पीके खुराना

इन कंपनियों के सहयोग से बहुत से क्रांतिकारी आविष्कार हुए हैं जो शायद अन्यथा संभव ही न हुए होते। अत: औद्योगीकरण का विरोध करने के बजाय हमें ऐसे नियम बनाने होंगे कि बड़ी कंपनियां हमारे समाज के लिए ज्यादा लाभदायक साबित हों तथा उनके कारण आने वाली समृद्धि सिर्फ एक छोटे से तबके तक ही

क्या हम महिलाओं की समस्याओं, आवश्यकताओं, इच्छाओं, अपेक्षाओं आदि सभी बातों का ध्यान रखते हुए चर्चा करेंगे और समग्रता में सोचेंगे ताकि इस बार भी अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस सिर्फ एक औपचारिकता मात्र बनकर न रह जाए। इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए मीडिया की भूमिका का भी जायजा लेना होगा और खुद हमें सोशल नेटवर्किंग

खुशी के बिना सफलता अधूरी ही नहीं, अर्थहीन है क्योंकि हमने सफल माने जाने वाले लोगों को, अमीर लोगों को, शक्तिशाली और समर्थवान लोगों को भी आत्महत्याएं करते हुए देखा है। अपने आप में ही सीमित हो जाने वाले लोग अकेले पड़ जाते हैं, पैसा और साधन होने के बावजूद किसी को अपना दुख बता

परिणाम यह है कि चुनाव जीतना ही सबसे ज्य़ादा महत्त्वपूर्ण हो जाता है, इसलिए उम्मीदवार जीत सुनिश्चित करने के लिए हर तरह के जायज़ और नाजायज़ तरीके अपनाते हैं। स्पष्ट है कि भ्रष्टाचार से मुक्ति के लिए शुरुआत हमें जड़ से करनी होगी, यानी चुनाव प्रणाली ऐसी बनानी होगी कि भ्रष्ट तरीकों से चुनाव जीतना

डेल कार्नेगी की पुस्तक ‘हाउ टु विन फ्रेंड्स एंड इन्फ्लुएंस पीपल’, राबर्ट कियोसाकी की पुस्तकें ‘रिच डैड, पुअर डैड’ तथा ‘कैशफ्लो क्वाड्रैंट’ और सूज़ी वेल्च की ‘दस मिनट, दस महीने, दस साल’ उन विश्व प्रसिद्ध पुस्तकों में से हैं जो हमारा जीवन संवार सकती हैं, बल्कि जीवन बदल सकती हैं। इन सभी पुस्तकों के हिंदी

आलोचना का अर्थ है कि कोई परेशानी है, कोई कमी है, उस कमी को दूर कर देने से शिकायत दूर हो जाती है और फुन्सी को फोड़े में तब्दील होने से रोका जा सकता है। अक्सर समस्याएं इसलिए पनपती हैं कि समय पर उनकी ओर ध्यान नहीं दिया गया, उनको दूर नहीं किया गया और

आज जब मैं उस घटना पर विचार करता हूं तो मुझे समझ आता है कि उस ग्रामीण दंपत्ति ने कितनी सरलता से एक बहुत बड़े सच का खुलासा किया था। यदि हम किसी को पसंद नहीं करते, और उसकी प्रशंसा करते हैं तो हम काम तो अच्छा कर रहे हैं, पर हम खुद अच्छे नहीं

किसी भी सरकार के लिए समाज के विभिन्न वर्गों की अपेक्षाओं का संतुलित करना आसान नहीं होता। ऑनलाइन व्यापार अब शायद विश्व भर में अपनी सुविधा के लिए बढ़त पर है जिससे ऑफलाइन ट्रेड घबराया हुआ है। ऐसे में देखना होगा कि मोदी सरकार नॉन-कारपोरेट सेक्टर की आशाओं पर खरा उतरने के लिए क्या करती

खोमचे वाले, पटरी वाले, घूम-घूम कर सामान बेचने वाले इन लोगों की हम उपेक्षा करते हैं, पर यह भूल जाते हैं कि हमारी रोज़मर्रा की अधिकांश जरूरतें यही लोग पूरी करते हैं। बड़े उद्योग घाटे में जाएं तो सरकारों में हडक़ंप मच जाता है और उनके लिए राहत पैकेज की बात होने लगती है, जबकि