संपादकीय

शिमला नगर निगम के ऊपर भगवा पताका के मायने कांग्रेस को अवश्य ही विचलित करेंगे। ऐसे में हिमाचल कांग्रेस को अपनी क्षति और क्षरण के बीच फासला मापते हुए भाजपा के क्षितिज को अंगीकार करना पड़ेगा। इसका अर्थ अगर भाजपा और जीत के साथ जुड़ रहे पर्यायवाची बोध से निकलता है, तो हिमाचल में यह

देश के प्रधानमंत्री, गृहमंत्री और भाजपा अध्यक्ष का साफ तौर पर कहना है कि कश्मीर में आतंकियों और उनके हमदर्दों से दो-दो हाथ किए जाएंगे। उनका सफाया ही आखिरी मकसद होना चाहिए, लेकिन जम्मू-कश्मीर की मुख्यमंत्री और भाजपा गठबंधन के साथ सरकार चला रहीं महबूबा मुफ्ती का सार्वजनिक बयान है कि बंदूक और फौज से

परीक्षा की कमाई से परोपकार करते हुए हिमाचल प्रदेश स्कूल शिक्षा बोर्ड ने मुख्यमंत्री राहत कोष में डेढ़ करोड़ भर दिए। जाहिर तौर पर राहत कोष में जो आएगा, उसका उद्देश्य समाज की पीडि़त संवेदना पर मरहम लगाना है, लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि ऐसा योगदान अपनी सार्थकता की पहल सरीखा हो। यहां

बेशक हिमाचल भाजपा को इतना मसाला शिमला नगर निगम चुनावों और परिणामों में मिल गया कि सरकार को खुल कर कोस सके, लेकिन राजनीति की इस तस्वीर का हर पलड़ा भारी नहीं है। कम से कम मोदी लहर का अंकगणित शिमला का चुनाव नहीं कर सका, वरना एक निर्दलीय प्रत्याशी की जरूरत क्यों पड़ती। यह

भारतीय गणतंत्र में राष्ट्रपति का पद, हालांकि सुशोभित माना जाता है, लेकिन वह देश का प्रथम नागरिक, सेनाओं का सुप्रीम कमांडर, सर्वोच्च न्यायालय का भी समीक्षक, संसद और संविधान का सर्वोच्च संरक्षक होता है। यूं कहें कि देश की सत्ता और संसद ‘राष्ट्रपति के नाम पर’ ही कार्य करती हैं। भारत में राष्ट्रपति पद की

ढलियारा-देहरा का सफर फिर कातिल बनकर घूमता रहा और पंजाबी सवारियों को ढोती अलबेली बस इसका ग्रास बन गई। मौत के कारणों को समझते हुए खुद मौत भी परेशान होती होगी, क्योंकि सफर और रास्ता तो आस्था से भरपूर था। जाहिर तौर पर जो भी कारण बने, वे सभी हिमाचल के न होते हुए भी 

चैंपियंस ट्रॉफी के फाइनल में भारत और पाकिस्तान की क्रिकेट टीमें आमने-सामने…बेशक जंग के मैदान सरीखा एहसास होगा। वैसी ही उत्तेजना और तनाव…एक टीम चैंपियन बनेगी, तो दूसरी टीम उपविजेता रहेगी। ऐसा सुपरहिट फाइनल 10 सालों के बाद खेला जा रहा है। 2007 में टी-20 के विश्व कप फाइनल में भारत-पाक भिड़ंत हुई थी और

जंगल की सिसकियों में मातम का मंजर और पहरेदार की लाश का सबूत इस काबिल भी नहीं कि हम बता पाएं कि कसूर किसका और कसूरवार कौन। वन रक्षक होशियार सिंह की लाश से अशांत होने का सबब बढ़ता है और इसीलिए विरोध प्रदर्शन पूरे मामले से जुड़े आक्रोश को बयां कर रहे हैं। क्या

बालीवुड के सुपर स्टार सलमान खान ने इस बार अपनी मर्यादा और औकात लांघी हैं। सलमान उस स्तर के पढ़े-लिखे शख्स नहीं हैं कि भारत-पाक पर कोई बयान दे सकें। वह ऐसे बयानों के लिए अधिकृत पात्र भी नहीं हैं। सलमान कूटनीति, विदेश नीति, सैन्य रणनीति और पाकपरस्त आतंकवाद के बारे में कुछ भी नहीं