पीके खुराना

पीके खुराना राजनीतिक रणनीतिकार आज हमारे सामने कई चुनौतियां दरपेश हैं। समाज में विषमता बढ़ती जा रही है और अब यह केवल एक स्थान पर आर्थिक विषमता तक सीमित नहीं रह गई है बल्कि भौगोलिक रूप से भी यह एक नई समस्या के रूप में उभर रही है जिस पर शायद किसी का ध्यान नहीं

पीके खुराना राजनीतिक रणनीतिकार मानसिक तनाव और गुस्सा बहुत बड़ी बीमारियां हैं और हमारे समाज का एक बड़ा हिस्सा तनावपूर्ण जीवन जीते हुए बीमार होता चल रहा है। तब मैंने इसके इलाज के लिए कुछ करने की ठान ली और परिणामस्वरूप मैंने ‘दि हैपी इंडिया फोरम’ की स्थापना की और इसके सदस्यों में खुश रहने

पीके खुराना राजनीतिक रणनीतिकार युवाओं की बड़ी आबादी का मतलब है कि छोटे से छोटे अवसर के लिए भी युवाओं की बड़ी संख्या उस अवसर का लाभ उठाने की जुगत कर रही होगी। नौकरी की तो बात ही छोडि़ए, फीस देकर पढ़ाई करने वालों में भी ऐसी गलाकाट प्रतियोगिता है। आज हालत यह है कि

पीके खुराना राजनीतिक रणनीतिकार हम उस नपुंसक समाज में जी रहे हैं जहां पुरुष किशोरावस्था से लेकर कब्र में जाने तक महिलाओं के वक्षस्थल की कल्पना में डूबा रहता है, और सिर्फ  तभी चिंतित होता है जब वह किसी कन्या का बाप, नाना या दादा बनता है, वरना हमारा समाज बलात्कार और हत्या जैसी इस

पीके खुराना राजनीतिक रणनीतिकार सन् 1998 में कांग्रेस केंद्र की सत्ता से बाहर हुई तो कांग्रेस का हाल बेहाल था। कांग्रेस के तत्कालीन कार्यकारी अध्यक्ष सीताराम केसरी कांग्रेस को संभाल पाने में असमर्थ हुए तो एक दिन सोनिया गांधी ने कांग्रेस कार्यालय पर कब्जा करके स्वयं कांग्रेस अध्यक्ष का पद संभाल लिया। हिंदी न जानने

पीके खुराना राजनीतिक रणनीतिकार देवेंद्र फड़नवीस से पहले ऐसे कई नेता हुए हैं जो कि बहुत ही कम समय के लिए मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठे रह सके। इनमें जगदंबिका पाल की बात करें तो 1998 में उत्तर प्रदेश में राज्यपाल रोमेश भंडारी ने कल्याण सिंह को बर्खास्त कर 21 फरवरी, 1998 को जगदंबिका पाल

पीके खुराना राजनीतिक रणनीतिकार एक समय ऐसा था जब भाजपा की आंतरिक रस्साकशी के चलते उन्हें गुजरात से दूर कर दिया गया था, लेकिन केशुभाई पटेल के मुख्यमंत्रित्व काल में जब गुजरात के हालात बिगड़े तो भाजपा हाईकमान ने उन्हें स्थिति संभालने के लिए कहा और गुजरात का उपमुख्यमंत्री बनने का प्रस्ताव दिया। मोदी ने

पीके खुराना राजनीतिक रणनीतिकार हम यह भूल जाते हैं कि हमारी भैंस तो दरअसल हमारे जीवन से जुड़े रोजमर्रा के सवाल हैं। यानी, अर्थव्यवस्था, शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य , महिला सुरक्षा, परिवहन व्यवस्था, कानून-व्यवस्था, भ्रष्टाचार, पीने योग्य पानी, भोजन और किसान, महंगाई, प्रदूषण रहित हवा तथा ऐसे ही अनगिनत मुद्दे, लेकिन हम हैं कि भैंस के

पीके खुराना राजनीतिक रणनीतिकार ‘राष्ट्रीय एकल नारी अधिकार मंच’ नामक इस संगठन की सदस्या महिलाओं में विधवाएं, परित्यक्ताएं, तलाकशुदा महिलाएं व ऐसी अविवाहित महिलाएं शामिल हैं जो अपने परिवार और समाज से उपेक्षापूर्ण व्यवहार का दंश झेल रही हैं। इनमें से अधिकांश ग्रामीण पृष्ठभूमि की साधनहीन महिलाएं हैं जिनके पास अपनी कठिनाइयां बताने का कोई