वैचारिक लेख

कुछ वर्ष पूर्व एक राज्य की सरकारी बस सेवा के ड्राइवरों की आंखों के निरीक्षण में पाया गया कि उनमें से आधे से ज्यादा ड्राइवरों को साफ नहीं दिखता था और उन्हें चश्मे की जरूरत थी, कइयों को रात को कम दिखता था। ऐसे ड्राइवर अंदाजे से और रामभरोसे वर्षों से बसें चला रहे थे और खुद अपने लिए तथा अपनी सवारियों के लिए जान का खतरा थे। कार और मोटरबाइक कंपनियां मार्केटिंग पर बहुत ध्यान देती हैं, लेकिन अपने ड्राइवरों को प्रशिक्षित करने के लिए कुछ नहीं करतीं, या फिर उनके कई पुरस्कार-प्राप्त कार्यक्रम भी एकदम कागजी होते हैं। ‘बु

यह तो सत्य है कि हिंदुत्व की आक्रामक राजनीति ने ही पुन: खालिस्तान की मांग को हवा दी है। हिंदुत्व की राजनीति से देश के कई समुदाय अपने को असहज महसूस करते हैं। उनमें सिक्ख समुदाय भी शामिल है। भले ही आरएसएस माने कि सिक्ख धर्म, हिंदू धर्म का ही हिस्सा है। हिंदुत्व की राजनीति से पहले गुजरात में व धीरे-धीरे पूरे देश में दिमागी तौर पर हिंदू-मुस्लिम विभाजन हो ही चुका है, मणिपुर में हिंदू-मैतेई-ईसाई-कुकी अलग हो चुके हैं, उसी तरह सिक्ख भी नाराज हैं। किसान आंदोलन, जिसमें सिक्ख किसानों की बड़ी भागीदारी थी, को

अन्याय से विद्रोह उपजता है और विद्रोह से अव्यवस्था। कुछ ऐसी ही हालत आजकल प्रदेश के ग्रामीण विकास और पंचायती राज विभाग की हो रखी है, जहां जिला परिषद कैडर के लगभग 3400 कर्मचारी अपनी मांगों के न माने जाने के कारण कलम छोड़ो हड़ताल पर हैं। परिणामस्वरूप ग्रामीण विकास के कार्य पूरी तरह से ठप्प पड़ चुके हैं। प्रदेश की जनता से सीधे तौर पर जुड़े इस विभाग के कर्मचारियों के हड़ताल पर जाने से वित्त आयोग व मनरेगा से जुड़े कार्य तो प्रभावित हुए ही हैं, इसी के साथ ग्राम सभा को चलाने में, जन्म व मृत्यु के प्रमाणपत्र व शादियों के पंजीकरण सहित कई अन्य कार्यों में भी लो

पता नहीं क्यों, वे पितर हुए बापू से इतने डरते हैं कि जितना वे उनसे बचपन में भी नहीं डरा करते थे। फिर जिस दिन बापू का जूता उनको आना शुरू हो गया था, उस दिन से उन्होंने अपने बापू को डराना शुरू कर दिया था। वैसे भी, जब बाप का जूता बेटे के पांव में आने लग जाए तो हर बाप को कायदे से अपने बेटे से डरने लग जाना चाहिए। ऐसा करना हर बाप को अपनी इज्जत बचाए रखने में यह सहायक होता है। वर्ना बाप के बेटा बनते देर नहीं लगती। इसलिए जबसे उनके बापू सिधारे हैं, तबसे वे अपने बापू से बहुत डरते हैं। पता नहीं क्यों? इसलिए वे श्राद्धों में किसी

इन युवाओं के पासपोर्ट तक एजेंटों के द्वारा कब्जा लिए जाते थे और उनका तरह-तरह से शोषण भी किया जाता था। उन्हें अत्यंत अमानवीय परिस्थितियों में रहना पड़ता था, ऐसे में भारत सरकार द्वारा विविध प्रकार के प्रयासों से समझाने की कोशिश की गई और सरकार ने एजेंटों के पंजीकरण को अनिवार्य किया और विदेशों में जाने वाले भारतीयों के हित संरक्षण के लिए विभिन्न प्रकार के प्रयास भी किए...

अपने पूर्वजों के सम्मान तथा उनकी आत्मिक शांति के लिए श्रद्धा का प्रतीक श्राद्ध अवश्य करें, परन्तु जीते जी उनसे प्रेम करें, उनका सम्मान करें, उन्हें सुख-शान्ति प्रदान करें। श्राद्ध कर्म का फर्ज निभाते हुए वृद्धों का दर्द भी महसूस करने का प्रयास करें। यह श्राद्ध कर्म सामाजिक रूप से पीढिय़ों

देश में आजकल बारहमासी सावन के जिन झूलों का रिवाज है, उनमें रस्सी भी चीन की है और पटरा भी। लेकिन मुझे इस बात की पूरी तसल्ली है कि कम से कम पेड़ मेड इन इण्डिया हैं। जब तक देश में दरख्त हैं, तब तक हम इस बात पर गर्व कर सकते हैं कि हम न सिर्फ मेक इन इण्डिया का आवाह्न करते हैं बल्कि अपने देश में पेड़ भी बनाते हैं और उन पर झूले भी डालते हैं। पर दु:ख है तो केवल इस बात का कि इन झूलों पर चीन झूल रहा है और हमें कहना पड़ रहा है कि ‘झूला झूलें पिंग लाल (शी जिनपिंग)’। जिनके हाथ में झूलों की रस्सियाँ हैं, वे शी

कंप्यूटर चिप बनाने वाली अमेरिकन कंपनी माइक्रोन के सहयोग से देश में सेमीकंडक्टर के निर्माण से अर्थव्यवस्था की तस्वीर बदलनी होगी। विदेशी निवेश को बढ़ाने के लिए एफडीआई नीतियों और उदार निवेश व्यवस्थाओं पर ध्यान केंद्रित करना होगा। हमें प्रयास करना होगा कि दुनिया के विकसित

गत वर्ष हिमाचल प्रदेश विधानसभा-2022 के चुनाव संपन्न हुए। देश के अन्य राज्यों की तरह हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनावों में भी कुछ दलों ने मुफ्त बिजली और गैस कनेक्शन के लक्ष्य को अपना प्रमुख चुनावी वादा बनाया था। राजनीतिक दल आमजन को लुभावने चुनावी नारों के साथ वादों की बरसात करते हैं। हिमाचल प्रदेश जैसे पहाड़ी राज्य जिनके पास अन्य राज्यों की अपेक्षा सीमित संसाधन हैं, वहां धरातल की सच्चाई जाने बिना इस प्रकार के नारे मात्र हवाई सपने प्रतीत होते हैं। जाहिर है कि इस तरह की चुनावी रेवडिय़ां मतदाताओं को आकर्षित तो करती हैं बल्कि एक हद तक चुनावों में मतदाताओं को किसी पार्टी विशेष के पक्ष में मतदान करने के लिए प्रेरित भी करती