वैचारिक लेख

राष्ट्रीय पदक विजेताओं के लिए वजीफे की बात हो। जो खेल छात्रावास के बाहर हों, उन्हें भी खेल छात्रावास के अंतर्गत दैनिक खुराक भत्ता व अन्य सुविधाओं के ऊपर खर्च होने वाली राशि के बराबर वजीफा देने की वकालत हो। जिन अवार्डी खिलाडिय़ों व प्रशिक्षकों के पास कोई नौकरी नहीं है, उन्हें साठ साल आयु के बाद पेंशन का प्रावधान हो...

यह काम कनाडा को दिया गया क्योंकि विश्व राजनीति में कनाडा की औकात कुछ नहीं है। बाकी चार आंखें जमा जुबानी कनाडा की हां में हां मिलाती रहेंगी। लेकिन भारत से संबंध बिगाड़ेंगी नहीं क्योंकि चीन

रामलीला देखकर देर रात घर लौट रहा था। सामने सडक़ पर देखा तो एक विशालकाय आदमी मेरी ओर चला आ रहा था। ज्योंही मेरे पास आया तो एक पल को मैं डर गया, लेकिन अगले ही क्षण में संभल गया। मैं पहचान गया कि यह और कोई नहीं दशानन रावण है। मुझे देखकर ठहाका लगाया और बोला -‘‘पहचाना, मैं कौन हूं?’’ मैं बोला -‘‘आप रावण हैं। कैसे, आज रोड पर आवाराओं की तरह घूम रहे हो?’’ रावण बोला -‘‘सर्वत्र मेरा राज है। मैं राज्य के हाल-चाल जानने पैदल ही निकला हूं।’’ ‘‘लेकिन आपके प्रहरी?’’ मैंने पूछा। ‘‘रावण को किसी प्रकार के प्रहरियों की आवश्यकता नहीं हो

हम चाहें तो अपने सारे काम निपटाकर समय पर रात का भोजन ले लें और समय पर सो जाएं, नींद पूरी करें और ब्रह्म मुहूर्त के नियम का पालन करते हुए सुबह सवेरे उठ भी जाएं। यह सिर्फ एक आदत की बात है। अंतर कुछ भी नहीं है, जो काम रात को नहीं निपटाए जा सके थे, वो सुबह-सवेरे भी निपटाए जा सकते हैं, बेहतर तरीके से निपटाए जा सकते हैं। कुछ लोग हमेशा हर जगह देर से ही पहुंचते हैं और कुछ लोग हमेशा समय पर पहुंच जाते हैं। दोनों तरह के लोग समान रूप से व्यस्त हो सकते हैं। यह सिर्फ एक आदत की बात है कि हम समय पर पहुंचें या देर से। शाम को

इस प्रकार से देखें तो ग्रुप सी और डी कर्मचारियों को इतना ज्यादा भी नहीं मिलता जितनी ज्यादा लोगों में चर्चाएं होती हैं। भूलें नहीं अर्थव्यवस्था का पहिया तभी गतिमान और चलायमान रहता है जब समाज के सभी वर्गों को उनके देय लाभ मिलते रहें। आखिर सरकारी कार्यक्रमों, योजनाओं और नीतियों को सिरे चढ़ाने का जिम्मा भी तो इन्हीं कर्मचारियों के जिम्मे रहता है, तो फिर इन्हें इनकी जायज तनख्वाह, वेतन-भत्ते और पेंशन तो मि

अपने देश में जो काम होता है, पूरी निष्ठा के साथ होता है। इसीलिए तो इस देश को निष्ठावान देश कहा जाता है। आज से नहीं सदियों से कहा जाता है। यह मामूली बात है कि वक्त गुजरने के साथ-साथ यहां लोगों की निष्ठा के पैमाने बदल गए हैं। मुखौटे तशरीफ ले आए हैं। वे दिन गए जब अध्ययन के दिनों में पूरी निष्ठा से पढ़ाई और अध्यापन के दिनों में पूरी निष्ठा के साथ अध्यापन होता था। इस देश के लोगों के प्रतिबद्ध संस्कारों की कसम पूरी दुनिया में खाई जाती रही। अब वक्त बदल गया। संस्कार तो वही हैं। निष्ठा भी वही है और प्रतिबद्धता भी वैसी ही है। लोगों

भारतीय सशस्त्र सेनाओं के विभाजन के बाद पाक सेना में जाने वाले सैन्य अफसरों के लिए छह अगस्त 1947 को नई दिल्ली में एक विदाई पार्टी का आयोजन किया गया था। एडमिरल माऊंटबेटन, फील्ड मार्शल औचिनलेक व ले. ज. करियप्पा जैसे गणमान्य व्यक्ति उस विदाई भोज में शामिल थे। विदाई पार्टी में ले. ज. करियप्पा ने कहा कि ‘हमने इतने वर्ष इक_े सेना में कार्य किया व विश्व युद्ध लड़े। उम्मीद है कि अलग होने के बाद भी ये भावनाएं बनी रहेंगी’। पाक सेना की तरफ से ब्रिगेडियर ए. एम. रजा ने कहा कि हम भारतीय सेना की परंपराओं को बनाए रखेंगे। मैं भारतीयों

कॉलेजों और विश्वविद्यालयों के छात्र प्रबंधन की जिम्मेदारी है कि वे कॉलेज के छात्रों की मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं की शीघ्र पहचान करें और उनमें हस्तक्षेप करें। जैसे-जैसे समाज विकसित हो रहा है, कॉलेज के छात्रों को अधिक जटिल वातावरण का सामना करना पड़ रहा है। एक ओर, स्नातकों की संख्या में लगातार वृद्धि ने कॉलेज के छात्रों पर काम खोजने के लिए अधिक दबाव डाला है। दूसरी ओर, विज्ञान और प्रौद्योगिकी में प्र

अपने तमाम आमों और खासों को सार्वजनिक करते हुए अपार प्रसन्नता हो रही है कल मैंने अपनी अक्ल दाढ़ भी निकलवा ली है। असल में ये मेरी अक्ल दाढ़ मुझे लंबे समय से बीवी से भी अधिक परेशान किए थी। सच कहूं तो बेरोजगारी के दिनों में बेरोजगारी से मैं उतना परेशान नहीं हुआ जितना इस अक्ल दाढ़ की परेशानी की वजह से हुआ। सच कहूं तो महंगाई से भी मैं उतना परेशान नहीं हुआ जितना इस अक्ल दाढ़ की वजह से हुआ। अक्ल का फकीर होने के बाद जब ये बीच बीच में मुझे परेशान करती तो लगता ज्यों मेरी सब परेशानियों की वजह जो कोई है तो ब