वैचारिक लेख

कला के विभिन्न क्षेत्रों से जुड़े लोगों तथा लेखन में रत लोगों के मन में अक्सर यह विचार घर कर जाता है कि चूंकि वे कलाकार हैं, लेखक हैं, रंगकर्मी हैं, चित्रकार हैं अथवा शिल्पकार हैं, इसलिए बढिय़ा काम के लिए ‘मूड बनने’ की आवश्यकता रहती है, अत: कलाकार का मूडी होना उसका गुण है, या उसका अधिकार है। बड़े लेखकों, गायकों, अभिनेताओं के मूड के चर्चे अखबारों व पत्रिकाओं में छपते रहते हैं और लोग चटखारे ले-लेकर उन्हें पढ़ते भी हैं, इससे कला अथवा लेखन से जुडऩे

आशा है कि केंद्र एवं राज्य सरकारें उत्पादों का निर्माण करने वाले निर्माताओं और खुदरा कारोबारियों से उपभोक्ताओं को बेरहमी से लुटने से बचाने के लिए एमआरपी यानी अधिकतम खुदरा मूल्य तय करने के लिए एक तंत्र विकसित करेंगी और सख्ती से इस नीति के अंतर्गत नियम कानूनों का अनुपालन भी करवाया जाएगा, ताकि ग्राहकों को उचित मूल्य पर सामग्री/वस्तुएं मिलती रहें। अंतत: सवाल उठता है कि क्या अफसरशाही के पास इस लूटपाट को अंजाम देने वाले जमाखोरों के खिलाफ किसी प्रकार की कार्रवाई करने का जीवट है...

बिन विद्या नर पशु समान। न जाने कितने बरसों से सुनते आ रहे हैं। देश आजाद हुआ तो शिक्षा क्रांति की घोषणा कर दी गई थी। अब इस अशिक्षित भीड़ भरे देश में कोई पढ़े-लिखे बिना नहीं रहेगा। पढ़ाई का प्रमाणपत्र, डिग्रियां हर बच्चे के हाथ में होंगी। वे नौकरी के लिए कतार लगा बरसों इन्तजार नहीं करेंगे। रोजगार दफ्तरों की धूल फांक-फांक कर आखिर उनके चक्कर लगाना बंद नहीं कर देंगे। हालात कुछ इस कद्र हो जाएंगे कि नौजवान पढ़-लिख कर इनके चक्कर लगाने के बजाय ठेके पर विदेश भिजवाने के संदिग्ध दफ्तरों के बाहर चक्कर लगाना शुरू कर देंगे। फिर भी

फिर विदेशी विश्वविद्यालयों को यहां आने के लिए प्रोत्साहित करना उच्च शिक्षा में निजी पूंजीवाद की पकड़ को मजबूत करना भी हो सकता है, परंतु इसके बावजूद विदेशी विश्वविद्यालयों को भारत में कैंपस स्थापित करने के लिए लाने का मुख्य उद्देश्य भारतीय शिक्षा प्रणाली में विविधता लाना भी है, जिसकी जरूरत से इंकार नहीं किया जा सकता है।

यह कहने में कहीं भी अतिशयोक्ति नहीं होगी, कि प्राइवेट स्कूलों में क्वालिटी एजुकेशन मिल रही है, इसकी कोई गारंटी नहीं दी जा सकती। इसके अतिरिक्त शिक्षा नीति तैयार करते समय हर बार राजनीतिक दबाव डाला जाता है...

काश! मेरा देश उत्सवों, त्योहारों का देश न होता। होता तो मेरी प्रिया उत्सव प्रिय न होती। अब तो मुहल्ले में अपनी पूरी तरह गिर चुकी साख बनाए रखने के लिए हर त्योहार मजबूरी में खुशी खुशी लोन की पालकी में...

आवश्यकता इस बात की है कि पश्चिम एशिया के संकट के सुलझाव के लिए शांति व न्याय पर आधारित आंदोलन चले। इजराइल की मनमानी के खिलाफ प्रदर्शनों में यहूदी भी शामिल हैं… सात अक्टूबर 2023 को ‘हमास’ द्वारा इजराइल के कुछ ठिकानों पर हमले और करीब 200 यहूदियों को बंधक बना लिए जाने के बाद

उपरोक्त सभी (शास्त्री एवं बीए संस्कृत) उपाधि के बीच अंतर प्रदर्शित करने वाले तथ्यों को ध्यान में रखते हुए शास्त्री पद हेतु केवल शास्त्री उपाधि प्राप्त छात्रों को ही योग्य माना जाना तर्कसंगत है… हिमाचल में शास्त्री अध्यापकों के भर्ती एवं पदोन्नति नियम काफी समय से विवाद एवं चर्चा का विषय रहे हैं। राजकीय संस्कृत

मेरे मन में सवाल कौंध रहा है कि क्या इस बार भी विश्व गुरू साल 2019 की तरह 2024 के लोकसभा चुनावों के नतीजों से पूर्व केदारनाथ की गुफा में ध्यान लगाएंगे। पर मैं इतना मंद बुद्धि हूैं कि गूगल बाबा पर हर तरह की जानकारी चिपकी होने के बावजूद इस घटना के चार साल