संपादकीय

पहले गोबर, फिर दूध और आगे न जाने क्या-क्या उठाकर भाजपा विधानसभा परिसर को सियासी रंगमंच बनाती रहेगी। गारंटियों के राजनीतिक बाजार में यह हिसाब नया नहीं है, लेकिन इस बार विपक्ष का स्वांग मनभावन है और यह साबित करता है कि नेताओं में अभिनय का कौशल किसी भी हद तक जा सकता है। अभिनय की राजनीति अगर केंद्र में मिमिक्री करने पर उतारू है, तो हिमाचल में विपक्ष की इस अदायगी

संसद परिसर में ही उपराष्ट्रपति एवं राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ के सार्वजनिक अपमान पर देश की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को कहना पड़ा कि यह ‘अशोभनीय आचरण’ है। राष्ट्रपति व्यथित हुईं। प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी पीड़ा साझा की कि वह 20 साल से ऐसा ही अपमानजनक व्यवहार झेल रहे हैं। लोकसभा स्पीकर ओम बिरला उपराष्ट्रपति से मुलाकात करने गए और सांसदों के आपत्तिजनक व्यवहार पर गहरी चिंता जताई। उपराष्ट्रपति के अपमान पर देश भर से क्या प्रतिक्रियाएं सामने आ रही हैं, वे सुर्खियां बनी हैं। भारत की ‘संवैधानिक त्रिमूर्ति’ को संसद परिसर में ही क्षोभ जताना पड़ा है। यह लोकतंत्र और संविधान का भी अपमान है। संसद परिसर किसी विदूषक, कॉमेडियन, जोकर या नकलची का मंच नहीं है। बेशक संसद के दोनों सदनों से 143 विपक्षी सांसदों को निलंबित किया गया है। सांसद संसद के प्रवेश-द्वार पर बैठे हैं। वे संसद भवन से विजय चौक या राष्ट्रपति भवन तक मार्च निकाल सकते थे अथवा जंतर-मंतर पर मॉक संसद का आयो

शुक्र यह कि शिमला में परीक्षा के दो खिलाड़ी पकड़े गए, वरना परीक्षा दिलाने की प्रतिभा का आयात हिमाचल में भी होने लगा है। मथुरा और हरियाणा की प्रतिभाओं ने परीक्षा को चुराने की कोशिश में व्यवस्था का इम्तिहान ले लिया। पहले एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालय भर्ती और फिर दूसरा जूनियर सैक्ट्रिएट असिस्टेंट परीक्षा में किराए के परीक्षार्थियों ने अपनी कला के चमत्कार को जेल पहुंचा दिया। गनीमत यह है कि परीक्षा की निगरानी में सख्त आंखों ने फिंगर प्रिंट के आधार पर दोनों शातिरों को पकड़ लिया, लेकिन इन मामलों ने आंखें खोलकर ऐसे इम्तिहानों तक पहुंचे अपराध की चेताव

विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ की चौथी बैठक के बाद कहा जा सकता है कि वह कुछ सक्रिय हुआ है, कुछ फैसले लिए गए हैं, चुनाव जीतने की ललक जगी है और पहली बार प्रधानमंत्री के चेहरे के तौर पर मल्लिकार्जुन खडग़े का नाम उभरा है। हालांकि गठबंधन का साझा न्यूनतम कार्यक्रम, सचिवालय, प्रतीक चिह्न आदि अभी विचाराधीन हैं, लेकिन संयोजक या प्रधानमंत्री चेहरे का प्रस्ताव बंगाल की मुख्यमंत्री एवं तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष ममता बनर्जी ने रखा, जिसे आम आदमी पार्टी (आप) के राष्ट्रीय संयोजक एवं दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल समेत 12 दलों के नेताओं

धरातल पर लाने की कशिश में, हर कोशिश का सफर जिंदा है। तपोवन विधानसभा परिसर हिमाचल की राजनीति का धरातल देखता है तथा उस कोशिश को निहारता है जिसके सदके सरकारें यहां सदन के संकल्प को आहूत करती हैं। शीतकालीन सत्र के पहले ही दिन विपक्ष के गले में लटकी तख्तियां, सरकार के सामने कई आईने खड़ा कर रही थीं, तो गारंटियों की पोशाक में प्रदेश की प्राथमिकताओं का हवाला चिन्हित है। जाहिर तौर पर तपोवन के ग्रंथ में इतनी तो इबादत है कि हर सरकार के तहखानों का सच गूंजता है अफसाने में। एक सीमित सत्र की असीमित संभावना से ल

