विचार

भारत की सभ्यता और संस्कृति सामंजस्य पर आधारित रही है। इस भावना के मूल में हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में सुरक्षित और सर्वमान्य होना चाहिए। जब दुनिया के विकसित देश जापान, रूस, चीन, फ्रांस आदि आर्थिक सामाजिक उन्नति के सोपान अपनी राष्ट्रभाषा के सहयोग से गढ़ सकते हैं, तब भारत भी अपनी राष्ट्रभाषा हिंदी

आखिर चुनावों से पहले आरएसएस के शीर्ष नेताओं को आरक्षण की ही याद क्यों आती है? वे या तो किसी रणनीति के तहत बयान देते हैं अथवा प्रधानमंत्री मोदी की ताकत को कुंद करने के लिए कोशिशें करते हैं? क्या आरक्षण समाप्ति की बात के पीछे ध्रुवीकरण का विचार भी होता है, जो अकसर चुनावों

आहट रात जाने को है सुबह आने को है। जिंदगी कोई आहट सुनाने को है।। देखी दरियादिली तेरे दीदार की। दिल पे छुरियां हजारों चलाने को हैं।। मरघटों के हैं सन्नाटे मेरे लिए। बैंड-बाजा-बाराती सताने को हैं।। दिल जला मुझको कहते हैं कहते रहें। कोई मेरे कहां काम आने को हैं।। हूं ख्याली बना, देखूं

त्रिदेव सम्मेलन में सांसद शांता कुमार की मजाक में कही बात का एक गंभीर पक्ष धर्मशाला को दूसरी राजधानी बनाने के औचित्य पर प्रश्न पूछ रहा है। सियासी मुहाने पर ऐसे फैसलों की चीर-फाड़ के बावजूद आर्थिक मोर्चे पर सवाल पूछे जाएंगे और यह भी कि प्रदेश में आखिर कितनी राजधानियां हो सकती हैं। भाजपा

(डा. राजेंद्र शर्मा, जयपुर (ई-पेपर के मार्फत)) अमरीका के 45वें राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने शपथ ग्रहण के साथ ही अमरीकी नागरिकों को स्वदेशी का संदेश दे दिया है। शपथ ग्रहण के बाद देशवासियों को संबोधित करते हुए उन्होंने जिन दो बातों पर सर्वाधिक बल दिया, उनमें से एक है बाय अमरीकन-हायर अमरीकन, तो दूसरा संदेश

हिमाचल प्रदेश में हर साल आग कहर बरपाती है। अग्निशमन विभाग हर हाल में आग पर काबू पाने की भरसक कोशिश करता है, पर कभी बहुत देर हो जाती है तो कभी पहाड़ के संकरे रास्ते मंजिल तक फायर ब्रिगेड को पहुंचने ही नहीं देते। इस बार दखल के जरिए फायर ब्रिगेड की हकीकत बता

( ललित गर्ग लेखक, स्वतंत्र पत्रकार हैं ) गांधी जी ने एक मुट्टी नमक उठाया था, तब उसका वजन कुछ तोले ही नहीं था। उसने राष्ट्र के नमक को जगा दिया था।  पटेल ने जब रियासतों के एकीकरण के दृढ़ संकल्प की हुंकार भरी, तो राजाओं के वे हाथ जो तलवार पकड़े रहते थे, हस्ताक्षरों

भाजपा संगठन का परिचय हमेशा बेहतर ढंग से होता है और इसी अंदाज में चंबी मैदान का भगवा धरातल काफी विस्तृत व्याख्या करता रहा। हिमाचली चुनाव में भाजपा का आगाज हालांकि पहले ही हो चुका है, लेकिन कांगड़ा परिक्रमा में अरुण जेटली का सान्निध्य मिला, तो नारे अवश्य ही शीतकालीन प्रवास पर आई सरकार के

( धीरज राणा ‘शाश्वत’ लेखक, नूरपुर, कांगड़ा से हैं ) शराब, सिगरेट, भांग, चरस, हेरोइन, तंबाकू, चिट्टा इत्यादि हमारी युवा पीढ़ी की नसों में जहर घोल रहा है। नशा माफिया पंजाब, जम्मू-कश्मीर तथा अन्य रास्तों से लगातार हिमाचल प्रदेश में अपनी जड़ें जमाने की कोशिश कर रहा है, जिसकी पुष्टि पुलिस विभाग खुद करता आया