वैचारिक लेख

हम उम्मीद करें कि सरकार दुनिया के विभिन्न विकसित देशों की तरह भारत में भी शोध एवं नवाचार पर जीडीपी की दो फीसदी से अधिक धनराशि व्यय करने की डगर पर आगे बढ़ेगी। इससे जहां ब्रांड इंडिया और मेक इन इंडिया की वैश्विक स्वीकार्यता सुनिश्चित की जा सकेगी, वहीं स्वास्थ्य, कृषि, उद्योग, कारोबार, ऊर्जा, शिक्षा, रक्षा, संचार, अंतरिक्ष सहित विभिन्न क्षेत्रों में देश तेजी से आगे बढ़ते हुए दिखाई दे सकेगा...

हाल ही में 27 सितंबर को विश्व पर्यटन दिवस मनाया गया। विश्व पर्यटन दिवस पर्यटन क्षेत्र की विविध उपलब्धियों का जश्न मनाने का मौका होता है। दशकों के सबसे अच्छे हिस्से के लिए, हमने पर्यटन के अद्वितीय विकास का जश्न मनाया, आकार में, पहुंच में और महत्व में। यह दिवस समावेश को बढ़ावा देने, प्रकृति की रक्षा करने और सांस्कृतिक समझ को बढ़ावा देने के लिए पर्यटन की शक्ति का जश्न मनाता है। पर्यटन सतत विकास के लिए एक शक्तिशाली चालक है। यह महिलाओं और युवाओं की शिक्षा और सशक्तिकरण में योगदान देता है और समुदायों के सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक विकास को आगे बढ़ाता है। विश्व पर्यटन दिवस सामुदायिक पहुंच के साथ हरित निवेश, राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020, जी-20, यात्रा और पर्यटन क्षेत्र केंद्रीय विश्वविद्यालय का विश्व पर्यटन दिवस के निरंतर विकास की विविध उपलब्धियों

वहां विभागीय जांच पूरी तरह हांफ चुकी थी। दरअसल सरकार ने बाकायदा घोषणा से तमाम जांचों के बंद लिफाफे खोल कर इनकी दौड़ प्रतियोगिता करवा दी थी, ताकि पता चले कि मौका पडऩे पर किसे फिर से दौड़ाया जा सकता है। वहां अतीत की सोई हुई या मुर्दा हो चुकी जांचें थीं, तो वर्तमान समय को बरगला रहीं जांच भी दौड़ रही थी। हर जांच के ऊपर कई तरह के कवच थे। कोई फाइल कवर पहन कर दौड़ रही थी, तो कोई टूटे डस्टबिन की राख से मुंह ढांप कर दौड़ रही थी। दौड़ रही जांचों के पीछे देश एकदम फिसड्डी, मजबूर सा, देख रहा था कि शायद इस प्रतियोगिता में कोई एक अदद जांच विक्ट्री स्टैंड पर

श्री रघुनाथ जी का रथ पर विराजमान होना और घाटी के समस्त देवी-देवताओं का इस रथयात्रा में भाग लेना, श्रद्धालुओं का रथ को खींचना, सबसे सुंदर तस्वीर प्रस्तुत करता है। हिमाचल की जनता और सैलानियों के लिए यह महाकुंभ है, देवभूमि की धार्मिक आस्था में लीन होने के

राजनीतिक नायक और नायिकाओं की ख़ुशी में, उनके संजीदा प्रकृति प्रेमी होने का अहम् रोल है। उन्हें पता है कि प्रकृति के मोहपाश से किसी का भी बचना मुश्किल है। अवसर देखकर उन्होंने आम समाज से प्रकृति विकास में शामिल होने का आह्वान किया। सकारात्मक, लोकतांत्रिक मौसम में कुदरत के विकास बारे आश्वासन मिल जाए, इससे बेहतर क्या हो सकता है। ऐसा हो जाने पर प्राकृतिक तत्व भी संतुष्ट महसूस करने लगते हैं। उन्हें लगता है उनके भी अच्छे दिन आ गए हैं। विकास में सभी को साथ लेना ज़रूरी होता है, इसलिए शासन ने एक सर्वे के दौरान समझदार इनसानों से

देश और विदेश हितों से जुड़े भारत के मुद्दों पर राय कायम करने से पहले विपक्षी गठबंधन के सामने फिलहाल सबसे बड़ी चुनौती चुनाव में सीट शेयरिंग की है। इस अधरझूल एजेंडे के कारण ही विपक्षी एकता सिरे नहीं चढ़ सकी है। विपक्षी गठबंधन में पारदर्शिता और स्पष्टता नहीं रही तो लोकसभा चुनाव में भाजपा की चुनौती रहेगी...

मोदी सरकार को अपदस्थ करने में लगी शक्तियों को जानते-बूझते हुए भी, प्रधानमंत्री बनने की लालसा के चलते, राहुल गांधी हाथ में जाति का झुनझुना बजाते हुए मैदान में घूम रहे हैं...

यह बस व्यवस्था पर व्यंग्य नहीं है। यदि यह रचना व्यंग्य हो जाती है तो इसकी सम्पूर्ण जिम्मेदारी मैं अपने पर नहीं लेकर मुसद्दीलाल पर डालना चाहूंगा। मुसद्दीलाल को तो आप भी जानते होंगे। वही मुसद्दीलाल जो बस की सीट पर आपके बराबर में बैठा आपको अपनी चिन्ताओं में एकाग्र नहीं होने देता। आप कहीं कन्सन्ट्रेशन को सचेष्ट होते हैं, तभी वह अपना एकालाप प्रारम्भ कर आपको बोरियत के चरम पर पहुंचाता है। मुसद्दीलाल अधेड़ उम्र का झोला लटकाये पूरी बस में बस इधर से उधर होता रहता है। वह हर यात्री से परिचय पाना चाहता है। परिवहन व बस सेवा से जुड़ी सभी समस्याओं के समाधान हैं उसके पास। वह बसों का समय, कितनी संख्या में, किस मार्ग पर कौनसी बसें चल रही हैं, आदि की वैविध्यपूर्ण जानकारी रखता है। मुसद्दीलाल का कहना है कि ज

आखिर कब हमारे नागरिकों को शांतिपूर्ण, सुखमय एवं भयमुक्त वातावरण में यात्रा करने की सुविधाएं नसीब होंगी? सरकारों एवं प्रशासन को महज बैठकों वाले दौर से ऊपर उठकर धरातल पर सुरक्षित सफर का खाका खींचना होगा और दोषी वाहन चालकों पर कड़ी कार्रवाई करनी होगी...