भी खेल छात्रावास के अंतर्गत दैनिक खुराक भत्ता व अन्य सुविधाओं के ऊपर खर्च होने वाली राशि के बराबर वजीफा देने की वकालत हो। जिन अवार्डी खिलाडिय़ों व प्रशिक्षकों के पास कोई नौकरी नहीं है, उन्हें साठ साल आयु के बाद पेंशन का प्रावधान हो...

यह काम कनाडा को दिया गया क्योंकि विश्व राजनीति में कनाडा की औकात कुछ नहीं है। बाकी चार आंखें जमा जुबानी कनाडा की हां में हां मिलाती रहेंगी। लेकिन भारत से संबंध बिगाड़ेंगी नहीं क्योंकि चीन

रामलीला देखकर देर रात घर लौट रहा था। सामने सडक़ पर देखा तो एक विशालकाय आदमी मेरी ओर चला आ रहा था। ज्योंही मेरे पास आया तो एक पल को मैं डर गया, लेकिन अगले ही क्षण में संभल गया। मैं पहचान गया कि यह और कोई नहीं दशानन रावण है। मुझे देखकर ठहाका लगाया और बोला -‘‘पहचाना, मैं कौन हूं?’’ मैं बोला -‘‘आप रावण हैं। कैसे, आज रोड पर आवाराओं की तरह घूम रहे हो?’’ रावण बोला -‘‘सर्वत्र मेरा राज है। मैं राज्य के हाल-चाल जानने पैदल ही निकला हूं।’’ ‘‘लेकिन आपके प्रहरी?’’ मैंने पूछा। ‘‘रावण को किसी प्रकार के प्रहरियों की आवश्यकता नहीं हो

हम चाहें तो अपने सारे काम निपटाकर समय पर रात का भोजन ले लें और समय पर सो जाएं, नींद पूरी करें और ब्रह्म मुहूर्त के नियम का पालन करते हुए सुबह सवेरे उठ भी जाएं। यह सिर्फ एक आदत की बात है। अंतर कुछ भी नहीं है, जो काम रात को नहीं निपटाए जा सके थे, वो सुबह-सवेरे भी निपटाए जा सकते हैं, बेहतर तरीके से निपटाए जा सकते हैं। कुछ लोग हमेशा हर जगह देर से ही पहुंचते हैं और कुछ लोग हमेशा समय पर पहुंच जाते हैं। दोनों तरह के लोग समान रूप से व्यस्त हो सकते हैं। यह सिर्फ एक आदत की बात है कि हम समय पर पहुंचें या देर से। शाम को

इस प्रकार से देखें तो ग्रुप सी और डी कर्मचारियों को इतना ज्यादा भी नहीं मिलता जितनी ज्यादा लोगों में चर्चाएं होती हैं। भूलें नहीं अर्थव्यवस्था का पहिया तभी गतिमान और चलायमान रहता है जब समाज के सभी वर्गों को उनके देय लाभ मिलते रहें। आखिर सरकारी कार्यक्रमों, योजनाओं और नीतियों को सिरे चढ़ाने का जिम्मा भी तो इन्हीं कर्मचारियों के जिम्मे रहता है, तो फिर इन्हें इनकी जायज तनख्वाह, वेतन-भत्ते और पेंशन तो मि