वैचारिक लेख

ऐसे में बढ़ती आबादी का बड़ा हिस्सा बेरोजगार, अर्धशिक्षित अथवा अशिक्षित तथा साधनहीन होगा। इस स्थिति को न बदला गया तो बढ़ती आबादी सचमुच अभिशाप बन जाएगी। स्थिति को बदलने के लिए सबसे पहले कस्बों और गांवों में इन्फ्रास्ट्रक्चर के तेज विकास के लिए काम करना होगा, उनके लिए स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध करवानी होंगी तथा उन्हें रोजगारपरक उद्यमिता की शिक्षा देनी होगी। कंज्यूमर गुड्स कंपनियों को आज ग्रामीण

आजकल इस देश की धरा वीरों से वंचित हो गई लगती है। लेकिन आजकल कुछ नए वीरों का पैदा हो जाना एक ऐसे बदलाव की ओर इशारा कर रहा है, कि जिसके कारण यह ऊर्जाहीन होती धरा सनसनीखेज खबरों से भर जाती है। गोदी मीडिया को पुचकार मिलती है। पहले वीरता के अभाव ने पूरे देश में अवसाद और बेचारगी को जन्म दे दिया था। अब लोग मास्क, नकाब पहनने की बात बहुत पीछे छोड़ आए हैं। वायरस के भय से कमरों में बंद होकर जीने की मजबूरी खत्म हुई। फिर भी बेकारी बढ़ रही है, महंगाई ने बंटाधार करना शुरू कर दिया। एक समय लगा था महामारी की विदाई बेला

यदि आप अकेलापन महसूस कर रहे हैं तो ऐसे में सेल्फकेयर आपका सबसे अच्छा दोस्त बन सकता है। खुद को अपनी देखभाल में व्यस्त रखें, हेल्दी डाइट लें, नियमित एक्सरसाइज करें, स्किन केयर, हेयर केयर और अपनी अन्य पसंदीदा गतिविधियों में भाग लें। ये सभी गतिविधियां आपको व्यस्त रखते हुए बेहतर महसूस करने में मदद करेंगी। इसके साथ ही ये सभी गतिविधियां मानसिक स्वास्थ्य से लेकर शारीरिक एवं त्वचा स्वास्थ्य के लिए भी कमाल की हो

जिले के उच्च पदस्थ सेवानिवृत्त व सेवारत अधिकारीगण, कार्मिक तथा सामान्य जन इस गांव के लोगों के साथ मानसिक व भावात्मक रूप से जुडक़र, उनका हौसला बढ़ा रहे हैं। गांव के लोगों को आशा है, प्राकृतिक आपदा से उत्पन्न इन दुश्वारियों से निजात पाने की उनकी उम्मीदें शीघ्र ही विश्वास में बदल जाएंगी। बहरहाल, सभी यही मानकर अपने आपको तसल्ली दे रहे हैं। समय-समय पर प्रिंट और इलैक्ट्रॉनिक मीडिया लिंडूर गांव की स्थिति के बारे

मैं साहित्यकारों में अभी तक इतना आदरणीय नहीं हुआ हूं कि मुझे किसी जयंती वाले के कार्यक्रम में सादर बुलाया जाए। इसलिए अबके भी मैं उनकी जयंती वाले कार्यक्रम में जोड़ तोड़ का आमंत्रित था। वैसे जोड़ तोड़ वालों के वैसे वैसे काम मजे से हो जाते हैं जैसे आदरणीय से आदरणीय के भी नहीं होते। उस वक्त पता नहीं ये मेरा दुर्भाग्य था या कि जयंती वाले का सौभाग्य कि वे गलती से मेरे साथ वाली खाली कुर्सी पर आ विराजे सबसे पीछे वाली रो में। वैसे जो वे जयंती वाले थे तो कायदे से उन्हें

हर घर में शौचालय बनने से खुले में शौच जैसे अभिशाप से मुक्ति हुई है, जिसके चित्र दिखाकर भारत को पिछड़ा दिखाने का प्रयास विदेशी अक्सर किया करते थे। महिलाएं आज सम्मान से जी रही हैं...

इसलिए इस अभियान में सभी वर्गों को सक्षम और जिम्मेदार बनाने की योजना अमल में लाई जा रही है। ‘उड़ता हिमाचल’ बनने की दिशा में तेजी से बढ़ रहे इस प्रदेश को बचाने के लिए नशामुक्त ऊना अभियान मॉडल कारगर विकल्प है...

साधो! आजकल आर्यावर्त मुस्तफा ख़ाँ शेफ़्ता के एक शे’र का बड़ा क़ाइल है, ‘हम तालिब-ए-शोहरत हैं हमें नंग से क्या काम। बदनाम अगर होंगे तो क्या नाम न होगा।’ मौक़े के हिसाब से कपड़े उतारने में अब देश इतना माहिर हो चुका है कि डर लगता है कि क्या पता किस पल विश्व गुरु, उसकी मंडली या भक्तों में से कोई अपनी नंगई दिखाना शुरू कर दे। लेकिन आप भयभीत न हों। नंगई पर उतरने के अर्थों में महज़ शरीर के कपड़े उतारना ही शामिल नहीं। कपड़े तो इनके तन पर एक से एक डिज़ायनर सजे रहते हैं। इसलिए सवाल उठता है कि कौनसे नंग परमेश्वर से बड़े माने जाते हैं। ऐसे में अगर ज़मीर से नंगों के लिए कोई शब्द या कहावत ईजाद हो जाए तो हो सकता है कि तन से नंगे उनके सामने बौने सा

हाल ही में भारत को ‘दुनिया की खाद्य टोकरी’ के रूप में प्रदर्शित करने के उद्देश्य से दिल्ली में आयोजित वल्र्ड फूड इंडिया को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि भारत का खाद्य प्रसंस्करण (फूड प्रोसेसिंग) सेक्टर एक ऐसा उभरता उद्योग है, जिसमें पिछले नौ वर्षों में 50 हजार करोड़ रुपये का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) हुआ है और भारत की खाद्य प्रसंस्करण क्षमता 15 गुना से अधिक बढक़र 12 लाख टन से दो सौ लाख टन हो गई है। देश के कुल कृषि निर्यात में प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों की हिस्सेदारी 13 से बढक़र 23 प्रतिशत हो गई है। प्रसंस्कृत खाद्य