विचार

खालिद शरीफ ने कहा है, ‘ बिछुड़ा कुछ इस अदा से कि रुत ही बदल गई। इक शख्स सारे शहर को वीरान कर गया।’ 20 जनवरी 2024 की सुबह 5 बजे डा. कैलाश आहलूवालिया साहित्य और रंगमंच की दुनिया को वीरान करके चले गए। हिमाचल, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली और बॉम्बे तक उनके देहावसान की खबर से सन्नाटा पसर गया। शोकग्रस्त नामी गिरामी दोस्तों, रंगमंच, फिल्म और लेखकों की हस्तियों को जैसे यकीन ही नहीं हो रहा था। उत्तरायण काल में उन्होंने नश्वर देह का त्याग कर दिया और हंस अकेला अनंत उड़ान भर गया था। 30 जनवरी 1937 को डा। कैलाश का जन्म कांगड़ा जिले के डुहक गांव में हु

कबीर जिए तो राजशाही में थे। पर शायद उन्होंने पन्द्रहवीं सदी में ही विश्व गुरू के लोकतंत्र का हाल देख लिया होगा। तभी अपने निर्वाण के लिए काशी छोड़ मगहर चले गए थे। आजकल काशी में जीने का पता नहीं। पर चुनाव जीतने के लिए कुछ लोग काशी ज़रूर जाते हैं। दस साल पहले खाँसी वाले एक मफलर भाई झाड़ू लेकर चुनाव लडऩे बनारस पहुँचे थे। लेकिन काशी ने कहा कि उसे सफाई पसन्द नहीं। उसका नारा है- ‘रांड, साँड, सीढ़ी, संन्यासी, इनसे बचे तो पावे काशी।’ इसलिए उसने नमो-नमो जपते हुए विश्व गुरू को भारी बहुमत से चुनाव जिता दिया। उन्होंने तमाम दावों के बावजूद काशी

वहां सार्वजनिक होलिडे ने आत्महत्या कर ली थी। सारा देश हैरान नहीं, परेशान भी था कि आखिर इसकी भरपाई कैसे की जाएगी। पहले ही इसे ढूंढते-ढूंढते तीन अन्य नेताओं के नाम पर राष्ट्रीय अवकाश देना पड़ा था। राष्ट्रीय होलिडे की आत्महत्या ने देश के सार्वजनिक क्षेत्र, तमाम सरकारी कर्मचारियों और सरकारी दफ्तरों के पहली बार कान खोल दिए थे, बल्कि इस खबर से आंखें फटी की फटी रह गईं। कोई मानने को तैयार ही नहीं था कि एक दिन ऐसी भी स्थिति आ सकती है। सरकारी छुट्टी तो बड़े ही नसीबों वाली होती है, इसके बहाने देश का एक पूरा दिन लंबी तान कर सो स

चीन की उल्फत में डूब कर भारत के विरोध में उतरे मालदीव के एहसान फरामोश हुक्मरानों को भारतीय सेना के उन शूरवीर पैरा कमांडोज व नौसेना तथा वायुसेना का मरहून-ए-मिन्नत रहना होगा जिन्होंने सन् 1988 में मालदीव में तख्तापलट के मंसूबों को ध्वस्त करके वहां जम्हूरियत को दोबारा कायम कर दिया था

एक फरवरी को वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण के द्वारा लोकसभा में पेश किए जाने वाले वर्ष 2024 के अंतरिम बजट की तैयारियों का अंतिम चरण 24 जनवरी को हलवा वितरण समारोह के साथ आरंभ हुआ। पिछले तीन पूर्ण बजट की तरह नया अंतरिम बजट भी पूरी तरह से पेपरलेस होगा। वस्तुत: इस समय पूरे देश की निगाहें वित्तमंत्री के द्वारा पेश किए जाने वाले अंतरिम बजट की ओर लगी हुई हंै। वस्तुत: देश में जिस साल लोक

बेरोजगारी की चीखों के बीच नीतियों का इंतखाब करना भी मुश्किल हो गया है। सरकार गेस्ट टीचर के लिए स्कूलों के गेट नहीं खोल पाई तो इसलिए कि इस नीति की घोषणा ने युवाओं के सुर बिगाड़ दिए। कुछ इसी तरह जेओए-817 की परीक्षा पर तरस खाने का मुद्दा भी रहा। जिस परीक्षा प्रणाली के भ्रष्ट तंत्र ने हमीरपुर अधीनस्थ सेवा चयन आयोग को उखाड़ फेंका, उसी के तहत हुई जेओए परीक्षा को बचाने का प्रयास जारी है। ये परीक्षार्थी अब फरियादी हैं, तो सरकार की अदालत बदल रही है। जाहिर है बेरोजगारी की चीखों की सत्ता अनदेखी नहीं कर सकती, लेकिन मंत्रिमंडल के बीच नैतिकता का विभाजन स्पष्ट रहा। अब मुख्यमंत्री जेओए परीक्षा को तमाम संशय से दूर रखते हुए नौकरी के आवरण से ढांपना चाहते हैं

बीते बुधवार को प्रधानमंत्री मोदी, गृहमंत्री अमित शाह और भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा के बीच करीब तीन घंटे की बैठक प्रधानमंत्री आवास में हुई थी। वह असामान्य बैठक थी। उनके सामने बिहार पर सर्वे की एक रपट भी थी, जो भाजपा ने कराया था। सर्वे का निष्कर्ष था कि 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा, अपने सभी घटक दलों समेत, 20-22 सीटें ही जीत सकती है। सर्वे अयोध्या राम मंदिर की प्राण-प्रतिष्ठा से पहले कराया गया था।

नशा नासूर बन गया है। देश के विकास में युवा वर्ग का सबसे बड़ा योगदान होता है। स्वस्थ और तंदरुस्त युवा देश के विकास को रफ्तार दे सकते हंै। लेकिन बहुत अफसोस की बात है कि आज भारत के कुछ युवा नशे के आदी होकर अपनी जिंदगी को नरक बना रहे हैं। नशा, नाश का दूसरा नाम

कहानी के प्रभाव क्षेत्र में उभरा हिमाचली सृजन, अब अपनी प्रासंगिकता और पुरुषार्थ के साथ परिवेश का प्रतिनिधित्व भी कर रहा है। गद्य साहित्य के गंतव्य को छूते संदर्भों में हिमाचल के घटनाक्रम, जीवन शैली, सामाजिक विडंबनाओं, चीखते पहाड़ों का दर्द, विस्थापन की पीड़ा और आर्थिक अपराधों को समेटती कहानी की कथावस्तु, चरित्र चित्रण