संपादकीय

पंद्रह हिमाचली कस्बों के नियोजन में शहरी उम्मीदों की पड़ताल होगी, तो इसके उत्तर में डिवेलपमेंट प्लान का सांचा प्रस्तुत होगा। शहरी नियोजन की करवटों में 15 नई योजनाओं में समाहित हो रहे सुजानपुर, वाकनाघाट, धौलाकुआं, नारकंडा, मैहतपुर, गरली-परागपुर, चामुंडा, खजियार, भरमौर व सराहन जैसे स्थान अपनी समीक्षा कर सकते हैं। बेशक हिमाचल का नियोजित

एहसास वैसा ही था, जैसा 1947 में जनमानस ने महसूस किया होगा। वे राजनीतिक, सीमाई, कूटनीतिक और संवैधानिक आजादी के लम्हे थे। 30 जून, 2017 की आधी रात को संसद के सेंट्रल हाल में दूसरी आजादी का एहसास भोगा गया। बेशक वे भी ऐतिहासिक लम्हे थे। एहसास एक राष्ट्र के साथ-साथ एक ही बाजार और

भाजपा के रथ ने हालांकि कांग्रेस के सारे रास्तों के दलदल पर चढ़ाई शुरू कर दी है, लेकिन यह सफर इतना भी आसान नहीं कि कोई अड़चन न रहे। खास तौर पर आंतरिक कलह से मजबूर हिमाचल भाजपा को अपनी रथ यात्रा की दिशा जिस प्रकार बदलनी पड़ी उससे यह स्पष्ट हो रहा है कि

प्रधानमंत्री मोदी ने एक बार फिर गोरक्षा के नाम पर हिंसा का मुद्दा उठाया है। उन्होंने भावुकता में यह सवाल भी किया कि क्या किसी इनसान को मारना गोरक्षा या गोसेवा है? प्रधानमंत्री ने गुजरात में यह मुद्दा उठाते हुए कहा कि गांधी और विनोबा भावे सबसे बड़े गोभक्त थे, लिहाजा उनसे कुछ सीखना चाहिए।

मैदानी राज्यों में गर्मियों की छुट्टियों ने इस साल पर्यटन और भीड़ के बीच अंतर मिटा दिया। हिमाचल इस क्षमता में अपने भविष्य की सौगात देख सकता है या अकुशल प्रबंधन के कारण नकारात्मक प्रचार इस भीड़ से निकल सकता है। हिमाचल में पर्यटन की बाढ़ को हम अपनी क्षमता में फिलवक्त नहीं समा सकते,

राष्ट्रपति चुनाव ने बिहार के सत्तारूढ़ महागठबंधन को विभाजित कर दिया है। राजद और कांग्रेस विपक्षी उम्मीदवार के पक्ष में वोट करेंगे, तो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के जनता दल-यू ने एनडीए उम्मीदवार रामनाथ कोविंद के पक्ष में मतदान करने का फैसला लिया है। ये फैसले वैचारिक नहीं, सियासी सुविधा के हैं। यदि नीतीश ने विपक्ष

अचानक हिमाचल अंतरराष्ट्रीय सुर्खियों में आया, तो तोहफों के इस पैकेज के अन्वेषण, जिज्ञासा और चर्चा में कुछ अतिरिक्त भी रेखांकित होगा। यह दीगर है कि अमरीकी व्हाइट हाउस की चाय-प्याली में हम कांगड़ा का रंग, मैडम ट्रंप की कलाई में मंडी का ब्रेसलेट, कुल्लू की शॉल और मिठास घोलता हिमाचली शहद देख सकते हैं।

दोनों ने हाथ मिलाए, हाथ हिलाए भी गर्मजोशी के लिए, एक-दूसरे की आंखों में देखकर मुस्कराए, कुछ बातें भी हुईं और फिर दोनों आलिंगन में बंध गए। एक-दूसरे की पीठ थपथपाई। दो सच्चे दोस्तों का ऐसा मिलन रस्मी नहीं हो सकता। बेशक प्रधानमंत्री मोदी और अमरीका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा जैसी गरमाहट और अंतरंगता

सोच का प्रवाह, प्रशासन की राह, विपक्ष की चाह और जनता की परवाह जैसे फैक्टर मिलकर प्रदेश का राजनीतिक तापमान बढ़ा रहे हैं। यहां सियासत का हर मुहूर्त और अदायगी एक कर्म के मानिंद हाजिर है, जबकि प्रदेश अपने कूचे में सरोकारों की प्रतीक्षा में सब देख रहा है। इस दौरान राजनीतिक शास्त्र ने हर