दखल

श्रद्धालुओं की आमद के साथ-साथ श्रीनयनादेवी में अंधाधुंध निर्माण भी बढ़ा है, जिसने शहर की सूरत ही बिगाड़ कर रख दी है। उत्तरी भारत के प्रसिद्ध मंदिर में पहुंचने वाले भक्तों को पेश आने वाली मुश्किलों और खामियों को दखल के जरिए पेश कर रहे हैं… राकेश गौतम उत्तरी भारत का विख्यात तीर्थ स्थल श्रीनयनादेवी

साल भर में 14 लाख भक्त, 23 करोड़ आय, 200 दुकानें और 250 कर्मी। भले ही ये आंकड़े दुनियाभर में सिद्धपीठ दियोटसिद्ध का डंका बजा रहे हैं, मगर तस्वीर का दूसरा पहलू उतना ही खराब है। आज तक न कोई मास्टर प्लान बना, न ही पार्किंग का स्थायी समाधान हो सका.. सबसे बड़ी समस्या बढ़

धौलाधार व पीर पंजाल पर्वत शृंखला के मध्य पांच पहाडि़यों पर बसे पर्यटन स्थल डलहौजी की खूबसूरती को आधुनिकता की अंधी दौड़ ने ग्रहण लगाकर रख दिया है। हरे-भरे देवदार के पेड़ों से अटे डलहौजी शहर में होटल व भवनों की भरमार के चलते अब सुकून के दो पल बिताने के लिए जगह तलाशनी पड़

मनाली का प्राकृतिक सौंदर्य ही मानों उसका दुश्मन बन गया है। सैलानियों की आमद ने यहां के हरे-भरे जंगलों को होटलों में तबदील कर दिया… लिहाजा कुदरती शृंगार को ऊंचे- ऊंचे आलीशान भवन निगल गए । बिल्डिंग के साथ बिल्डिंग सटी देख ऐसा लगता है, जैसे सांस लेने के लिए  भी जगह न बची हो…

बौद्ध नगरी और विश्व विख्यात पर्यटन स्थल मकलोडगंज की खूबसूरती को अवैध निर्माण ने ग्रहण लगा दिया है। सैलानियों की बढ़ती आमद के दबाव में व्यवसायियों ने देवदार से लकदक इस खूबसूरत क्षेत्र को कंकरीट का जंगल बना दिया है। न कोई प्लानिंग , न सांस लेने के लिए कोई छिद्र।आज यह क्षेत्र अपनी बिगड़ती

शिमला शहर  अपनी क्षमता से कहीं ज्यादा भार ढो रहा है। कभी अंग्रेजों ने 25 हजार की आबादी के लिए यह नगर बसाया था, लेकिन आज इसकी जनसंख्या अढ़ाई लाख को भी पार कर गई है। यहां  निर्माण भी बेतरतीब किया गया है। चारों ओर इमारतें बनाने की होड़ मची हुई है और हालत यह

जाती-जाती बरसात कुल्लू-मनाली को तो तबाह कर गई, पर साथ ही संदेश भी दे गई कि अभी वक्त है…संभाल लो खुद को, बचा लो प्रकृति, मत बदलो नदी-नालों का बहाव। किसी समय अपनी प्राकृतिक छटा से सबको आनंदित कर देने वाली मनाली आज कराह रही है अपने रंग-रूप को देखकर। ढूंढ रही है अपने लिए

हिमाचल में मानसून हर साल कहर बनकर बरप रहा है। प्रदेश को बरसात से करोड़ों का नुकसान हो रहा है। कहीं अवैध खनन तो कहीं बिजली परियोजनाओं के लिए जारी ब्लास्टिंग से पहाड़ खोखले हो रहे हैं । पर्यावरण से की जा रही यही छेड़छाड़ घातक सिद्ध हो रही है। नदी-नालों का रुख मोड़ कर

हिमाचल के सबसे बड़े जिला कांगड़ा का दुर्गम क्षेत्र बड़ा भंगाल और सिरमौर जिला का दूरवर्ती इलाका गिरिपार जनजातीय हक के लिए लड़ रहे हैं। प्रदेश में ये दोनों क्षेत्र ऐसे हैं जो आज भी शेष विश्व से साल भर कटे रहते हैं। न अस्पताल, न डिस्पेंसरी, न स्कूल, न आंगनबाड़ी, न बिजली, न पानी,