आस्था

सर्दियों में सूप पीना किसे नहीं पसंद। आप इसे किसी भी सब्जी और फल के इस्तेमाल से बना सकते हैं। पर अगर पारंपरिक सूप की बात करें, तो इनमें जड़ी-बूटियों और मसालों की खास भूमिका होती है। ऐसे में सर्दियों के इस मौसम में सब्जियां और जड़ी-बूटियों का इस्तेमाल करके, आप घर में ही हेल्दी

सर्दियों में शकरकंदी व सिंघाड़े की तरह खजूर की डिमांड भी बढ़ जाती है। इसका सेवन कुछ लोग यूं ही करते हैं, तो कुछ खजूर का शेक बनाकर पीते हैं। इसमें आयरन, मिनरल, कैल्शियम, अमीनो एसिड, फास्फोरस और विटामिन्स जैसे पोषक तत्त्वों की प्रचुर मात्रा होती है। यह न केवल खाने में टेस्टी होते हैं,

गतांक से आगे…. मजबूर होकर गोपीचंद को सारा हाल बताना पड़ा। वह गिड़गिड़ा कर कानिफानाथ के कदमों में गिर पड़े और क्षमा-याचना करते हुए बोले, मुझसे बहुत बड़ा अपराध हो गया है। उसे किसी प्रकार क्षमा करके मुझ पर दया करो। अपने बेटे के मुख से ऐसी बात सुनकर मैनावती सन्नाटे में आ गई और

इस बार कोरोना वायरस की बजह से आपको दिवाली पर खास एहतिहात बरतनी होगी। जिससेे आप अपने बच्चों को सुरक्षित रख कर दिवाली मना सकें। क्योंकि एक तो कोविड का खतरा और दूसरा वायु प्रदूषण। इसलिए दिवाली तो मनाएं मगर जरा संभल कर। बच्चों में दिवाली को लेकर बहुत उत्साह होता है। बच्चों को पटाखों

* चाय की पत्ती एक चम्मच फांक कर ऊपर से ठंडा पानी पी लें। एक बार प्रयोग करने पर दस्त बंद हो जाते हैं। *  इलायची का पेस्ट बनाकर माथे पर लगाने से सिर दर्द में तुरंत आराम मिलता है। * पेशाब में जलन होने पर इलायची को आंवला, दही और शहद के साथ खाने

*       सबसे उत्तम अपना मन है, जो विशेष रूप से शुद्ध किया हुआ हो *         अपने को संकट में डाल कर कार्य संपन्न करने वालों की विजय होती है, कायरों की नहीं *         सत्य से कीर्ति प्राप्त की जाती है और सहयोग से मित्र बनाए जाते हैं *         कामनाएं समुद्र की भांति अतृप्त हैं।

गतांक से आगे… एतमच्छिन्नया वृत्या प्रत्ययांतरशून्यया। उल्लेखयन्विजानीयात्सवरूपतया स्फुटम्।। अन्य प्रतीतियों से रहित अखंड-वृत्ति से इसका ही का चिंतन करते हुए योगी इसी को स्पष्टतया अपना स्वरूप जाने।। अत्रात्मत्वं दृढीकुर्वन्नाहमादिषु सन्त्यजन्। उदासीनतया तेषु तिष्ठेद्घटपटादिवत्।। इस प्रकार इस परमात्मा में ही आत्मभाव को दृढ़ करता हुुआ और अहंकारादि में आत्मबुद्धि का त्याग करता हुआ उनकी ओर से

 हमारे ऋषि-मुनि, भागः 37 विक्रमी संवत् 1010 में जन्में यामुनाचार्य का लालन-पालन उनकी दादी तथा माता ने किया। बचपन से ही उनकी अलौकिक प्रतिभा सामने आ गई थी। उनके गुरु थे, भाष्याचार्य। उनसे शिक्षा पाकर वह थोड़े समय में ही शास्त्रों में पारंगत हो गए थे। स्वभाव मधुर था, इसलिए उनकी ओर लोग खिंचे चले

स्वामी रामस्वरूप गतांक से आगे… श्लोक 10/2  श्रीकृष्ण महाराज अर्जुन से कह रहे हैं कि मेरी विभूति को न देवगण जानते हैं न महर्षि जन मानते हैं, क्योंकि मैं देवों का और महर्षियों का भी सब प्रकार से आदि हूं। भाव- प्रलय के पश्चात जब-जब सृष्टि बनती है तब-तब प्रथम जो एक अनादि तत्त्व बिना