‘गुस्से को भी चाहिए कुछ कद्रदानों की तालियां, हुजूम में चल सकते हैं सिर्फ बिके हुए लोग।’ गुस्से का घर बनाना अब देश को चलाना है और इसीलिए राजनीति को आक्रोश पसंद है। यही आक्रोश हिमाचल में भाजपा के मुखर अंदाज की वकालत में धर्मशाला पहुंचा, तो जिक्र कांगड़ा के इनसाफ तक पहुंच गया। आश्चर्य यह कि सत्ता का पेंडुलम चाहे कांग्रेस की ओर झुके या भाजपा का साथ दे, कांगड़ा के प्रति बहस का नजरिया हमेशा विपक्ष की सहानुभूति पर आकर टिक जाता है। इस बार भाजपा के लिए कांग्रेस का मंत्रिमंडल कांगड़ा की रणभूमि में इसलिए कमजोर है क्योंकि सरकार की गोटियों में एक साल बाद भी दो नेताओं को ही स्थान मिला। तर्क भाजपा के पक्ष में मजबूती से इसलिए खड़ा है क्योंकि जयराम सरकार में यही आंकड़ा इससे कहीं आगे खड़ा था। यह दीगर है कि वहां दो जमा दो की दौड़ में कांगड़ा के मंत्रियों को पद छोडऩे पड़े थे और वरिष्ठता के

नया संसद भवन और नया, अभूतपूर्व आदेश...एक ही दिन में, एक साथ, लोकसभा और राज्यसभा के 78 सांसदों को निलंबित कर दिया गया। लोकसभा के 33 और राज्यसभा के 45 विपक्षी सांसदों को यह सजा स्पीकर और सभापति ने दी है। इससे पहले 14 विपक्षी सांसदों को निलंबित किया गया था। मंगलवार को लोकसभा के 49 और विपक्षी सांसदों को निलंबित कर दिया गया। इनमें हिमाचल के मंडी की सांसद प्रतिभा सिंह भी शामिल हैं। इस तरह शीतकालीन सत्र में ही कुल 141 विपक्षी सांसदों को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। ये अत्यंत क्रूर और एकाधिकारवादी फैसले हैं। स्पीकर और सभापति

प्रधानमंत्री मोदी गरीब, किसान, महिला और युवा को ही ‘जातियां’ मानते हैं। हाल के विधानसभा चुनावों में उन्होंने यह खूब प्रचार किया और ‘जातीय गणना’ की सियासत को खारिज किया। वैसे भी किसान और खेती प्रधानमंत्री की प्राथमिकताओं में रहे हैं। हालांकि सवाल भी कई उठते रहे हैं। प्रधानमंत्री मोदी और केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी को ‘राष्ट्रीय बॉयोफ्यूल नीति’ का श्रेय भी दिया जा सकता है, लेकिन सरकार ने गेहूं, चावल, चीनी और प्याज के निर्यात पर जैसी पाबंदियां थोप रखी हैं और एथनॉल उत्पादन के भी सख्त दिशा-निर्देश जारी किए हैं, उनसे कृषि-व्यापार से जुड़ा प्रत्येक शख्स, किसान और कारोबारी, चीनी मिलें आदि परेशान हैं। एक तरफ पेट्रोल आदि में 11.8 फीसदी तक एथनॉल के मिश्रण का अभियान जारी है, तो दूसरी तरफ केंद्र सरकार ने चीनी मिलों को निर्देश दिए हैं कि गन्ने के रस या सिरप से एथनॉल का उत्पादन न किया जाए। यह कृ

एक बार फिर नई उम्मीदों के साथ करीब डेढ़ सौ निवेशकों की ओर हिमाचल ने हाथ बढ़ाया है। दुबई में बसे हिमाचली प्रवासियों के साथ मुख्यमंत्री की मुलाकात के परिणाम जनवरी के सम्मेलन में तय होंगे, लेकिन निवेश का नजरिया जरूर बदल रहा है और साधन संपन्न प्रवासी देश-प्रदेश को कुछ आर्थिक सहयोग लौटाने का जज्बा लिए हाजिर हैं। जाहिर तौर पर पर्यटन, ऊर्जा, फिल्म सिटी, मीडिया जैसे अनेक क्षेत्रों में निवेश के मायने रोजगार व प्रदेश की आर्थिकी को मज