विचार

बचन सिंह घटवाल लेखक, मस्सल, कांगड़ा से हैं महाराणा प्रताप झील आज प्रवासी पक्षियों की सबसे बड़ी और सुंदर शरणस्थली के रूप में विकसित हो चुकी है। विगत दस वर्षों की गणना के अनुसार इस वैटलैंड पर प्रवासी पक्षियों की लगभग 415 प्रजातियों ने भ्रमण किया। गत वर्ष इस झील में लगभग 1.20 लाख प्रवासी

(किशन सिंह गतवाल, सतौन, सिरमौर) समझ नहीं आता कि भारत और हिमाचल में उर्दू भाषा को खत्म करने के प्रयास क्यों किए जा रहे हैं? उर्दू एक ऐसी भाषा है, जिसका एक समृद्ध साहित्य रहा है। उसे किसी संप्रदाय विशेष की बपौती मानने के बजाय एक रसपूर्ण भाषा के तौर पर देखने का दृष्टिकोण पैदा

(महक भड़वाल, कोपड़ा, नूरपुर) एनुअल स्टेटस ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट (असर), 2016 में हिमाचली शिक्षा के सशक्त होने के निशान साफ देखे जा सकते हैं। हालांकि पर्वतीय राज्य हिमाचल में साक्षरता दर में वृद्धि और गुणवत्ता के सरीखे लक्ष्यों को एक साथ हासिल करना आसान नहीं रहा है। ऐसे में ‘असर’ की हालिया रपट में हम

प्रकृति की गोद में बसा भूटान एक ऐसा देश है, जो खुशहाली पर जोर देता है। जहां पूरी दुनिया का जोर जीडीपी यानी ‘सकल घरेलू उत्पाद’ पर होता है, वहीं भूटान अपने नागरिकों का जीवन स्तर जीएनएच यानी ‘सकल राष्ट्रीय खुशी’ से नापता है। यह एक बड़ा फर्क है जो भूटान को पूरी दुनिया से

पंडित भीमसेन जोशी किराना घराने के महत्त्वपूर्ण शास्त्रीय गायक थे। उन्होंने 19 साल की उम्र से गायन शुरू किया था और वह सात दशकों तक शास्त्रीय गायन करते रहे। देश-विदेश में लोकप्रिय हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत के महान गायकों में उनकी गिनती होती थी। अपने एकल गायन से हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत में नए युग का सूत्रपात

आलम यह है कि ‘ढाई पकौडि़यां छाबडि़या, बणी रे डलहौजिया रे लालो।’ जिसकी पांच-सात रचनाएं कहीं प्रकाशित हुई हैं या हो जाती हैं, वही अपने को दूसरों से बेहतर और बड़ा मानने लग जाता है। चिंतन, अवलोकन, विश्लेषण और स्वस्थ आलोचना का मंच न मिलने के कारण लेखन में वो धार, पैनापन और नवीनता नहीं

सयौं धयाडे बड़े बांके धयाडे सयौं अनमोल धयाडे सहेलीयां रा मेला होर हर मन मस्त मौला चौहटे री रौनका किहां भूलडी सयौं रौनका सांझके सयौं चौहटे रे फेरे, सडका नापी नापी एगपा मारी मारी खसत्म नी हुदा था गला रा पिटारा भुतनाथा री गली रोज हुवाइ थी लगीरी दयाडी कपड़े री दुकाना सजीरी हुवाई थी

भारत की सभ्यता और संस्कृति सामंजस्य पर आधारित रही है। इस भावना के मूल में हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में सुरक्षित और सर्वमान्य होना चाहिए। जब दुनिया के विकसित देश जापान, रूस, चीन, फ्रांस आदि आर्थिक सामाजिक उन्नति के सोपान अपनी राष्ट्रभाषा के सहयोग से गढ़ सकते हैं, तब भारत भी अपनी राष्ट्रभाषा हिंदी

आखिर चुनावों से पहले आरएसएस के शीर्ष नेताओं को आरक्षण की ही याद क्यों आती है? वे या तो किसी रणनीति के तहत बयान देते हैं अथवा प्रधानमंत्री मोदी की ताकत को कुंद करने के लिए कोशिशें करते हैं? क्या आरक्षण समाप्ति की बात के पीछे ध्रुवीकरण का विचार भी होता है, जो अकसर चुनावों